स्कूल में जगह नहीं, बिना पढ़े घर लौटना मजबूरी
अमित कुमार सिंह, बाराचट्टी प्लस टू तक के 1107 विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए यहां महज
अमित कुमार सिंह, बाराचट्टी
प्लस टू तक के 1107 विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए यहां महज चार कमरे हैं। निर्धारित 12 की जगह छह शिक्षक ही तैनात हैं। विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, हिन्दी और अर्थशास्त्र विषय के शिक्षक हैं ही नहीं। बेंच-डेस्क का भी घोर अभाव है। कई बार सहपाठियों से नोकझोंक हो जाती है तो कई बार बैठने के लिए जगह नहीं मिलने पर घर लौटना पड़ता है।
हम बात कर रहे हैं वर्ष 1965 में प्रखंड के गजरागढ़ में स्थापित राज समपोषित उच्च विद्यालय की। इस स्कूल में तीन पंचायत के करीब 400 गांवों के विद्यार्थी पढ़ने आते हैं। कमरे और शिक्षकों के अभाव में एक कमरे में कई कक्षाएं चलती हैं। इस कारण बच्चे की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। कोर्स पूरा करने के लिए विद्यार्थियों को कोचिंग का सहारा लेना पड़ता है। हालांकि, विद्यालय में कुल आठ कमरे हैं। इनमें से एक में कार्यालय, एक में प्रयोगशाला, एक में लाइब्रेरी और एक में स्टोर और बाकी बचे चार कमरों में कक्षाएं लगती हैं। पास ही एक भवन और है, जो खंडहर बन चुका है। विद्यार्थी और शिक्षकों को हर समय भवन के धराशायी होने का डर सताता रहता है। प्रशासन को कई बार भवन को ढहाने के लिए आवेदन दिया गया, लेकिन आज तक इस ओर ध्यान नहीं दिया गया है।
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शौच के लिए जाना
पड़ता है बाहर
1107 विद्यार्थी और स्कूल के स्टाफ के लिए महज दो शौचालय है। इस कारण सभी परेशान है। अधिकतर विद्यार्थियों को शौच के लिए बाहर ही जाना पड़ता है।
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परिसर में जमा
रहता है गंदा पानी
पेयजल के लिए स्कूल में नल की कोई व्यवस्था नहीं है। तीन चापानल लगे हैं, जिसके पानी के बहाव की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है। इसके कारण स्कूल प्रागण में गंदा पानी जमा रहता है।
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जर्जर भवन के गिरने का डर
हर समय सभी को पुराने भवन के गिरने का डर सताता रहता है। शौच के लिए बच्चों को पुराने भवन की ओर जाना पड़ता है। यहा शिक्षकों के साथ शौचालय, बेंच-टेबल की भी भारी कमी है। इस समस्या से कई बार विभाग के वरीय पदाधिकारियों को पत्राचार के माध्यम से अवगत कराया गया है।
बच्ची कुमारी, प्रधानाध्यापक
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हमलोगों को कोचिंग सेंटर मे पढ़ना मजबूरी है, क्योंकि यहा एक ही कमरे में कई कक्षाएं लगती हैं। हमलोगों को जो समझ में आया उस पर अमल करते हैं। अच्छी तरह से बैठने के लिए भी जगह नहीं मिलती है। एक डेस्क-बेंच पर चार से पाच विद्यार्थी बैठते हैं।
मोजफिर अंसारी, दसवीं
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कभी-कभी एक ही शिक्षक हमलोगों को सभी विषयों की पढ़ाई कराते हैं। कई विषय तो शिक्षकों द्वारा बताने पर समझ में नहीं आता है। डेस्क-बेंच पर जगह नहीं रहने के कारण किताब-कॉपी को संभालकर रखना मुश्किल हो जाता है।
अंशु कुमार, दसवीं
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स्कूल मे मात्र दो शौचालय है। पानी चापानल से भरकर ले जाना पड़ता है। कभी-कभी तो लड़कियों को भी बाहर खेत व आहर की तरफ शौच के लिए जाना पड़ता है। यहा और शौचालय बनाना बहुत जरूरी है।
ईश्वर कुमार, दसवीं
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अधिक विद्यार्थी होने के कारण कई बार हमलोग घर लौट गए हैं। बैठने के लिए जगह नहीं मिलती है। यहां जो पहले आता है उसे ही जगह मिलती है। कई बार जगह को लेकर सहपाठियों से नोकझोंक तक हो जाती है। कई विषय के शिक्षक नहीं हैं, जिस कारण पढ़ाई अच्छी तरह से नहीं हो पाती है।
पंकज कुमार, दसवीं
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एक ही शिक्षक कई विषय को पढ़ाते हैं। जगह नहीं होने से परेशानी होती है। शिक्षकों के अभाव में विज्ञान, समाजिक विज्ञान, हिन्दी एवं अर्थशास्त्र की पढ़ाई नहीं होती है।
अबुबकर रहमानी, दसवीं