भभुआ: सेवानिवृत्त होने के बाद भी शिक्षा की अलख जगा रही ललिता, 85 वर्ष की उम्र में भी पढ़ाने का है उत्साह
40 साल की नौकरी में कई उतार-चढ़ाव भी देखी। जब रामगढ़ में कुछ जगहों पर सरकारी विद्यालय संचालित था तब कन्या पाठशाला के रूप में गोड़सरा विद्यालय स्थापित था। नौकरी के दौरान स्थानांतरण भी दूसरे जगह हुआ। लेकिन शिक्षिका ललिता देवी अपने उद्देश्य से नहीं भटकी।
संवाद सूत्र, रामगढ़: 80 वर्ष की हड्डी में जागा जोश पुराना था। इस उक्ति को चरितार्थ कर रही हैं रामगढ़ प्रखंड के गोड़सरा गांव की सेवानिवृत्त शिक्षिका ललिता देवी। इनके पति मारकंडेय तिवारी थे जिनका निधन दस वर्ष पूर्व हो गया। वे अपने जीवनकाल में नामी पहलवान थे। अपने जीवनकाल में मारकंडेय तिवारी ने अपनी पत्नी के कार्यों में भरपूर सहयोग किया। पति के निधन के बाद पुत्र के सहयोग से आज भी सामाजिक कार्याें में बढ़ चढ़ कर भाग लेती हैं। 85 वर्ष की उम्र में भी उनमें बच्चों को पढ़ाने का एक उत्साह है। कभी घर गृहस्थी का कार्य देख स्कूलों में बच्चों को शिक्षा देती थीं।
सामाजिक सरोकार में भी हाथ बंटाती हैं
40 साल की नौकरी में कई उतार-चढ़ाव भी देखीं। जब रामगढ़ में कुछ जगहों पर सरकारी विद्यालय संचालित था तब कन्या पाठशाला के रूप में गोड़सरा विद्यालय स्थापित था। नौकरी के दौरान स्थानांतरण भी दूसरे जगह हुआ। लेकिन शिक्षिका ललिता देवी अपने उद्देश्य से नहीं भटकीं। इनके पढ़ाए छात्र-छात्रा आज भी कई जगहों पर उच्च अधिकारी बन देश की सेवा कर रहे हैं। नौकरी के दौरान भी उन्होंने अपना अधिकतर समय परिवार समाज के लिए दिया। जिसकी सर्वत्र सराहना भी हो रही है। सामाजिक सरोकार में भी हाथ बंटाती हैं।
ज्ञान की रोशनी देने में आनंद मिलता है
दीन-दुखियों की सेवा को ही वह पूजा समझती हैं। सेवानिवृत्ति के 21 वर्ष बाद भी वह बिना चस्मा के धारा प्रवाह बोलती व पुस्तक पढ़ाती हैं। आज भी वे कुछ बच्चों को बैठा कर अपने दरवाजे पर उन्हें सेवाभाव से पढ़ाती हैं। बच्चों के पठन-पाठन के दौरान उनको अनुशासन व चरित्र निर्माण पर ज्यादा जोर देती हैं। कहती हैं कि ये अज्ञानी बच्चों को ज्ञान की रोशनी देने में गजब का आनंद मिलता है और उसी से नया समाज बनता है। जो सुशिक्षित व संस्कृति की विरासत को सहेजता है।
उन्होंने कहा कि शिक्षा से बढ़कर कुछ भी नहीं होता अगर मैं किसी को पैसे दूं तो वह खर्च हो जाएगा पर शिक्षा एक ऐसा धन है जिससे वह कितनी कमाई कर सकता है इसका कोई अंत नहीं है और सबसे बड़ी बात या कभी खर्च नहीं होता बल्कि जितना ही ज्यादा खर्च करो उतना ही ज्यादा यह बढ़ते रहता है। शिक्षा देने में जितना सम्मान मिलता है उतना सम्मान दुनिया के किसी भी काम में नहीं मिलता।