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कोरोना काल में असमय जान गंवाने वालों के माेक्ष की कामना, गया के डिप्‍टी मेयर ने किया पिंडदान

वैश्विक महामारी कोरोना (Covid Pandemic) से जान गवांने वाले लोगों के लिए सोमवार को देवघाट स्थित फल्गु तट पर सामूहिक पिंडदान किया गया। यह पहल नगर निगम के डिप्टी मेयर अखौरी ओंकार नाथ उर्फ मोहन श्रीवास्तव ने की।

By Vyas ChandraEdited By: Published: Tue, 05 Oct 2021 07:40 AM (IST)Updated: Tue, 05 Oct 2021 07:53 AM (IST)
कोरोना काल में असमय जान गंवाने वालों के माेक्ष की कामना, गया के डिप्‍टी मेयर ने किया पिंडदान
देवघाट पर सामूहिक पिं‍डदान करते उपमहापौर। जागरण

गया, जागरण संवाददाता। महामारी कोरोना (Covid Pandemic) से जान गवांने वाले लोगों के लिए सोमवार को देवघाट स्थित फल्गु तट पर सामूहिक पिंडदान किया गया। यह पहल नगर निगम के डिप्टी मेयर अखौरी ओंकार नाथ उर्फ मोहन श्रीवास्तव ने की। उन्‍होंने परिवार के साथ सामूहिक पिंडदान कर कोरोना में असमय काल के गाल में समाने वाले लोगों के मोक्ष की कामना की। गजाधर मंदिर स्थित आचार्य मौसम बाबा ने पूरे विधि-विधान से कर्मकांड संपन्न कराया। कर्मकांड संपन्‍न होने के बाद उन्होंने ब्राह्मण व दरिद्र भोज कराया।

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डिप्‍टी मेयर ने सपरिवार किया पिंडदान 

डिप्टी मेयर ने कहा कि कोरोना के दौरान जहां नगर निगम ने लावारिश शवों का पूरे विधि विधान के साथ दाह संस्कार किया था। असमय मौत के मुंह में जाने वाले ऐसे लोगों की आत्मा की शांति और उन्‍हें मोक्ष प्राप्ति के लिए सपरिवार पिंंडदान कर तर्पण-अर्पण किया। ताकि उन्हें आत्मा की शांति मिल सके। क्‍योंकि कोरोना की वजह से हजारों लोगों को मुखाग्नि तक नसीब नहीं हो सकी थी। ऐसे लावारिस शवों की अंत्‍येष्टि नगर निगम ने कराई अब उनकी आत्‍मा की शांति के लिए पिंडदान किया गया है। मौके पर तीर्थ वृतसुधारणी सभा के अध्यक्ष पंडित गजाधर लाल कटिहार, वार्ड पार्षद प्रतिनिधि सुदामा कुमार दुबे, सागर सहित अन्य मौजूद थे। 

पिता के बाद पुत्र निभा रहे उनकी जिम्‍मेदारी 

बता दें कि पूर्वजों की आत्‍मा की शांति के लिए गयाजी में देश ही नहीं विदेशों से भी लेाग आते हैं और यहां पिंडदान करते हैं। मान्‍यता है कि मृत्‍यु के बाद आत्‍मा को शांति तब ही मिलती है जब पितृपक्ष में पिंडदान किया जाए। बीते दिनों डिप्‍टी मेयर की तरह ही सूर्यकुंड के रहने वाले चंदन कुमार सिंह ने पितृपक्ष में कोरोना समेत हादसे के शिकार लोगों के लिए पिंडदान और तर्पण किया। चंदन के पिता ने भी 13 वर्षों तक ऐसा किया। उनके निधन के बाद चंदन ने इसकी शुरुआत की है। क्‍योंकि पिता ने कहा था कि वे रहें या न रहें परंपरा आगे भी चलती रहेगी।  


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