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मगध विश्‍वविद्यालय: ग्रैजुएशन का कोर्स पांच वर्षों में, चौंक गए न, लेकिन यहां तो ऐसा ही होता है

औरंगाबाद में मगध विश्‍वविद्यालय से अंगीभूत तीन कॉलेजों के छात्र इन दिनों सत्र की लेटलतीफी के कारण काफी परेशान हैं। तीन वर्षों का स्‍नातक कोर्स पांच वर्षों में भी पूरा नहीं हाे सका है। इसके पीछे कोरोना का हवाला दिया जा रहा है।

By Vyas ChandraEdited By: Published: Fri, 26 Feb 2021 09:14 AM (IST)Updated: Fri, 26 Feb 2021 09:14 AM (IST)
मगध विश्‍वविद्यालय: ग्रैजुएशन का कोर्स पांच वर्षों में, चौंक गए न, लेकिन यहां तो ऐसा ही होता है
मगध विवि से अंगीभूत कॉलेजों के छात्र परेशान। जागरण आर्काइव

जागरण संवाददाता, औरंगाबाद। शिक्षा व्‍यवस्‍था को पटरी पर लाने की तमाम कवायदें फेल हो जा रही हैं। घोषणाएं तो बहुत की जाती हैं लेकिन धरातल पर प्रभावी तरीके से शायद ही एक भी उतर पाती हैं। मगध विश्‍वविद्यालय (Magadh University) की बात करें तो यहां स्‍नातक (Graduation) का तीन वर्षीय कोर्स पांच वर्षों में पूरा नहीं हो पा रहा है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि छात्रों की क्‍या‍ स्थिति होती होगी। क्‍या यह उनके भविष्‍य से खिलवाड़ नहीं है।

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जिला मुख्यालय में मगध विश्‍वविद्यालय से अंगीभूत तीन कॉलेज हैं। इनमें सच्चिदानंद सिन्हा कॉलेज, रामलखन सिंह यादव कॉलेज एवं किशोरी सिन्हा महिला कॉलेज है। इनमें पढ़ने वाले सभी छात्रों का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है। लेकिन इस पर किसी का ध्यान नहीं है। बता दें कि एक तो इन कॉलेजों में शिक्षकों की घोर कमी है ऊपर से सत्र की ये लेटलतीफी कोढ़ में खाज की तरह है।

परिणाम के इंतेजार में बैठे हैं छात्र

इधर झारखंड लोकसेवा आयोग (JPSC) का फाॅर्म भरा जा रहा है। लेकिन इन कॉलेजों के छात्र-छात्राएं स्नातक तृतीय वर्ष के परिणाम का इंतजार कर रहे हैं। बता दें कि व्यवसायिक कोर्स सत्र 2016-19 के अंतिम वर्ष का परिणाम अब तक जारी नहीं हो सका है। सत्र 2017-20 के परिणाम का भी यही स्थिति है। अधिकतर छात्रों का परिणाम पेंडिंग बता रहा है। सच्चिदानंद सिन्हा कॉलेज में संचालित एक कोर्स के छात्रों का परिणाम नहीं आ सका है। कारण कि सत्र 2017-20 के प्रथम वर्ष का परिणाम जारी नहीं किया गया। बगैर परिणाम जारी किए दूसरे एवं तीसरे वर्ष की परीक्षा ले ली गई। इस वजह से रिजल्‍ट पेंडिंग हो गया है। अब छात्र कॉलेज से लेकर यूनिवर्सिटी तक का चक्कर लगा रहे हैं।

सत्र 2017-19 के प्रथम सेमेस्‍टर की भी नहीं हुईपरीक्षा

दैनिक जागरण की टीम गुरुवार को सच्चिदानंद सिन्हा कॉलेज परिसर पहुंची। यहां उपस्थित छात्रों से बातचीत की। स्नातकोत्तर 2017-19 की छात्रा प्रिया कुमारी एवं अनु कुमारी ने बताया कि हमलोगों का नामांकन 2017 में हुआ था। लेकिन अभी तक प्रथम समेस्टर की भी परीक्षा नहीं हो सकी है। अगर स्थिति यही रही तो छह वर्ष में भी पीजी की डिग्री नहीं मिल पाएगी। वहीं स्थिति सत्र 2019-21 की है। इस सत्र के छात्रों की अब तक प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा नहीं हो सकी है। सत्र 2018-20 के छात्रों के दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा नहीं हो सकी है। 

छात्रों के साथ की जा रही नाइंसाफी

सच्चिदानंद सिन्हा कॉलेज की छात्रसंघ अध्यक्ष आशिका सिंह ने बताया कि विवि छात्रों के साथ नाइंसाफी कर रही है। पांच वर्ष में भी स्नातक की डिग्री नहीं मिलना काफी चिंताजनक है। सभी विषय का परिणाम पेंडिंग कर  रखा गया है परंतु इसे सुधार नहीं किया जा रहा है। बताया कि इसको लेकर हमलोगों ने कई बार आवेदन दिया। लेकिन आश्‍वासन के सिवा कुछ नहीं मिला। 

उच्च अधिकारियों से मिलेगी छात्र जदयू : आनंद

छात्र जदयू के जिलाध्यक्ष आनंद वैभव ने बताया कि सत्र देरी से संचालित होने के कारण छात्र-छात्राओं का भविष्य बर्बाद हो रहा है। लेकिन विवि प्रशासन कुछ नहीं कर रहा। कुलपति एवं परीक्षा नियंत्रक से मिलकर इसका समाधान करने की मांग की गई थी परंतु सुधार नहीं हुआ। 

कोरोना के कारण सत्र संचालन में हुई देरी : डा. गणेश 

रामलखन सिंह यादव कॉलेज के प्राचार्य डा. गणेश महतो ने बताया कि कोरोना वायरस के कारण सत्र में देरी हुई है। पहले से सत्र देरी से चल रहा था परंतु कोरोना के कारण सत्र संचालन में ज्यादा देर हो गई। अब कॉलेज एवं विवि खुला है। सत्र को तेज करने की कोशिश की जाएगी।

विश्‍वविद्यालय का कार्य है सत्र को ठीक करना : डा. रेखा

किशोरी सिन्हा महिला महाविद्यालय की प्राचार्य डा. रेखा कुमारी ने बताया कि परीक्षा लेने से लेकर सत्र का संचालन करना विश्‍वविद्यालय का कार्य है। महाविद्यालय की ओर से इसमें कोई कार्य नहीं होता है। सत्र को सुधारना काफी जरूरी है। सत्र देरी से संचालित होने के कारण बच्चे परेशान हैं।

ऐसा करने पर नियमित हो जाता सत्र : डा. वेदप्रकाश

सच्चिदानंद सिन्हा महाविद्यालय के प्राचार्य डा. वेदप्रकाश चतुर्वेदी ने बताया कि विश्‍वविद्यालय एवं राजभवन की अोर से सत्र को सुधारने का प्रयास किया जा रहा था तभी कोरोना वायरस का प्रकोप आ गया। विश्‍वविद्यालय को चाहिए था कि इंटरनल परीक्षा में सभी को प्रोमोट कर दिया जाए एवं केवल फाइनल परीक्षा ली जाए। इससे सत्र सुधर जाता।


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