Move to Jagran APP

162 वर्ष बाद भी याद की जाती औरंगाबाद की ईवा, 11 साल की उम्र में हो गई थी मौत, फिर हुआ ऐसा

162 वर्ष पहले पटना नहर की खुदाई के वक्त कनीय अभियंता की पुत्री ईवाकी मृत्यु 11 वर्ष की उम्र में खेलते समय नहर में गिरने से हो गई थी। तब संत निक्सन ने उसे दफनवाया और वहां उसी के आकार का पत्थर रखकर स्मारिका स्थल बनवा दिया था।

By Prashant KumarEdited By: Published: Sat, 25 Dec 2021 02:31 PM (IST)Updated: Sat, 25 Dec 2021 02:31 PM (IST)
162 वर्ष बाद भी याद की जाती औरंगाबाद की ईवा, 11 साल की उम्र में हो गई थी मौत, फिर हुआ ऐसा
ईवा की याद में औरंगाबाद में बना स्‍मारक। जागरण आर्काइव।

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद)। 162 वर्ष पहले पटना नहर की खुदाई के वक्त सिंचाई विभाग में पदस्थापित कनीय अभियंता की पुत्री ईवाकी मृत्यु 11 वर्ष की उम्र में खेलते समय नहर में गिरने से हो गई थी। तब संत निक्सन ने उसे दफनवाया और वहां उसी के आकार का पत्थर रखकर स्मारिका स्थल बनवा दिया था। अब उसे ग्राम रक्षा देवी के रूप में जाना जाता है और अभी भी उसकी प्रत्येक वर्ष 25 दिसंबर को क्रिसमस डे पर पूजा की जाती है और मेला लगता है। यह आयोजन दाउदनगर कालेज से सेवानिवृत्त गणेश प्रसाद करते हैं। वह बतौर फोटोग्राफर जब 1968 में इस इलाके में गए थे तो उन्हें सीमेंट का बना हुआ इसाई धर्म का प्रतीक चिन्ह क्रूस दिखाई पड़ा था। इसके बाद उन्होंने झुरमुट साफ किया और ईवाका पूरा कब्र उभर कर सामने आ गया। यहां उन्होंने खुद से संकल्प लिया कि जब इस कब्र का 100 वर्ष पूरा हो जाएगा तो यहां पूजा करने आएंगे। और यह सिलसिला चल पड़ा।

loksabha election banner

जिंदा कब्र से मिलता है पुण्य-प्रताप : गणेश

कब्र को झुरमुट से निकालकर पूजा-पाठ का आगाज करने वाले गणेश प्रसाद कहते हैं कि यह ङ्क्षजदा मजार है। जब उन्होंने 100 वर्ष पूरा होने पर पूजा करने का संकल्प लिया और भूल गए तो अचानक से 25 दिसंबर 1979 की रात वे स्वपन देखते हैं कि वे कब्र पर खड़े हैं और 100 वर्ष पूरा होने पर पूजा करने का संकल्प ले रहे हैं। पूजा पाठ की। इसके बाद उन्हें सबसे पहले बड़े आकार की जमीन खरीदने में सफलता मिली और फिर विवाह के 14 वर्ष बाद पुत्री की प्राप्ति हुई। इस पुत्री का उन्होंने नाम रखा है ईवा, जो अब 38 वर्ष की हो गई है।

नाम से होता है गौरव का बोध : ईवा

इस कब्र के नाम पर ही गणेश प्रसाद ने अपनी पुत्री का नाम रखा है-ईवा। इस संवाददाता ने उनसे बातचीत की। ईवा ने कहा कि उसे इस नाम को मिलता सम्मान देखकर गौरव महसूस होता है। वह चाहती है कि कुछ ऐसा करें कि इस नाम को और सम्मान मिले। बताती है कि जब पांचवी छठी कक्षा में पढ़ती थी और सिपहां घूमने जाती थी तो कब्र देखने के बाद पापा से सवाल पूछी थी कि मेरे नाम का यहां कब्र क्यों है और मेरा नाम ङ्क्षहदू परंपरा के मुताबिक क्यों नहीं है। तब उसे इस पूरे घटनाक्रम को गणेश प्रसाद ने बताया था।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.