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बिहार की इन बेटियों को पसंद है चुनौती, इनके इशारे पर चलती है मालगाड़ी

बिहार की दो बेटियों ने जब मालगाड़ी की कमान पहली बार संभाली तो देखकर लोगों को खुशी के साथ हैरानी भी हुई कि बेटियां मालगाड़ी चलाएंगी। इन के इशारे पर अब मालगाड़ी सीटी बजाती चलती है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Fri, 12 Oct 2018 01:08 PM (IST)Updated: Fri, 12 Oct 2018 11:03 PM (IST)
बिहार की इन बेटियों को पसंद है चुनौती, इनके इशारे पर चलती है मालगाड़ी
बिहार की इन बेटियों को पसंद है चुनौती, इनके इशारे पर चलती है मालगाड़ी

गया [सुभाष कुमार]। बिहार की दो बेटियां जिन्हें चुनौतियां पसंद थीं, दोनों को नौकरी भी मिली एेसी कि पहले किसी ने ना की थी। दोनों की जब नौकरी लगी मालगाड़ी के गार्ड के तौर पर तो लोगों का कहना था अब बेटियां मालगाड़ी भी चला लेंगी। इन दोनों ने साबित कर दिखाया कि लड़कियां क्या नहीं कर सकतीं।

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इस साल की 18 जुलाई को सैकड़ों निगाहें ताक रही थीं उन दोनों और गार्ड के उस डिब्बे को, जिस पर गार्ड की ड्रेस में सवार थीं दो युवतियां। दोनों के हाथ में हरी झंडी और इस झंडी के इशारे पर ही खुलनी थी मालगाड़ी। झंडी हिलते ही मालगाड़ी सरकी, इसी के साथ एक और क्षेत्र में दर्ज हो गई महिलाओं की उपस्थिति।

बिहार के गया ही नहीं, पूर्व मध्य रेल जोन के लिए यह पहला मौका था, जब कोई महिला मालगाड़ी लेकर चली हो। इसी के साथ गया से दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन तक हर दिन का यह सफर शुरू हो गया। ऋतु रेखा और ज्योति कुमारी, ये दोनों बिटिया बिहार की हैं।

जहानाबाद जिले के परसविगहा थाना क्षेत्र स्थित नेहालपुर गांव के रहने वाले सतीश चंद्र प्रसाद की बेटी हैं ज्योति कुमारी। पिता सतीश साधारण किसान हैं। मां सविता सिंह डुमरांव में नर्स। ज्योति बताती हैं कि मैटिक की परीक्षा डुमरांव से ही पास की। नालंदा ओपेन यूनिवर्सिटी से एमए किया। बैंकिंग परीक्षा के साथ-साथ रेलवे की भी तैयारी कर रही थी। परीक्षा में सफल हो गई।

पहली बार मालगाड़ी लेकर चली तो अपने अंदर एक आत्मविश्वास था। जंगल-पहाड़, खेत-खलिहानों को देखते हुए मालगाड़ी लेकर गुजरना। बहुत अच्छा लगता है।

ऋतु रेखा साह मुजफ्फरपुर के पुरानी बाजार निवासी रामनारायण सिंह की बेटी हैं। पिता व्यवसायी हैं, मां गृहणी। पढ़ाई-लिखाई वहीं से हुई। स्नातक करने के बाद प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी की। पहली बार में ही सफलता मिल गई और मिल गई मालगाड़ी की कमान। ऋतु का एक भाई डॉक्टर है, बहन इंजीनियर। लेकिन ऋतु को यह नौकरी भा गई, जहां कुछ चुनौतियां हो, उन्हें ऐसी नौकरी ही पसंद थी।

ज्योति और ऋतु का मानना है कि महिलाएं जब तक हर क्षेत्र में नहीं आएंगी, सशक्तीकरण की बात बेमानी है। अभी भी ऐसे क्षेत्र हैं, जहां महिलाओं की उपस्थिति नगण्य है।

ये दोनों बेटियां नियमित रूप से गया से मालगाड़ी लेकर जाती हैं। कोई तनाव नहीं होता। दर्जनों डिब्बों वाली मालगाड़ी। जंगल, खेत, पहाड़। सुनसान राह। सबसे अंतिम डिब्बे में दो महिला गार्ड। सीटी बजाती मालगाड़ी चली जा रही है, जिसकी देखरेख की कमान महिला गार्ड के हाथ में है। कम चुनौतीपूर्ण नहीं है यह काम। लेकिन ऋतु और ज्योति नई कहानी लिख रही हैं जो औरों के लिए प्रेरणा है।


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