रजिस्ट्री ऑफिस में खाता-खतियान निहारने को देना पड़ता नजराना
-दस्तावेज के लिए पहले आरटीपीएस काउंटर पर देना पड़ता आवेदन अनुमति के बाद 40 रुपये जमा करने का प्रावधान -निबंधक पदाधिकारी ने सरकारी खाते में जमा होने के बाद दिखाया जाता दस्तावेज - -400 से 4000 रुपये तक दस्तावेज देखने के लिए देना पड़ता है -1
नीरज कुमार, गया
आप अगर पैतृक संपत्ति और दस्तावेज की जानकारी चाहते हैं तो वह रजिस्ट्री ऑफिस में मौजूद है। उन कागजातों को निहारने के लिए सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर नजराना देना पड़ेगा। बिना नजराना के दस्तावेज नहीं देख सकते हैं। बताया जाता है कि रजिस्ट्री ऑफिस में कई शताब्दी वर्ष पुराने दस्तावेज भी उपलब्ध हैं। पुराना गया जिले का भी अभिलेख यहां के अभिलेखागार (रिकॉर्ड रूम) में मौजूद है। इस रिकॉर्ड को देखने के लिए डीड राइटर, उनके कर्मी, भू-माफिया सहित आम लोगों की भीड़ रजिस्ट्री ऑफिस में लगी है। सुबह से शाम तक अभिलेखागार के बाहर फर्श पर बैठ लोग खाता- खतियान के दस्तावेज का अवलोकन करते हैं। कई दस्तावेज के कागजात काफी जीर्ण-शीर्ष हो गए हैं। कुछ दस्तावेज इतने सुरक्षित तरीके से रखा गया है। वैसे दस्तावेज 1857 का है। डेढ़ शताब्दी के बाद भी कागजात रजिस्ट्री ऑफिस के अभिलेखागार में सुरक्षित है।
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नियम के विपरीत होता कार्य
जानकार बताते हैं, किसी साल के लिए दस्तावेज देखने के लिए 40 रुपये प्रति साल निर्धारित है। यह राशि केवल सरकारी आदेश में निहित है। 400 रुपये से 4000 रुपये तक दस्तावेज देखने के लिए देना पड़ता है। इसका कोई लेखा-जोखा नहीं है। इसके लिए कई जानकार जो या तो डीड राइटर हैं, या फिर रजिस्ट्री ऑफिस से सेवानिवृत हुए कर्मी है। वह अपनी सेवा दे रहे हैं। उन्हें विभाग से कोई मानदेय नहीं मिलता है, बल्कि वैसे लोग भू-माफिया, डीड राइटर से मिलकर प्रति साल देखने के लिए 1000 रुपये की मांग करते हैं। जो नजराना है। लेकिन इस राशि में कई स्तर पर सहभागिता भी होती है। वे खुद, रिकार्ड स्टोरकीपर, प्रधान सहायक और है। इनकी रसीद नहीं कटती है, बिना रसीद कटे। इन्हें सरकारी दस्तावेज 'बैक डोर' से मिल जाता है।
बैक डोर से दस्तावेज देखने वाले करीब दो दर्जन लोग हैं। इस तरह के कारोबार से जुड़े हुए हैं। अब तो कई दस्तावेज को मोबाइल में भी कैद हो रहे हैं यानि गोपनीय दस्तावेज का फोटो खींचना मना है। लेकिन भू-माफिया इसे अपने कैमरे में कैद कर रहे हैं।
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जुगाड़ से होता है सब काम
मोहन बताते हैं, वे यहां पिछले कई वर्षो से दस्तावेज देखने का काम करते हैं। यहां सब कार्य 'जुगाड़ टेक्निक' सिस्टम से होता है। यहां वही बात है पैसा फेंको तमासा देखो। पार्टी से प्रति साल 1000 रुपये की दर लिया जाता है यानि एक साल का दस्तावेज देखने के लिए 1000 रुपये लगता है। नियमानुसार कार्य करने से पैसा और समय दोनों लगता है। लेकिन जुगाड़ सिस्टम से आते हैं तो पैसा के साथ-साथ समय की बचत होती है।
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पहले रसीद तब रिकॉर्ड
सरकारी प्रावधान के अनुसार कोई व्यक्ति या फिर डीड राइटर रिकॉर्ड देखना चाहते हैं, तो उन्हें पहले रजिस्ट्री ऑफिस में बने आरटीपीएस काउंटर पर एक फार्म में नाम, पता और दस्तावेज की जानकारी देना है। वहां जमा कराए आवेदन के आधार पर रिकॉर्ड कीपर के पास 40 रुपये प्रति साल की दर से फी जमा करने का प्रावधान है। इसके लिए रसीद देने का प्रावधान है। सरकार ने यह नियम तय कर रखी है पर, उसका यहां पालन नहीं होता है। रसीद को ताख पर रख दिया जाता है। 40 रुपये की जगह 20 रुपये प्रति वर्ष जमा कीजिए और दस्तावेज लेकर निहारते रहिए। दस्तावेज लेने और देखने के लिए लोगों में होड़ लगी रहती है। यहां पर यह लेन-देन और रिकॉर्ड देखा जाता है। वहां सीसीटीवी नहीं लगा है। अभिलेखागार के बाहर कुछ सभ्रांत लोगों ने दस्तावेज दिखाने के लिए बिना कोई भय अपनी दुकान खोल दी है। जहां से सीधा संपर्क विभागीय पदाधिकारी और कर्मी की होती है।
रसीद देने का है प्रावधान
जिला अवर निबंधन पदाधिकारी रीवा चौधरी बताती हैं, प्रति वर्ष दस्तावेज देखने के लिए 40 रुपये नकद राशि लेने का आदेश है। वह राशि प्रतिदिन विभाग के खाते में जमा कराया जाता है। हालांकि, उन्होंने यह जानकारी नहीं दी कि प्रत्येक दिन अभिलेखागार से कितने दस्तावेज निकलते हैं और कितने की रसीद कटती है। प्रत्येक दिन विभागीय खाते में कितनी राशि जमा होती है, इसकी भी जानकारी नहीं है। सिर्फ इतना कहा कि नकद पैसे की रसीद दी जाती है।