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Gaya: गैंडों के संरक्षण के लिए सीयूएसबी में विशेष व्याख्यान का आयोजन, वक्‍ताओं ने रखी अपनी राय

कैसे गैंडों के पोषण स्वास्थ्य प्रजनन और सहायक प्रजनन तकनीकों पर ध्यान केंद्रित करके एवं एक एकीकृत प्रबंधन दृष्टिकोण अपनाकर उनका संरक्षण किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कैद में रखे गए गैंडों के आहार में परिवर्तन के परिणामस्वरूप हार्मोन के स्तर में भी बदलाव होता है।

By Prashant KumarEdited By: Published: Thu, 16 Sep 2021 03:02 PM (IST)Updated: Thu, 16 Sep 2021 03:02 PM (IST)
Gaya: गैंडों के संरक्षण के लिए सीयूएसबी में विशेष व्याख्यान का आयोजन, वक्‍ताओं ने रखी अपनी राय
गैंडों की कमी पर व्याख्यान में शामिल वक्‍ता। जागरण।

संवाद सहयोगी, टिकारी (गया)। पृथ्वी पर गैंडों की संख्या दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है और इनका शुमार लुप्तप्राय जानवरों में होता है। गैंडों की संख्या में कमी विभिन्न कारणों से हो रही है जो एक चिंताजनक विषय है। इसी अभिप्राय को ध्यान में रखकर दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) के जीवन विज्ञान विभाग द्वारा "गैंडों के संरक्षण के लिए एकीकृत प्रबंधन" विषय पर एक विशेषज्ञ व्याख्यान का आयोजन किया गया। जन संपर्क पदाधिकारी मो. मुदस्सिर आलम ने बताया कि विभाग की लेक्चर सीरीज के तहत ऑनलाइन माध्यम से इस विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया था। सेंटर फॉर स्पीशीज सर्वाइवल, स्मिथसोनियन नेशनल जूलॉजिकल पार्क एंड कंजर्वेशन बायोलॉजी इंस्टीट्यूट फ्रंट रॉयल, वर्जीनिया, यूएसए में रिसर्च फिजियोलॉजिस्ट के तौर पर कार्यरत डॉ. बुधन एस. पुकाजेंथी वेबिनार के मुख्य वक्ता थे।

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डॉ. पुकाजेंथी ने बताया कि कैसे गैंडों के पोषण, स्वास्थ्य, प्रजनन और सहायक प्रजनन तकनीकों पर ध्यान केंद्रित करके एवं एक एकीकृत प्रबंधन दृष्टिकोण अपनाकर उनका संरक्षण किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कैद में रखे गए गैंडों के आहार में परिवर्तन के परिणामस्वरूप हार्मोन के स्तर में भी बदलाव होता है। जिससे प्रजनन अतुल्यकालिकता और उनकी प्रजनन क्षमता में कमी आती है। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि सीमित आहार के कारण  काले और सफेद गैंडों के माइक्रोबायोटा प्रभावित होता है। इसके साथ लोहे का अधिभार गैंडों के आंत में माइक्रोबायोटा की संरचना को बदल देता है। जिससे हेमोसिडरोसिस जैसी स्थितियां पैदा होती है और गैंडों के अस्तित्व को प्रभावित करती हैं।

अपने व्याख्यान में डॉ. पुकाजेंथी ने उन प्रमुख कारकों पर भी प्रकाश डाला जो एक अच्छी तरह एकीकृत रणनीति को तैयार करने के लिए आवश्यक है। उन्होंने कहा कि एक सदृढ़ एकीकृत रणनीति की सहायता से विलुप्त होने के कगार पर खड़े कमजोर गैंडों का संरक्षण किया जा  सकता है। व्याख्यान के संरक्षक कुलपति प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह ने जैव विविधता संरक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने प्रजातियों के विलुप्त होने की बढ़ती दर पर चिंता व्यक्त की और सीटू और एक्स सीटू संरक्षण के लिए वैश्विक प्रयासों की सराहना की।

आयोजित वेबिनार में देश और विदेश से 100 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया। जिसमे डॉ. थेया शंकर, उप निदेशक, वेंडलूर चिड़ियाघर; प्रो. अमिता कन्नौजिया, प्रमुख, वन्यजीव विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय; प्रो. नीता शाह, बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी; और अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों जैसे सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री, कोयंबटूर; तमिलनाडु पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, चेन्नई; बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय; असम विश्वविद्यालय, कार्मेल कॉलेज फॉर विमेन, गोवा; बोडोलैंड विश्वविद्यालय, असम; भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून; भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली राष्ट्रीय चिड़ियाघर, नई दिल्ली आदि शामिल थे।

कार्यक्रम के अंत में संयोजक और जीव विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. राम प्रताप सिंह ने मुख्य वक्ता सहित अतिथि प्रतिभागियों के प्रति आभार प्रकट किया। उन्होंने प्रॉक्टर प्रो. उमेश कुमार सिंह, छात्र कल्याण अधिष्ठाता (डीएसडब्लू) प्रो. आतिश पाराशर और विभिन्न स्कूलों के डीन और प्रतिभागियों को उनकी उपस्थिति और प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद दिया। वेबिनार को सफल बनाने में जीवन विज्ञान विभाग के अध्यक्ष के साथ प्राध्यापक डॉ. गौतम कुमार, डॉ. अमृता श्रीवास्तव, डॉ. तारा काशव, डॉ. मनोज पांचाल, डॉ. नवीन कुमार सिंह एवं डॉ. संजय कुमार ने सक्रिय भूमिका निभाई।


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