आजादी के दीवाने रहे बिहार के केशरी राम को अंग्रेजी हुकूमत ने घर के सामने भून डाला था गोलियों से
तत्कालीन सरकारी दस्तावेजों में क्रांतिकारी सूची में नाम होने के बावजूद आजाद भारत में बतौर स्वतंत्रता सेनानी न तो उन्हें मान्यता मिली और ना उस अनुरूप उनको प्रतिष्ठा दी गई। दैनिक जागरण का यह प्रयास है कि इस गुमनाम शहीद की कहानी सबके सामने लाई जाए।
उपेंद्र कश्यप, औरंगाबाद। 1942 की अगस्त क्रांति में नवीनगर के टंडवा के केसरी राम चंद्रवंशी ने अद्भुत शक्ति का परिचय दिया था। यह अलग बात है कि उनकी यादें टंडवा की गली कूचे तक सीमित रह गई। इन पर पुस्तक लिखने वाले अंगद किशोर कहते हैं कि विडंबना है कि तत्कालीन सरकारी दस्तावेजों में क्रांतिकारी सूची में नाम होने के बावजूद आजाद भारत में बतौर स्वतंत्रता सेनानी न तो उन्हें मान्यता मिली और ना उस अनुरूप उनको प्रतिष्ठा दी गई। दैनिक जागरण का यह प्रयास है कि इस गुमनाम शहीद की कहानी सबके सामने लाई जाए।
महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने देश के लिए सर्वस्व न्योछावर कर देने को ठान लिया था। योद्धा और क्रांतिकारियों के लिए आदर्श बन चुके केसरी अंग्रेजी हुकूमत की नजरों में खटकने लगे। उनकी मुखबिरी कराई जाती रही। नतीजा 28 अगस्त 1942 को अंग्रेज अधिकारी ने उनके ही घर के सामने उन्हें गोलियों से भून डाला। उनकी स्मृति में निर्मित एक अधूरा स्मारक उनकी याद कराता है और यह भी बताता है कि शहीदों को लेकर इतिहास लिखा जाना अभी काफी शेष है।
क्रातिकारियों ने टंडवा स्थित शराब भट्ठी को जला दी। उसके संचालक को खूब पीटा और नबीनगर थाने पर दारोगा को बंधक बनाकर तिरंगा फहरा दिया। इस मामले में नवीनगर कैंप थाना में दर्ज केस नंबर 5 दिनांक 21 अगस्त 1942 का मामला औरंगाबाद थाना में 26 अगस्त 1942 को दर्ज हुआ। इस घटना में मुख्य मुजरिम केशरी राम, उनके पिता देनी राम, अब्दुल गफूर मियां- सभी टंडवा निवासी, ग्राम खैरी के रामगुलाम सिंह तथा देशभक्त चौकीदार तपेश्वर दुसाध के अलावा घटना में शामिल अन्य अज्ञात 500 से अधिक लोगों पर अंडर सेक्शन 148, 307, 353 तथा 379 आईपीसी की धारा लगाई गई। केस के जांच अधिकारी नवीनगर थाना कैंप के सब इंस्पेक्टर नाथ सिंह को बनाया गया था। जिला से इस घटना की चार्ज शीट 14 अक्टूबर 1942 को जारी की गई। जिसका केस नंबर 440/42 था।
ये भी जानें
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-28 अगस्त 1942 को मारी थी गोली, 30 को हुई थी मौत
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-विद्रोह के डर से मामले को छुपाया और वारंट किया जारी
21 अगस्त 1921 को घटित घटना में मात्र 6 को नामजद प्राथमिकी अभियुक्त बनाया गया था और 14 अक्टूबर को जिला पुलिस मुख्यालय से जारी चार्ज शीट में 17 का नाम दर्ज है। जो सात व्यक्ति गिरफ्तार किए गए थे उसमें चंद्रगढ़ के बाल केश्वर राम और छेदी राम चंद्रवंशी, टंडवा के दीनानाथ साव एवं जिबोधन सौंडिक, बसडीहा के बालचंद दुसाद एवं महेश सिंह तथा खैरी के तपेश्वर चौकीदार शामिल थे। 10 व्यक्तियों को अंग्रेजी हुकूमत फरार घोषित किया गया था। जिसमें टंडवा के केशरी राम एवं उनके पिता देनी राम, अब्दुल गफूर तथा केदार साव, पुराहरा के के नथुनी हजाम और ग्राम बेनी गंजहर के बलराम सिंह, रामदेव सिंह, कुंवर सिंह एवं सूबा सिंह के नाम दर्ज हैं। फरार चल रहे केशरी राम चंद्रवंशी को उनके घर के सामने मुखबिर की सूचना अपर 28 अगस्त को गोलियों से भून डाला गया। मामले को विद्रोह के डर से छुपाया गया। उनकी मौत दर्द और इलाज के बीच 30 अगस्त को हो गयी।
शहादत के वक्त थी दो माह की
शहीद केसरी की इकलौती संतान किस्मती कुंवर 80 वर्ष से अधिक उम्र की हैं। उन्हें स्मरण है उन्हें अपने दादा देनी राम और चाचा रामविलास से अपने पिता की वीरता की कहानी कैसे चाव से सुना करती थी। बताती हैं-जब पिता शहीद हुए थे, तब मात्र दो या तीन माह की वे बच्ची थीं। अब पिता की यादें हैं और उनके अधूरे स्मारक पर रोज श्रद्धा सुमन चढ़ाती हैं।
एक स्मारक तक पूर्ण नहीं बन सका
इस शहीद के भतीजा समाजसेवी विजय प्रसाद (अब स्वर्गीय) ने केसरी राम का वास्तविक इतिहास संग्रह कर बिहार सरकार के मंत्री और जिला के आला अधिकारियों को संतुष्ट किया। दस्तावेजों की जांच के बाद यह स्वीकार किया गया कि भूलवश अन्याय हुआ। तब बिहार सरकार के तत्कालीन कल्याण मंत्री रमई राम ने टंडवा में 10 अप्रैल 1994 को उनके ही घर के ठीक सामने शहीद स्थल पर स्मारक का शिलान्यास किया। बिहार सरकार के तत्कालीन सहायक वित्त राज्य मंत्री गिरवर पांडे और राजद के तत्कालीन प्रदेश सचिव सुरेश पासवान जो बाद में विधायक और मंत्री बने उपस्थित रहे। शिलान्यास समारोह की अध्यक्षता औरंगाबाद के जिलाधिकारी दीपक कुमार ने की थी। 27 वर्ष बाद भी यह स्मारक पूरा नहीं हो सका और ना ही किस्मती कुंवर को स्वतंत्रता सेनानी आश्रित सम्मान दिया गया।
शोध की व्यापक जरूरत
केशरी राम चंद्रवंशी पर पुस्तक लिखने वाले अंगद किशोर कहते हैं कि गुमनाम शहीद थे। बहुत सारे स्वतंत्र सेनानी हैं। जो गुमनाम रह गए। ऐसे शहीद क्रांतिकारियों पर शोध करने की जरूरत है। इतिहास लिखा जाना चाहिए। इतिहास की धारा में ऐसे गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों को लाया जाना चाहिए ताकि नई पीढ़ी उनसे प्रेरित हो सके।