Move to Jagran APP

सुख-शांति चाहिए तो योग करो, अच्‍छे लोगों की संगति में जाओ, बुरे लोगों का साथ ले जाता विनाश की ओर

गया के जैन मंदिर में जैन मुनि विशुद्ध सागर जी ने शुक्रवार को प्रवचन किया। इस दौरान उन्‍होंने संगत के प्रभाव पर चर्चा की। कहा कि संगत अच्‍छी हो तो अच्‍छे संस्‍कार आते हैं। बुरी संगत विनाश की ओर ले जाती है।

By Vyas ChandraEdited By: Published: Sat, 09 Jan 2021 07:38 AM (IST)Updated: Sat, 09 Jan 2021 07:38 AM (IST)
सुख-शांति चाहिए तो योग करो, अच्‍छे लोगों की संगति में जाओ, बुरे लोगों का साथ ले जाता विनाश की ओर
प्रवचन करते जैन मुनि विशुद्ध सागर जी। जागरण

जागरण संवाददाता, गया। किसी के पास जाने पर उसका गुण आ जाता है। जैसे भट्ठे के समीप पहुंचो तो गर्मी महसूस होती है। इसी तरह सज्जनों के समीप पहुंचने पर सद्गुण और अच्‍छे संस्‍कार की प्राप्ति होती है। वहीं दुर्जन की समीपता से कुटिलता और बुरे गुण आते हैं। इसलिए हमेशा सज्‍जनों की समीपता प्राप्‍त करने की कोशिश करें। इसलिए कहा जाता है कि संगत से गुण आत हैं, संगत से गुण जात...। ये बातें शुक्रवार को शहर के जैन भवन में प्रवचन के दौरान जैन मुनि आचार्य 108 श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने कहीं।

loksabha election banner

उन्होंने कहा कि संस्कारों से पत्थर भी पूज्य हो जाता है। संस्कारों से भवों-भावों में सुख मिलता है। कुसंस्कार कोटि-कोटि भवों में कष्ट का कारण बनता है। इसलिए सुख-शांति की इच्‍छा है तो फिर कुसंस्‍कार को त्‍यागना ही होगा। इसके इच्छुक मानव को प्रयत्न पूर्वक कुसंस्कारों को छोड़कर सुसंस्कारों से स्वयं को संस्कारित करना चाहिए।

स्‍वयं को बदलिए, दूसरे में बदलने की उम्‍मीद नहीं करिए

जैन मुनी ने कहा कि भोग का आनंद कष्ट देता है। संताप देता है। आंतरिक आनंद को भंग कर देता है। योग का आनंद सत्य होता है। वह सदा आनंद रूप्‍ा ही होता है। भोग हमेशा विनाश की ओर ले जाता है, और योग उत्कर्ष कराता है। उन्होंने कहा कि सुख-शांति चाहिए तो स्‍वयं को बदलो। बदला लेने का विचार मत करो। बदलो स्वयं को दूसरे में बदलाव की आकांक्षा मत करो। बदलना प्रकृति का नियम है। बीज बदला और वृक्ष बना। भोजन बदला सप्‍त धातु बना। इ‍सलिए बदलना बहुत जरूरी है। शिशु बदला युवा हुआ, युवा वृद्ध हुआ, वृद्ध मरण को प्राप्त हुआ और पुन: जन्मा, बदलना प्रकृति का नियम है। उन्‍होंने कहा कि आंतरिक भावों की निर्मलता जरूरी है। क्‍योंकि मन शुद्ध नहीं होगा तो हमारे क्रियाकलाप में भी शुद्धता नहीं आएगी। इसलिए योग, सज्‍जनों की संगत, आंतरिक निर्मलता बहुत जरूरी है। कथा सुनने के लिए बड़ी संख्‍या में जैन श्रद्धालु पहुंचे थे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.