Gaya: शेरशाह और अंग्रेज के जमाने में ऐसे होते थे सिक्के, देखना हो तो आइए शिल्पी महेंद्र के पास
गया के शिल्पी महेंद्र कई गुणों से भरपूर हैं। काष्ठ कला में एक अच्छी ख्याति प्राप्त करने वाले महेंद्र प्रसाद बैंक अधिकारी भी रहे हैं। घर में अच्छी लाइब्रेरी बना रखी है। सबसे खास बात यह है कि उनके पास अलग-अलग काल के एक लाख सिक्कों का संग्रहण है।
कमल नयन, गया। काष्ठ कला में ख्याति प्राप्त कर महेंद्र प्रसाद शिल्पी बन गए। राज्य सरकार से उन्हें सम्मान मिला। केन्द्र सरकार में भी नामित हैं। शिल्प कला के इस हस्ताक्षर का दूसरा पहलू भी है। यह है सिक्कों का संग्रह। स्कूल में पढ़ाई के दौरान शुरू हुआ उनका शौक आज भी बदस्तूर जारी है। उनके पास अलग-अलग काल के करीब एक लाख सिक्कों का संग्रह है। वे किताबों की दुनियां में खोए रहते हैं।
कई गुणों से भरे हैं शिल्पी महेंद्र
गया के नई सड़क में शिल्पकार महेंद्र का अपना निवास है। यहां उनके पहले कमरे में किताबों की दुनिया भी है। उसमें सभी धर्मों की किताबों के साथ-साथ सिक्के और नोट की जानकारी की पुस्तकें उपलब्ध है। शिल्पी महेंद्र कुछ नया करने की सोच रखने वाले व्यक्ति हैं। इसी का नतीजा है कि काष्ठ कला, पुस्तकों का संग्रह और अध्ययन के साथ-साथ सिक्कों के संग्रहण में भी उन्होंने एक मुकाम हासिल कर लिया है। उनके पास विभिन्न काल के लगभग एक लाख सिक्के जमा हैं। इन्हें वे सहेजकर रखते हैं।
विलियम चतुर्थ के चांदी का सिक्का भी है शिल्पी महेंद्र के पास
1831 से लेकर 1972 तक पैसे की यात्रा का एक एलबम है। जिसमें सिक्के प्लास्टिक के कवर में पूरे परिचय के साथ मढ़ दिए गए हैं। ये काफी सुरक्षित दिखते हैं। उन्हें इतना सहेजना मामूली बात नहीं है। उनके पास सबसे पुराना सिक्का विलियम 4 के चांदी का एक रुपये का सिक्का है। सिक्के की यात्रा में चांदी के बाद पीतल और कुछ साल पहले अल्युमीनियम के सिक्के भी इस कवर में सुरक्षित हैं। वे कहते हैं कि यह शौक उन्हें स्कूली शिक्षा के दौरान सातवीं क्लास में हुई। जब उन्हें घर से खर्च के लिए कुछ सिक्के मिलते थे तो उसको भी वे बचा लेते थे। उसी उम्र में उन्होंने कुछ सिक्के जमा किए। गया नगर पालिका के संग्रहालय में जाकर जमा भी कर दिया। जब बड़े हुए तब स्टेट बैंक में उनकी नौकरी लग गई। फिर 2001 तक उन्होंने बैंक की सेवा की। इस दौरान सिक्कों के संग्रह का शौक उन्हें और भी आगे ले आया।
शेरशाह के जमाने का भी है एक सिक्का
महेन्द्र कहते हैं कि उनके इस संग्रह में कुछ स्मरणीय सिक्के भी हैं। इसमें नेपाली सिक्का और बंगाल का एक टका और शेरशाह के जमाने के सिक्के भी हैं। उन्होंने इस संग्रह के लिए काफी मेहनत की और उसके बाद इसे सुरक्षित रखा है। वे कहते हैं कि उनका यह शौक दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। अब तो सुबह चाय पीने भी कहीं निकलते हैं तो चायवाले को नोट देकर सिक्का लाते हैं और उसमें भी कुछ अलग ढंग के सिक्के को तलाशकर सुरक्षित रखते हैं। शिल्पी बताते हैं कि पुराने सिक्के जो अब दुर्लभ हो गए हैं उन्हें देखकर काफी प्रसन्नता होती है चूंकि यह सब यादगार रह गए हैं। उसी तरह पुराने एक रुपये का नोट इनके पास हैं। वे कहते हैं कि यह हमारा शौक है और इसे मैं पूरी ढंग से जीता हूं।
सिक्कों के बारे में बताते शिल्पी महेंद्र।