शिक्षा विभाग की शिथिलता से कैमूर में बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे कोचिंग संस्थान कर रहे लूट-खसोट का धंधा
अधिकतर कोचिंग संस्थान आवासीय मकानों में चल रहे है। बच्चों को भेड़ बकरी कि तरह ढूस कर क्लास चलाया जाता है। इससे सरकार को प्रति वर्ष लाखों रुपए के राजस्व की क्षति हो रही है। सभी कोचिंग संस्थान शिक्षा विभाग की मिलीभगत से फल फूल रहे है।
जागरण संवाददाता, भभुआ। कैमूर जिले में अवैध कोचिंग संस्थानों की इन दिनों बाढ़ आ गई है। जिले में एक दो कोचिंग संस्थानों को छोड़कर कोई भी अनुज्ञप्ति प्राप्त कोचिंग संस्थान नहीं है। जब कभी किसी कोचिंग में कोई दुर्घटना घटित होती है तब विभाग की तंद्रा भंग होती है। कुछ दिनों तक कोचिंग की जांच के लिए लेटर जारी किए जाते है और फिर वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है।
अभी दो वर्ष पहले जिला मुख्यालय के एक ऐसे हीं संस्थान में दुर्घटना हो गई थी, तब शिक्षा विभाग कुछ सख्त हुआ था। लेकिन कुछ दिनों के बाद फिर से वही पूर्व वाली स्थिति हो गई। इसी समय जिले के कुछ कोचिंग संस्थानों ने अनुज्ञप्ति हेतु आवेदन भी किया था। जिसको ले तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा मोहनियां और भभुआ अनुमंडल पदाधिकारी के नेतृत्व में कमेटी गठित की गई थी। कमेटी ने मोहनियां अनुमंडल से दो और भभुआ अनुमंडल से पांच कोचिंग संस्थानों को अनुज्ञप्ति हेतु योग्य माना था। लेकिन वास्तविकता इससे कोसों दूर है। अनुशंसा किस आधार पर कर दी गई यह समझ से परे है।
जैसे नियम के मुताबिक किसी भी कोचिंग संस्थान को चलाने के लिए प्रति छात्र एक वर्ग मीटर की जगह चाहिए, शिक्षक की योग्यता किस स्तर की कोचिंग है उसके अनुसार होनी चाहिए,पढ़ाए जा रहे सिलेबस का प्रोस्पेक्टस और सिलेबस समाप्त होने की अवधि होनी चाहिए, भवन व्यावसायिक होना चाहिए, चौबीस घंटे कार्यशील सीसीटीवी कैमरे होने चाहिए,अग्निशमन यंत्र होना चाहिए, छात्र और छात्राओं के लिए अलग अलग शौचालय होना चाहिए इत्यादि। यदि इन सभी बिंदुओं पर अच्छे ढंग से जांच कर दी जाय तो कोई भी कोचिंग संस्थान खरा नहीं उतरेगा। यहां तक कि जिन कोचिंग संस्थानों की अनुज्ञप्ति हेतु अनुशंसा की गई है वे भी नहीं। अब पता नहीं कमेटी किस तरह से जांच की और किस आधार पर अनुशंसा की यह समझ से परे है। अनुशंसा किए गए अधिकांश संस्थानों की यदि ईमानदारी से जांच कर दी जाय तो कोई भी खरा नहीं है।
अधिकतर कोचिंग संस्थान आवासीय मकानों में चल रहे है। बच्चों को भेड़ बकरी कि तरह ढूस कर क्लास चलाया जाता है। इससे सरकार को प्रति वर्ष लाखों रुपए के राजस्व की क्षति हो रही है। सभी कोचिंग संस्थान शिक्षा विभाग की मिलीभगत से फल फूल रहे है। यदि किसी कोचिंग संस्थान की जांच करनी होती है तो पदाधिकारियों के पहुंचने से पहले हीं इनको सूचना मिल जाती है। यदि अधिकारी पहुंच भी गए तो उनसे सेटिंग हो जाती है और जांच के नाम पर खानापूर्ति हो जाती है। और तो और कोरोना काल में जब पूरे देश में लॉकडाउन लगा था और सभी तरह कि शैक्षणिक गतिविधियां पूर्णतः बंद थी तब भी जिले के अधिकांश कोचिंग संस्थान चोरी छिपे चलते रहे। कोचिंग संस्थान के संचालकों ने एक और उपाय भी किये है।
अधिकारियों के आने का समय अमूमन दस बजे के बाद होता है लेकिन जिले की अधिकांश कोचिंग दस बजे से पहले ही चलती हैं। जिसके कारण यदि संयोग बस यदि अधिकारी आ भी जाए तो पकड़ में नहीं आ पाते। अधिकतर कोचिंग संस्थानों में योग्य शिक्षकों का अभाव है । हाई स्कूल और इंटरमीडिएट पढ़े लिखे शिक्षक हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की कोचिंग चलाते है। किसी निगरानी तंत्र के अभाव के कारण ऐसे कोचिंग संस्थान बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करते है। यह तो समय के गर्भ में है कि प्रशासन कब इनकी ईमानदारी से जांच करवाता है। वर्तमान स्थिति तो यही है कि अवैध और अयोग्य शिक्षकों द्वारा संचालित कोचिंग संस्थानों द्वारा बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ बदस्तूर जारी है।