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नववर्ष 2022 में पिकनिक मनाने आएं सीताथापा पहाड़, यहां कुएं से निकलता दूध जैसा पानी

पहाड़ पर प्राचीन काल से स्थापित है दिव्य मूर्तियां यह अद्भुत प्राचीन धार्मिक स्थल है। यह जगह सीताथापा के नाम से प्रसिद्ध है। पहाड़ पर प्राचीन काल से स्थापित दिव्य मूर्तियां हैं। यहां का इतिहास करीब 17 हजार वर्ष पुराना है।

By Prashant KumarEdited By: Published: Wed, 22 Dec 2021 04:37 PM (IST)Updated: Thu, 23 Dec 2021 07:55 AM (IST)
नववर्ष 2022 में पिकनिक मनाने आएं सीताथापा पहाड़, यहां कुएं से निकलता दूध जैसा पानी
सीताथापा पहाड़ पर मना सकते नए साल का जश्‍न। सांकेतिक तस्‍वीर।

जागरण संवाददाता, औरंगाबाद। नववर्ष 2021 की विदाई और नए वर्ष 2022 के स्वागत की तैयारी इन दिनों जोरों पर है। खासकर युवा वर्ग इसको लेकर उत्साहित हैं। नए वर्ष के स्वागत करने का प्लान बन रहा है। लोग पिकनिक का प्लान बना लिए हैं। इस बार नए वर्ष में आप जिले के मदनपुर प्रखंड के जीटी रोड से दक्षिण लगभग ढाई किलोमीटर की दूर घटराइन पंचायत के नीमा गांव के पास स्थित सीताथापा पहाड़ पर अपने परिवार के साथ पिकनिक का आनंद दे सकते हैं। यहां दूर से लोग पिकनिक का आनंद लेने बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। पिकनिक मनाने का आनंद कुछ और है। असुरक्षा और अव्यवस्थाओं के कारण लोग यहां जाने से कतराते हैं। पहाड़ पर प्राचीन काल से स्थापित है दिव्य मूर्तियां यह अद्भुत प्राचीन धार्मिक स्थल है। यह जगह सीताथापा के नाम से प्रसिद्ध है।

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पहाड़ पर प्राचीन काल से स्थापित दिव्य मूर्तियां हैं। यहां का इतिहास करीब 17 हजार वर्ष पुराना है। मुख्य पुजारी पारस पांडेय बताते हैं कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम वनवास के समय अपने पिता राजा दशरथ के निधन के बाद इसी रास्ते गया पिंड दान करने पहुंचे थे। उनके साथ सीता रथ से गया जा रही थी कि पहिया जमीन में धंस गया था, तब मां सीता ने अपने हाथ से रथ के पहिया को सहारा दिया था। आज भी रथ के पहिए के निशान पहाड़ पर देखे जाते हैं। पहाड़ पर भगवान विष्णु के सभी अवतार की प्रतिमाएं है। मंदिर के चारों तरफ आकर्षक ²श्य देखने को मिलते हैं। यहां तक कि इस स्थल के बारे में बताया जाता है कि त्रेतायुग में नैमिष ऋषि इस स्थल पर वर्षों तपस्या किए थे। इनके तपस्या को देखकर राम, लक्ष्मण एवं जानकी अत्यंत प्रभावित हुए थे। पहाड़ पर माता सीता ने प्रसन्न होकर स्मृति चिह्न के लिए अपने हाथ का छाप इस स्थल पर छोड़े थे, आज भी पहाड़ पर मां जानकी के हाथ के छाप देखने को मिलते है और तभी से इस स्थल का नाम सीताथापा पड़ गया।

कुआं से निकलते रहता है पानी

सीताथापा स्थल के पास एक कुआं है जिसका पानी दूध की तरह उजला है। पीने में मीठा लगता है। वहीं कुआं से स्वत: पानी निकलता रहता है। कुआं अभी तक सूखा नहीं है। कुआं के पास में ही एक तालाब है जिसका पानी सामान्य है। सीताकुंड की खासियत यह भी है कि गर्मी के मौसम में नहीं सूखता है। ग्रामीण सुकांत सिंह, जगन यादव, सुखदेव प्रजापत, वीरेंद्र ठाकुर, प्रमोद ठाकुर, बैजनाथ, ठाकुर, उपेंद्र साव, शिव दस का मानना है कि सीताकुंड का पानी पीने एवं स्नान करने से कुष्ठ जैसी बीमारी ठीक होती है। नियमित सेवन करने से पेट साफ रहता है। इसके जल से स्नान करने से चर्म रोग ठीक हो जाता है। मुखिया संजय कुमार ने बताया कि इस स्थल को देखने दूर से श्रद्धालु पहुंचते है लेकिन सुविधाएं नहीं रहने के कारण उन्हें परेशानी होती है। पहाड़ पर न तो पेयजल की व्यवस्था है और न ही अन्य सुविधाएं। रात्रि में इस स्थल पर पहुंचने में भय लगता है।


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