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इतिहास को रोचक और तथ्यात्मक बनाने में पुरातत्व का अहम योगदान

संवाद सहयोगी, टिकारी : ऐतिहासिक शोध और शोध पर आधारित इतिहास को रोचक और तथ्यात्मक बना

By JagranEdited By: Published: Thu, 17 Jan 2019 10:48 PM (IST)Updated: Thu, 17 Jan 2019 10:48 PM (IST)
इतिहास को रोचक और तथ्यात्मक बनाने में पुरातत्व का अहम योगदान
इतिहास को रोचक और तथ्यात्मक बनाने में पुरातत्व का अहम योगदान

संवाद सहयोगी, टिकारी : ऐतिहासिक शोध और शोध पर आधारित इतिहास को रोचक और तथ्यात्मक बनाने में पुरातत्व का अहम योगदान होता है। आसान शब्दों में कहें तो कोई भी खोज को तब तक ऐतिहासिक या इतिहास नहीं घोषित किया जा सकता है जब तक उसकी पुष्टि पुरातत्व से जुड़े विभिन्न आयामों, शोध और खोजबीन न हो जाए। उक्त बातें दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) के कुलपति प्रो. हरिश्चंद्र सिंह राठौर ने विवि के इतिहास एवं पुरातत्व विभाग द्वारा आयोजित 'हिस्टॉरिकल मेथड ऑफ रिसर्च फाइंडिंग रिसर्च कोस्चन्स ालिसिस एंड आउटपुट' विषय अपने व्याख्यान में गुरुवार को कही। उन्होंने कहा कि विश्व भर में सदियों से इतिहासकार एवं इतिहास के शोधार्थी इसी स्वरूप का अनुशरण करते हुए पुराने धरोहरों एवं सभ्यता की खोजबीन कर उसे उचित नामकरण किया जाता रहा है। हम यह कह सकते हैं कि इतिहास तथा पुरातत्व का परस्पर संबंध है और इसका ऐतिहासिक शोध में काफी महत्व है।

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प्रो. राठौर ने शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों को ऐतिहासिक शोध से जुड़े कई अहम बिंदुओं को काफी सरल अंदाज में समझाया और जोर देकर कहा कि बिना तथ्यों को सुनिश्चित किए किसी भी ऐतिहासिक खोज (अनुसंधान) को सार्वजनिक करने गलत परिणाम हो सकते हैं। इसलिए ऐतिहासिक शोध से मिले परिणाम को सार्वजनिक करने से पहले उससे जुड़े पहलुओं की सघनता से जांच व खोजबीन कर लेनी चाहिए।

आयोजित कार्यक्रम के संबंध में जनसंपर्क पदाधिकारी मो. मुदस्सीर आलम ने बताया कि कुलपति के साथ इतिहास एवं पुरातत्व के हेड डॉ. सुधाशु कुमार झा, स्कूल ऑफ सोशल साइंस के डीन प्रो. एसएन सिंह के साथ बड़ी संख्या में प्राध्यापक एवं विद्यार्थी मौजूद थे। इस अवसर पर डॉ. सुधाशु कुमार झा ने अपने स्वागत भाषण में हिस्टॉरिकल मेथड ऑफ रिसर्च से जुड़े विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला। वहीं व्याख्यान के सफल आयोजन में इतिहास विभाग के प्रध्यापक तथा छात्र एवं छात्राओं ने अहम योगदान दिया। कार्यक्रम के दौरान मंच संचालन छात्रा आस्था प्रिया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. नीरज ने किया।


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