दवा है या जहर, कोई देखने वाला नहीं; कार्यालय से हमेशा गायब रहते औरंगाबाद के औषधि निरीक्षक
डाटा आपरेटर नंदलाल सिंह भी औषधि निरीक्षक संजय कुमार के साथ बाहर गए है। कहां गए हैं इसकी जानकारी हमें नहीं है। सहायक औषधि निरीक्षक अशोक कुमार आर्य कार्यालय से गायब थे। पूछे जाने पर बताया गया कि आज नहीं आए हैं।
जागरण संवाददाता, औरंगाबाद। समय : 12 बजे, स्थान : सदर अस्पताल परिसर स्थित औषधि नियंत्रण विभाग, दिन : बुधवार। कार्यालय खुला था। कार्यालय में आदेशपाल रामसुंदर राम और डाटा आपरेटर अजीत कुमार उपस्थित थे। अन्य कर्मियों के बारे में पूछे जाने पर डाटा आपरेटर ने बताया कि लिपिक दीपक पाठक चुनाव की ट्रेनिंग में गए हैं। डाटा आपरेटर नंदलाल सिंह भी औषधि निरीक्षक संजय कुमार के साथ बाहर गए है। कहां गए हैं इसकी जानकारी हमें नहीं है। सहायक औषधि निरीक्षक अशोक कुमार आर्य कार्यालय से गायब थे। पूछे जाने पर बताया गया कि आज नहीं आए हैं। ये अरवल के प्रभार में हैं, हो सकता है अरवल गए होंगे। बता दें कि कार्यालय से अधिकारी से लेकर लिपिक तक गायब रहते हैं परंतु किसी का ध्यान नहीं है। सिविल सर्जन प्रतिदिन इसी कार्यालय से आवागमन करते हैं परंतु उनका ध्यान इस कार्यालय पर नहीं होता है।
ध्यान रहता तो कार्यालय की स्थिति यह नहीं रहती। एक भी दिन अधिकारी कार्यालय में नहीं रहते हैं। पहले भी यहां ऐसा ही नजारा देखने को मिला है। स्पष्ट है कि घर बैठकर ये अधिकारी सरकार का वेतन उठा रहे हैं। बताते चलें कि आप कभी भी कार्यालय चले जाइए। आपको ड्रग आफिस का ताला तो खुला जरूर मिलेगा। लेकिन, वहां पर एक-दो सिर्फ कर्मचारियों की उपस्थिति दिखेगी। पूछे जाने पर कर्मचारियों का रटा-रटाया जवाब रहता है कि साहब क्षेत्र भ्रमण पर हैं। परंतु, क्षेत्र भ्रमण की आम जनता के हित में उपलब्धि क्या है, इसका कोई आंकड़ा उनके पास नहीं होता। विभागीय सूत्रों के मुताबिक प्रतिमाह कम से कम बीस दुकानों की जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है परंतु ऐसा होता नहीं है, अगर होता है सिर्फ कागज पर। जांच के नाम पर कोई कार्रवाई नहीं होती है।
ग्रामीण इलाकों में नकली दवा की खपत
जिले में नकली दवाओं की निगरानी एवं असली दवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी औषधि नियंत्रण विभाग की है। यहां दवाओं की निगरानी का सिस्टम फेल है। जानकार सूत्रों ने बताया कि नकली दवाओं की इन दिनों अधिक खपत ग्रामीण क्षेत्रों में धडल्ऌले से हो रही है। भीषण गर्मी एवं उमस से फैलनेवाली मौसमी बीमारियों से परेशान लोग सीधे मेडिकल स्टोर पर पहुंच रहे है। लेकिन, विभागीय अफसरों को इसकी कोई जानकारी नहीं है। सूत्रों की माने तो जिले में नकली और प्रतिबंधित दवाइयों की खेप प्रतिदिन उतरती है। लेकिन, इन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। हो भी तो कैसे? शायद ही इस विभाग से जुड़े अधिकारी कभी अपने दफ्तर में मिलें।
जिले में लगभग 1600 दुकानें रजिस्टर्ड
डाटा आपरेटर नंदलाल ङ्क्षसह ने बताया कि जिले में रजिस्टर्ड मेडिकल दुकानों की कुल संख्या लगभग 1600 है। इसमें थोक एवं खुदरा दोनों दुकानें शामिल है। जबकि, कई दुकानें बगैर लाइसेंस के चल रही है। ड्रग इंस्पेक्टर का काम इन दुकानों का सर्वे करना, नकली और मिलावटी दवाइयों का सैंपल लेना व कार्रवाई करना है। हैरानी इस बात की होती है कि दुकानों में छापेमारी की रिपोर्ट तो यदा-कदा मीडिया को मिलती है, लेकिन उसमें लिए गए नमूनों की जांच में क्या मिला, यह विभाग शेयर नहीं करता। जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति की जाती है। इस संबंध में जानकारी लेने के लिए डाटा आपरेटर से औषधि निरीक्षक का मोबाइल नंबर मांगा तो कहा कि हम नंबर नहीं दे सकते। साहब ने मना किया है।
कहते हैं सीएस
सिविल सर्जन डा. कुमार वीरेंद्र प्रसाद ने बताया कि अधिकारी को कार्यालय से गायब रहने की जानकारी हमें नहीं है। अगर अधिकारी कार्यालय से गायब रहते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई होगी। मैं स्वयं कार्यालय की जांच कर कार्रवाई करूंगा।