शोधकर्ता चाहें तो चिकित्सकीय पद्धित में विश्वगुरु बन जाएगा देश
संवाद सहयोगी, टिकारी : भारत के पांच हजार वर्ष से अधिक के इतिहास में आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति
संवाद सहयोगी, टिकारी : भारत के पांच हजार वर्ष से अधिक के इतिहास में आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति की अहम भूमिका रही है, जिसे विश्व के विकासशील देशों ने काफी सराहा और अपनाया है। मेडिसीन विभाग, शोधकर्ता व अविष्कारक चाहें तो चिकित्सकीय पद्धति में यह देश विश्वगुरु बन सकता है।
उक्त बातें दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय पंचानपुर के कुलपति प्रो. हरिश्चंद्र सिंह राठौर ने बुधवार को बायोटेक्नोलॉजी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. नीतीश कुमार की लिखित पुस्तक बायोटेक्नोलॉजिकल एप्रोच फॉर मेडिसिनल एंड एरोमेटिक प्लाट्स के विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए कहीं।
कुलपति राठौर ने कहा कि आज केरल में आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से कई तरह की बीमारियों का इलाज किया जाता है। विदेशों में काफी चर्चा है और हर वर्ष लाखों लोग इस पद्धति से उपचार कराते हैं।
तीन खंडों में विभाजित इस पुस्तक में कुल 29 अध्याय हैं। इस पुस्तक में पौधों में पाए जाने वाले प्राकृतिक घटकों और उनका चिकत्सीय पद्धति खासकर दवा के निर्माण में उपयोग करने के बारे में जानकारी दी गई है। साथ ही बायोटेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से पौधों में पाए जाने वाले रोग रोगी प्राकृतिक घटकों की मात्रा में बढ़ोतरी और आने वाले समय में इसका उपयोग के बारे में उल्लेख है।
जनसंपर्क पदाधिकारी मो. मुदस्सीर आलम ने बताया कि यह पुस्तक अमेजन डॉटकॉम एवं अन्य ऑनलाइन प्लेटफार्म पर बिक्री के लिए उपलब्ध है।
पुस्तक विमोचन समारोह में डीन प्रो. आरएस राठौर, बायोटेक्नोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. रिजवानुल हक, डॉ. आशीष शकर, डॉ. नीतीश कुमार व छात्र मौजूद थे।