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गोसाई पेसरा कोठी में घुसकर अंग्रेजों की बताई थी औकात

पेज-3031 -गोसाई पेसरा गाव के गिरधारी यादव ने छुड़ा दिए थे पसीने -अंग्रेजी हुकूमत खत्म होने के बाद महंत श्रीशतानंद गिरि का कब्जा हुआ ------- -200 एकड़ भूमि पर खेतीबारी और जमींदारी चलती थी -02 आगन का मठ था बीच मठ में कुआं था ------------

By JagranEdited By: Published: Thu, 15 Aug 2019 01:45 AM (IST)Updated: Fri, 16 Aug 2019 06:41 AM (IST)
गोसाई पेसरा कोठी में घुसकर अंग्रेजों की बताई थी औकात

अमित कुमार सिंह, बाराचट्टी (गया)

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गया जिले के बाराचट्टी प्रखंड के अंतर्गत गोसाई पेसरा गाव में अग्रेजों की कोठी थी। यहा से उनकी हुकुमत चलती थी। बिना इनकी मर्जी के किसी की क्या मजाल की जुबान हिला दे। परंतु, इसी गाव के वीर पुत्र गिरधारी यादव ने 1942 के भारत छोड़ो आदोलन में अग्रेंजों को उनकी कोठी में ही घुसकर औकात बताई थी। अंग्रेजी हुकूमत खत्म होने के बाद इस कोठी पर महंत श्रीशतानंद गिरि बोधगया का कोठी पर कब्जा हुआ। इसका नाम कोठी से मठ हो गया और यहा महंत बैठने लगे। इस इलाके में दो सौ एकड़ भूमि पर खेती बारी और जमींदारी चलती थी।

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एक साथ 16 जोड़ी

हल चलता था खेतों में

गोसाई पेसरा मठ के कस्तकार इलाके में सैकड़ों एकड़ भूमि में फैला था। दो एकड़ में निर्मित मठ में गाय, बैल, भैंस को रखने के लिए तीन गोसाला थे। दो आगन का मठ था। बीच मठ में कुआं था, जहा सिर्फ महंत ही और उनके साथ रहने वाले लोग ही पानी का उपयोग करते थे। मठ की तरफ जाने से पहले कई पहरेदारों से गुजरना पड़ता था। उसके बाद उस रास्ते को पार करने के बाद ही लोग आते-जाते थे।

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जमीन को जो जोते बोए, वही

जमीन का मालिक होए

वर्ष 1975 के छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के आंदोलन ने बोधगया महंत की जमींदारी शासन को इस इलाके से समाप्त किया। भूमिहीनों के बीच यहा की अधिकाश जमीन महंत ने वितरण कर दिया। परंतु, गाव के लोगों ने मठ के आसपास की सारी भूमि को अपने गाव के स्वंतत्रता सेनानी गिरधारी यादव की याद में इस मठ को धरोहर के रूप बचाए रखा। आज मठ की जमीन के अधिकांश भाग पर लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा है।

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फोटो : जेपी सेनानी जानकी दास इस मठ पर अस्पताल और स्कूल बनाने की सोची थी गाव वालों ने

जेपी सेनानी और छात्र युवा सघर्ष वाहिनी के सिपाही गोसाई पेसरा शिवंगज बाजार निवासी जानकी दास कहते हैं कि मठ की भूमि पर आज जो अवैध कब्जा है उसके लिए स्थानीय प्रशासन प्रशासन जिम्मेदार है। कहते हैं मठ के किले को हमलोग गिरधारी जी की याद में धरोहर के रूप वितरण के वक्त बचा लिया था। मठ में एक सरकारी अस्पताल और स्कूल खुले यह गांव वालों की सोच थी। आंदोलन के बल पर गाव मे स्कूल तो खुल गए पर अस्पताल का सपना आज भी अधूरा है।

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मठ दो एकड़ से अधिक भूमि पर विशाल इमारत के रूप में खड़ा था, परंतु इसके अगल बगल की भूमि पर अवैध कब्जा है। यह दायरा धीरे-धीरे बढ़ ही रहा है। इसका अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर पहुंच गया है। समय रहते प्रशासन नहीं बचा सका तो एक एक ईट नजर नहीं आएगा। जमीन और अवशेष भी किसी न किसी के कब्जे में होगा।


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