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Gaya Pinddan: विष्णुपद मंदिर के पट बंद, मगर प्रतिदिन पिंडदान का हो रहा है कर्मकांड

गया का प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर का पट पिछले पांच मई से बंद है। मगर पंचकोषम् गया तीर्थम् की धारणा पर प्रतिदिन पिंडदान का कर्मकांड हो रहा है। पिंडदान अर्पित करने की वैदिक परंपरा का निर्वहन यहां हर हाल में जारी रहता है।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Sat, 19 Jun 2021 09:33 AM (IST)Updated: Sat, 19 Jun 2021 09:33 AM (IST)
Gaya Pinddan: विष्णुपद मंदिर के पट बंद, मगर प्रतिदिन पिंडदान का हो रहा है कर्मकांड
फल से हुआ भगवान विष्णु के चरण का श्रृंगार, फाइल फोटो ।

गया, जागरण संवाददाता। गया तीर्थ पर एक किंवदंती है कि भगवान विष्णु ने गयासुर की तपस्या पर प्रसन्न होकर वरदान दिया था कि- इस स्थान पर प्रतिदिन एक पिंड अर्पित किया जाएगा। यह बात कई धर्म पुराणों में भी वर्णित है। इस आधार पर गया में प्रतिदिन एक पिंड देने की व्यवस्था है। पिछले पांच अप्रैल से विष्णुपद मंदिर का पट बंद है। दैनिक पूजा के अतिरिक्त आम श्रद्धालु के दर्शन नहीं होते हैं। वैसे में पिंडदान अर्पित करने की इस वैदिक परंपरा का निर्वहन यहां आज भी जारी है।

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फल्गु तट के देवघाट पर पिंडदान

विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के कार्यकारी अध्यक्ष शंभू नाथ बिठ्ठल बताते हैं कि गया तीर्थ सिर्फ विष्णुपद मंदिर ही नहीं है। यहां पांच कोस में गया तीर्थ है। इस पांच कोस के क्षेत्र में पिंडदान का कर्मकांड किया जाता है। वह सफल है। बिठ्ठल का कहना है कि मंदिर बंद होने के बावजूद पितृ को पिंडदान करने की प्रक्रिया फल्गु तट के देवघाट पर किया जाता है। रोज एक-दो पिंड दिया जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि चूंकि आवागमन बंद है। श्रद्धालुओं की संख्या नहीं के बराबर है। वैसे में उत्तर बिहार से कुछ श्रद्धालु गयाजी आते हैं और अपना कर्मकांड फल्गु घाट पर करते हैं। अभी तक यह वैदिक परंपरा कायम है।

यहां यह भी बता दें कि कोरोना की पहली लहर में जब पूरी तरह लाक डाउन था, लोगों का सड़क मार्ग या रेल मार्ग से आना बंद था। वैसे में गया के तीर्थ पुरोहित ने कर्मकांड का भार स्वयं उठाया। तीर्थ पुरोहित गयापाल समाज के लोगों ने बारी-बारी से अपने-अपने पितरों को पिंडदान व तर्पण कर परंपरा को कायम रखा। यह कार्य पूरे लाक डाउन के दौरान चला। चूंकि  धार्मिक मान्यता से ओतप्रोत यह समाज किसी भी प्रकार के परंपरा को कायम रखने के लिए कटिबद्ध होते हैं। उस दौरान समिति ने पूरी तरह से सहयोग कर अपने समाज के लोगों को इस कार्य के लिए प्रेरित किया। और उस दौरान अच्छे ढंग से पट बंद रहने के बाद भी पांच कोस के अंदर विभिन्न पिंडवेदियों पर कर्मकांड पूरा किया गया।

विदित है कि गयाजी मोक्ष की भूमि है। कालांतर से यहां पितरों के पिंडदान करने की परंपरा रही है। इसी के तहत प्रतिवर्ष एक पखवारे का पितृपक्ष मेला भी लगता है। जिसमें देश-विदेश के श्रद्धालु आते हैं। गयाजी के पांच कोस में 54 पिंडवेदी हैं। जिन पिंडवेदियों पर श्रद्धालु अपने पूर्वजों को पिंडदान कर उन्हें मोक्ष की कामना करते हैं और गया तीर्थ के पुरोहितों से अपने परिवार की सुख-समृद्धि की अराधना करते हैं।


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