औरंगाबाद में जातीय समीकरण ने परिणाम में निभाई बड़ी भूमिका, जीत-हार पर जगह-जगह हो रही चर्चा
औरंगाबाद में विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के साथ जीत-हार पर चर्चा शुरू हो गई है। लोगों का कहना है कि एग्जिट पोल से उलट परिणाम आने का मतलब है कि लोगों ने विकास को वेाट दिया हालांकि जातिवाद भी हावी रहा।
जेएनएन, औरंगाबाद \गया। विधानसभा चुनाव का परिणाम जानने के लिए लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ा। मंगलवार की सुबह से ही लोग मतगणना का रुझान जानने और परिणाम का इंतजार कर रहे थे। वे टीवी, माेबाइल पर जानकारी लेते रहे। परिणाम आने शुरू हुए तो उसके फैक्टर पर चर्चा होने लगी। लोगों के अपने-अपने तर्क हैं। कोई विकास को परिणाम को प्रभावित करने वाला बता रहा था तो कोई जातीय समीकरण और प्रत्याशी के संपर्क को।
लोगों का मानना है कि बिहार की जनता ने विकास को चुना। हालांकि औरंगाबाद जिले में कई क्षेत्रों में जातिवाद प्रखर रूप से दिखा और उसका व्यापक असर चुनाव परिणाम पर पड़ा। मौला बाग़ में टीवी देख रहे राजद समर्थक मदन सिंह यादव, जदयू समर्थक सत्येंद्र कुमार सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता चितरंजन कुमार उर्फ लीडर, भाजपा के नगर महामंत्री मनोज केसरी, सुखाडी पाल, सुनील यादव, सुनील कुमार तांती आपस में चर्चा करते रहे। रुझान और परिणामों की संभावना के बीच आपसी चर्चा में लोगों का तर्क यही था कि बिहार की जनता ने विकास को चुना। हर जगह विकास पर वोट पड़े हैं, लेकिन औरंगाबाद जिला में जातिवाद एक बड़ा फैक्टर रहा। इसके साथ वोटों के बिखराव और भितरघात ने खेल बिगाड़ दिया। इनका मानना है कि जनता ने विकास को वोट दिया। यही कारण है कि एग्जिट पोल से उलट नतीजे आए।
एग्जिट को एक्जैक्ट हाेने में बड़ा अंतर: कहा गया कि बिहार में मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो खुलकर नहीं कहता कि उसने अपना मत किसे दिया है। यही कारण है कि एग्जिट पोल से उलट रिजल्ट आया है। एग्जिट पोल करने वाले लोग गलत साबित हुए। चर्चा में यह बात भी रही कि एग्जिट को एक्जैक्ट होने में बहुत का अंतर है। चर्चा के केंद्र में रहा कि औरंगाबाद जिले के सभी 6 सीटों पर कहीं ना कहीं एनडीए में भितरघात रहा और नतीजा इस तरह का सामने आया।