उच्च शिक्षा बेदम, स्वास्थ्य सेवा व अन्य सुविधाओं का भी घोर अभाव
बिहार-झारखंड की सीमा पर डुमरिया-डालटनगंज मुख्य सड़क से उत्तर और दक्षिण में महुड़ी गाव बसा है। प्राथमिक और मध्य विद्यालय तो हैं लेकिन उच्च विद्यालय नहीं होने के कारण यहा के बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है। लड़के तो पास के राज्य झारखंड या फिर अन्य जगहों पर जाकर उच्च शिक्षा ग्रहण कर लेते हैं पर बालिकाएं वंचित रह जाती हैं। हालांकि आसपास के पंचायतों से इस पंचायत का शिक्षा दर बेहतर है।
गया । बिहार-झारखंड की सीमा पर डुमरिया-डालटनगंज मुख्य सड़क से उत्तर और दक्षिण में महुड़ी गाव बसा है। प्राथमिक और मध्य विद्यालय तो हैं, लेकिन उच्च विद्यालय नहीं होने के कारण यहा के बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है। लड़के तो पास के राज्य झारखंड या फिर अन्य जगहों पर जाकर उच्च शिक्षा ग्रहण कर लेते हैं पर बालिकाएं वंचित रह जाती हैं। हालांकि, आसपास के पंचायतों से इस पंचायत का शिक्षा दर बेहतर है।
डुमरिया प्रखंड मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूर बसे इस गाव के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन कृषि है। गाव में अधिकाश लोगों के पास कृषि योग्य भूमि है। यहां उच्च विद्यालय व उपस्वास्थ्य केंद्र का नहीं होना लोगों को खलती है।
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देश की सीमा पर तैनात
हैं यहां के लोग
डुमरिया प्रखंड में ग्यारह पंचायत हैं, जिनमें सबसे विकसित महुड़ी है। महुड़ी पंचायत का ही गांव है महुड़ी। तीन फसला खेती यहां की जाती है। यहां की आधी आबादी नौकरी में हैं। कुछ लोग दूध का व्यवसाय करते हैं। व्यवस्था और बुनियादी सुविधाओं से परिपूर्ण है यह गांव। इस गांव के आठ नौजवान देश की सीमा की सुरक्षा में तैनात हैं। दस लोग इंजीनियर हैं। रेंजर से लेकर है फोरेस्टर के पद पर यहां के लोग सेवा दे रहे हैं। यहां के पांच लोग शिक्षक हैं। कुछ शिक्षक के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
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साधन संपन्न हैं किसान
आहार, पोखर भी हैं। गाव में चार आगनबाड़ी केंद्र हैं। चार वार्ड वाले इस गांव में लगभग 525 घर हैं, जिनमें करीब 2500 की आबादी बसती है। किसानों के पास खेती के लिए अपना ट्रैक्टर भी है। डीजल पंपसेट और मोटरपंप से किसान अपनी फसलों की सिंचाई करते हैं।
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आपसी सौहार्द के बीच
लोग मनाते पर्व त्योहार
गाव में हिदू और मुसलमान एक साथ रहते हैं। दोनों धर्मो के लिए मंदिर, मस्जिद है। सभी आपस में मिलकर एक दूसरे का पर्व सौहार्दपूर्वक मनाते हैं। आपसी तालमेल से कई मामलों का निष्पादन पंचायत स्तर से कर लिया कर लेते हैं। इस गाव में अंधविश्वास की जगह नहीं है। बाल विवाह जैसी कुप्रथा से मुक्त है यह गांव।
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उपस्वास्थ्य केंद्र का अभाव
इस गांव में गर्मी के दिनों में पेयजल संकट गहरा जाता है। गाव में उपस्वास्थ्य केंद्र नहीं होने से लोगों को परेशानी से जूझना पड़ता है। पशुपालन विभाग द्वारा पशुओं का समुचित इलाज नहीं होता है।
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यहां उच्च विद्यालय नहीं
उच्च शिक्षा के लिए उच्च विद्यालय नहीं होने के कारण यहां के लड़के व लड़कियां गया शहर या फिर झारखंड के डाल्टेनगंज में रहकर पढ़ाई करते हैं। बाहर रहकर पढ़ाई कर लोग इंजीनियर बन रहे हैं। कई लोग सेना में कार्यरत हैं।
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इंदिरा आवास जर्जर
