आखिरकार ध्वस्त हो गया मुगलकालीन छत्तर दरवाजा, 17वीं सदी में बनाए गए इस दरवाजे को ट्रक ने धक्का मार कर दिया था क्षतिग्रस्त
दाउदनगर स्थित मुगलकालीन छत्तर दरवाजा आखिरकार धराशायी हो ही गया। दैनिक जागरण ने इसके संबंध में आशंका जताई थी। प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराया था। बावजूद जिला प्रशासन बेपरवाह बना रहा। आम जन ने इसके निर्माण की मांग की है।
जेएनएन औरंगाबाद\ गया। और अंततः छत्तर दरवाजा का एक स्तंभ ध्वस्त हो ही गया। भारी मालवाहक वाहन से इसमें ठोकर लगी थी। 30 अक्टूबर को दैनिक जागरण ने कभी भी ध्वस्त हो सकता है 17 वीं सदी का छत्तर दरवाजा शीर्षक से खबर प्रकाशित की थी। फिर 31 अक्टूबर को नगर परिषद ने जिला पदाधिकारी से मांगा दिशानिर्देश खबर प्रकाशित की गई। इसके बावजूद प्रशासन नहीं चेता। कोई कार्रवाई प्रशासन करता इससे पहले ही यह ऐतिहासिक दरवाजा ध्वस्त हो गया।
महत्वपूर्ण है कि दाऊद खान का किला बिहार सरकार के पुरातत्व विभाग के संरक्षित स्थलों की सूची में शामिल है। जिसका अभिन्न हिस्सा यह दरवाजा है। लेकिन अब यह भी इतिहास बनता जा रहा है। यह दरवाजा बैनर-पोस्टर टांगने की जगह बन गया था। आज भी इसे देखा जा सकता है। धक्के से क्षतिग्रस्त होने के बाद दैनिक जागरण लगातार इसके ध्वस्त होने की आशंका जताता रहा। दैनिक जागरण ने इस मुद्दे को उठाया था। तब नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी जमाल अख्तर ने बताया था कि डीएम से इस संबंध में दिशानिर्देश की मांग की गई है। क्योंकि यह पुरातत्व विभाग के अधीन है। इसलिए बिना अनुमति के कोई भी कार्य नहीं किया जा सकता। इस निर्देश के इंतजार में आखिरकार यह ऐतिहासिक धरोहर मिटने के कगार पर पहुंच गया है। जानकारों की मानें तो अब इस तरह का दरवाजा का स्तंभ बनाया जाना मुश्किल है। क्योंकि उस समय के ईंट अलग थे। हालांकि प्रशासन चाहे तो उसकी अनुकृति खड़ा कर सकता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस ऐतिहासिक संरचना के शेष बचे एक स्तंभ की तो रक्षा प्रशासन करे।साथ ही जो हिस्सा क्षतिग्रस्त हुआ है, उसकी अनुकृति बनाई जाए। इसको शहर के प्रवेश द्वार का स्वरूप दिया जाए। क्योंकि यह हमारे शहर की पहचान से जुड़ा है। ऐसे लोगों पर कार्रवाई भी की जाए जो इस पर बैनर पोस्टर चिपका देते हैं।