खेतों में नहीं जलाएं पराली, प्रदूषण बढ़ने के साथ खेतों की उर्वरा शक्ति इससे घटती है
भभुआ के रामगढ़ प्रखंड में किसानों व जनप्रतिनिधियों के साथ कृषि विभाग के अधिकारियों ने बैठक की। इसमें अपील की गई कि खेतों में पराली नहीं जलाएं। यह अपराध की श्रेणी में आता है। इससे खेतों की उर्वराशक्ति घटती है।
जेएनएन, भभुआ। रामगढ़ प्रखंड के सभागार भवन में बुधवार को कृषि विभाग के अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों व किसानों की संयुक्त बैठक हुई। इसमें फसल अवशेष खेतों में जलाने से रोकने के लिए गाइडलाइन जारी किया गगया। किसानों से अपील की गई कि वे फसल अवशेष खेत में नहीं जलाएं।
प्रखंड कृषि पदाधिकारी जितेंद्र सिंह ने बताया कि खेतों में पराली जलाने से केवल पर्यावरण को ही खतरा नहीं है। बल्कि खेतों की उर्वरा शक्ति के साथ साथ फसलों के विकास के निमित्त कीटाणु मर जाते हैं। प्रत्येक वर्ष किसानों को ही इससे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है। खेतों में अधिक उर्वरक देने की नौबत उत्पन्न हो जाती है। इन्हीं सब समस्याओं को लेकर कृषि विभाग ने किसानों के द्वार कार्यक्रम भी चलाया। इस दौरान खेती को आधुनिक बनाने के गुर भी सिखाए गए। लेकिन उन सारी कवायदों के बाद भी किसान खेतों में फसल अवशेष को जला देते हैं। इस कारण लाभकारी सुक्ष्मजीव मर जाते हैं। जो फसलों के उत्पादन में अपना महत्वपूर्ण रोल निभाते हैं। यही नहीं पराली खेतों में जलाने से आस पास के गांव में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़़ता है। पराली जलाने को सरकार ने अपराध की श्रेणी में रखा है। बैठक में उपस्थित सभी किसानों व जनप्रतिनिधियों से फसल अवशेष खेतों में नहीं जलाने की अपील की गई। कहा गया कि आप खुद इससे परहेज तो करें ही अन्य लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करें। इस दौरान कृषि समन्वयक बृजबिहारी सिंह, जितेंद्र कुमार सिंह, श्याम बिहारी सिंह, अरुण कुमार, दीपक सिंह, मुखिया व कई बीडीसी मौके पर मौजूद रहे।
केमिकल से खाद में तब्दील हो जाती है पराली- गौरतलब है कि खेतों में ही पराली छोड़ देने से वह उर्वरक की तरह काम करता है। वैज्ञानिकों ने एक ऐसा केमिकल तैयार किया है जिसे पराली पर डाल देने से वह खेत में ही सड़ जाता है। यह उर्वरा शक्ति बढ़ाता है।