कोरोना वायरस के डर से इंंसान ही नहीं भूत भी खौफ खाने लगे हैं, यकीन न हो तो यहां आकर देखिए
कोरोना की पाबंदियोंं का असर चैत्र नवरात्र चैती छठ और रामनवमी जैसे पर्व पर पूर्ण रूप से दिखा। इस क्रम में नवरात्र के दिनों में आमजन को मूर्ख बनाने वाले ओझा-तांत्रिकोंं की दुकानें भी बंद रही। वे भूतों वाला खेल नहीं कर सके।
सूर्यपुरा(रोहतास), संवाद सूत्र। कोरोनावायरस के सबके छक्के छुड़ा दिए हैं। चाहे वह आम हो या खास। ऐसे में बेचारे भूतों (Ghosts) की क्या बिसात। कोरोना के डर से भागेे रहे। चैत्र नवरात्र में भी आने की हिम्मत नहीं जुटा सके। दरअसल हम बात कर रहे उन भूतों की जो ओझा एवं तांत्रिकों वाले होते हैं। नवरात्र में कहीं भी भूतों का खेला नहीं हुआ।
नवरात्र शुरू होते ही शुरू हो जाता था भूतों का खेल
चैत नवरात्र प्रारंभ होने के साथ ही क्षेत्र में भूतों का खेल शुरू हो जाता था। यह पूरे नौ दिनों तक चलता था। प्रखंड मुख्यालय हो या सुदूर ग्रामीण क्षेत्र हर जगह गांवों में नवरात्र आरंभ होने के साथ ही ओझा एवं तांत्रिको के घर 'देवास' लगने शुरू हो जाते थे। जहां भूत प्रेत की बाधा दूर कराने के लिए लोगों की लंबी कतार लग जाया करती थी। दूर-दूर से लोग झाड़फूंक करवाने के चक्कर में पहुंचते थे। यह नाटक ओझा तांत्रिकों के घर निरंतर चलता रहता था। खासकर षष्ठी, सप्तमी और अष्टमी को इन ओझा-तांत्रिकों के पास भीड़ लगी रहती थी। ओझा भी पूरे मूड में होते। ऐसा स्वांग रचते कि लोग उनकी बातों में आकर उनके मुरीद बने रहते। अब इसेे अंधविश्वास कहे या सच में भूत बाबा का कोप।
भूतों का डेरा हो गया गायब
इसबार कोरोना के कहर ने इंसानों को कौन कहे भूतों को भी अपनी आगोश में ले लिया है। नतीजा पिछले वर्ष से ही भूतों का डेरा मानो कोरोना ने इस क्षेत्र से हमेशा के लिये उखाड़ फेंका है। लोगों की माने तो तांत्रिकों ओझाओं के घर वे लोग नही पहुंच पाए ,जो भूतों की गठरी साथ लेकर चलते थे। वैसे विज्ञान के इस युग में भूत-प्रेत काेे वहम माना जाता है। किसी को भूत और प्रेत बाधा के नाम पर बस बरगलाया जाता है। यह एक तरह की मानसिक बीमारी होती है। लेकिन गांव के आम जन इस वैज्ञानिकता को नहीं समझ पाते।