अनुसूचित जाति के लोगों के लिए इंदिरा आवास तो बना दिए गए हैं पर जर्जर हालत में हैं। गाव में एक जनवितरण प्रणाली की दुकान है। गांव में बारह से पंद्रह घंटे बिजली मिलती है। अक्सर बिजली की आंख मिचौली से लोग परेशान हो जाते हैं।
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मुखिया कभी घर से
बाहर नहीं निकलीं
महुड़ी पंचायत के मुखिया और पंचयात समिति सदस्य के पद पर महिलाओं का कब्जा है। मुखिया पर्दानसी होने के कारण उनका प्रत्येक कार्य उनके पति असलम खान करते हैं। मुखिया घर से बाहर नहीं निकलती हैं। नल जल और नाली गली पक्कीकरण की योजना धरातल पर नहीं उतरी है। सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल सका हैं।
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रोजगार की तलाश में
पलायन कर जाते युवक
बेरोजगार युवाओं का समूह दिल्ली, कोलकाता, मुंबई आदि जैसे महानगरों में टैंपो चलाते हैं। कुछ लोग पशुपालन भी करते हैं। बहुत से ऐसे शिक्षित बेरोजगार युवक हैं, जो झुंड के झुंड बनाकर रोजी रोटी की तलाश में दूसरे प्रदेशों में जाकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं।
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अनुसूचित जाति की
बस्ती में नहीं है सड़क
अनुसूचित जाति की बस्ती में जाने के लिए सुगम रास्ता तक नहीं है। इन लोगों को इंदिरा आवास योजना का लाभ नहीं मिल सका है। सरकारी चापाकल से पानी नहीं निकलता है।
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अनुसूचित टोले का
नहीं हुआ विकास
वार्ड संख्या दो की हालत बहुत खराब है। यहां महिलाओं की शैक्षणिक योग्यता बहुत कम है। अनुसूचित जाति के लोगों के लिए चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं का लाभ इन्हें नहीं मिल सका है। नाली और घर का पानी सड़कों पर ही बहता है। जर्जर सड़क और गंदगी के बीच यहां के लोग अपनी बदहाली पर आसू बहा रहे हैं।
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गांव के लोग बनते
रहे पंचायत प्रतिनिधि
इस गांव से कृष्ण मुरारी सिंह 1975 में सरपंच बने। इसके बाद मुखिया बने। 1978 में बिरहसप्त सिंह मुखिया बने। 2001 में तेजबहादुर सिंह मुखिया बने। 2001 में महुड़ी गांव से पंचयात समिति सदस्य मुकुंद पाठक बने। उसके बाद 2006 में पंचायत के मुखिया मुकुंद पाठक बने।
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पोखर का हो रहा जीर्णोद्धार
गांव के उत्तर में पहाड़ों के बीच एक बड़ा बाध है। छठ पर्व में लोग सूर्य को अर्घ्य देने के लिए पास के पोखर में जाते हैं। भाजपा के विधान पार्षद कृष्ण कुमार सिंह उर्फ कुमार बाबू द्वारा छठ पूजा के लिए पोखरा में सीढ़ी का निर्माण कराया जा रहा है। मुखिया पति असलम खान प्रत्येक वर्ष छठ घाट की सफाई और प्रकाश की व्यवस्था करते हैं।
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कहते हैं सेवानिवृत्त शिक्षक
सेवानिवृत्त शिक्षक राम पवित्र रजक का कहना है कि महुड़ी गांव में उच्च विद्यालय होता तो यहां की लड़कियों को उच्च शिक्षा से वंचित नहीं रहना पड़ता।
अनुज कुमार पाठक कहते हैं महुड़ी दो और वार्ड चार में पिछड़ों के उत्थान के लिए सरकार या पंचायत प्रतिनिधियों ने कोई काम नहीं किया। अल्पसंख्यक समुदाय के कल्याण के लिए भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। रणजीत ठाकुर का कहना है कि उनका सपना है गाव में सभी सुखी, शिक्षित हों। सबको रोजगार मिल सके।
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ग्राम कचहरी में अधिक मामले जमीन संबंधित विवाद से जुड़े आते हैं। उसे दोनों पक्षों के लोगों की सहमति के आधार पर निपटाया जाता है। सरकार द्वारा गांव में विकास योजना के तहत कार्य कराया जा रहा है।
रामबली पासवान, सरपंच, महुड़ी पंचायत
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प्रस्तुति: दिवाकर मिश्रा,
मोबाइल नंबर 9430666945