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कर्मी से बने फैक्ट्री के मालिक, रोजगार देकर दूर कर रहे लोगों की गरीबी, जानिये कैसे अवसर में बदली आपदा

बिक्रमगंज प्रखंड के आनंद मोहन ने इंजीनियरिंग की डिग्री ली थी। उसके बाद उन्होंने हिमाचल प्रदेश में छह माह का विशेष प्रशिक्षण प्राप्त कर बहुराष्ट्रीय कंपनियों में लाखों के सालाना पैकेज पर नौकरी करते थे। लाकडाउन में नौकरी गई तो घर लौट आये।

By Prashant Kumar PandeyEdited By: Published: Thu, 06 Jan 2022 05:33 PM (IST)Updated: Fri, 07 Jan 2022 10:53 AM (IST)
कर्मी से बने फैक्ट्री के मालिक, रोजगार देकर दूर कर रहे लोगों की गरीबी, जानिये कैसे अवसर में बदली आपदा
सासाराम में प्लास्टिक की फैक्ट्री में काम करते कर्मी

 आदर्श कुमार तिवारी, सासाराम : रोहतास। कहते हैं कि लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। सोहनलाल द्विवेदी की ये पंक्तियां जिले के युवा उद्यमी आनंद मोहन उर्फ टुनटुन सिंह पर सटीक बैठती हैं। वे गांव में फैक्ट्री डाल दो दर्जन से अधिक लोगों को रोजगार दे गरीबी उन्मूलन के वाहक बन गए हैं। उनकी कंपनी का सलाना टर्न ओवर एक करोड़ से अधिक हो गया है। बिक्रमगंज प्रखंड के धावां गांव निवासी आनंद मोहन ने 2009 में लखनऊ से सीपेट प्लास्टिक इंजीनियरिंग की डिग्री ली थी। उसके बाद उन्होंने हिमाचल प्रदेश में छह माह का विशेष प्रशिक्षण प्राप्त कर बहुराष्ट्रीय कंपनियों में लाखों के सालाना पैकेज पर नौकरी करते थे। 

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कर्मी से फैक्ट्री मालिक बने आनंद मोहन

फैक्ट्री में तैयार सम्मान व कर्मी

उद्योग मंत्री ने किया था फैक्ट्री का दौरा

देश में कोरोना का प्रकोप बढ़ा तो लाकडाउन लग गया। ऐसी स्थिति में आनंद मोहन की नौकरी चली गई और वे बेरोजगार का तगमा लिए गांव लौट गए। इंजीनियर आनंद ने फिर भी हार नहीं मानी और अपनी दृढ इच्छाशक्ति के दम पर गांव में ही 2019 में एक प्लास्टिक फैक्ट्री की नींव रख बिना सरकारी मदद के ही स्वरोजगार की ओर चल पड़े। गत वर्ष सितंबर माह में उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन ने भी रोहतास यात्रा के दौरान इनकी फैक्ट्री का मुआयना किया था और उनके इस प्रयास की तारीफ की थी। 

 फैक्ट्री में तैयार हो रहे प्लास्टिक के प्लेट

एक कमरे से हुई काम की शुरुआत :

काम की शुरुआत एक छोटे से कमरे में प्लास्टिक के फ्रिज बाटल बनाने से हुई। उस समय लगभग छह लाख रुपये की बोतल बनाने वाली मशीन से पांच श्रमिकों के साथ काम की शुरुआत हुई थी। आज इनकी फैक्ट्री में प्लास्टिक से बने हाटपाट, बैठने का स्टूल, प्लास्टिक मग, डस्टबिन, डस्टपैन समेत प्लास्टिक के घरेलू उपयोग के आठ प्रकार के उत्पाद तैयार होते हैं। इनके सभी उत्पाद बड़े ब्रांडों के उत्पादों की तरह के ही हैं। फर्क सिर्फ इतना है की सभी सामान अन्य ब्रांडों के मुकाबले काफी सस्ते व टिकाऊ हैं।

लगभग दो दर्जन से अधिक लोगों को मिला रोजगार :

ग्रामीण इलाके की इस फैक्ट्री में आज 26 लोग प्रतिदिन काम करते हैं। इसमें सबसे अधिक संख्या महिलाओं की है। आनंद के अनुसार सभी कामगार स्थानीय हैं। इन सभी लोगों को उन्होंने स्वयं प्रशिक्षण देकर मशीन पर कार्य करने में दक्ष बनाया है। आनंद आज अपने हुनर की बदौलत खुद का रोजगार खड़ा कर उससे स्थानीय लोगों को जोड़ उनकी गरीबी दूर करने में लगे हैं।

देश के अन्य राज्यों तक है इनका बाजार :

यहां बने उत्पाद देश के कई राज्यों के बाजारों तक पहुंचते हैं। ये प्रोडक्ट राजस्थान के गंगानगर, हरियाणा के करनाल, पानीपत, उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कानपूर, प्रयागराज, वाराणसी, गोरखपुर व झारखंड के रांची, जमशेदपुर समेत राज्य के अन्य बाजारों तक पहुंचते हैं। कंपनी का लगभग एक करोड़ से अधिक का सालाना टर्न ओवर हो गया है।

कहते हैं आनंद मोहन : 

ई. आनंद मोहन के अनुसार वे देश की बड़ी कंपनियों में अच्छे पैकेज पर काम करते हुए भी कभी संतुष्ट नहीं रहे। अपने गांव के आसपास ही स्वरोजगार को बढ़ाने के प्रयास में 2013 से ही लगे थे। इस बीच कोरोना काल की आपदा ने उसे अवसर के रूप में बदलने का मौका दे दिया। दो साल में ही अपना व्यवसाय चल निकला।


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