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Chaitra Navratra 2021: यहां देवराज इंद्र ने की थी यक्षिणी की आराधना, जानिए रोहतास के इस सिद्ध स्‍थल के बारे में

रोहतास के दिनारा प्रखंड में यक्षिणी भवानी धाम है। मान्‍यता है कि देवराज इंद्र ने इस मंदिर में देवी की स्‍थापना की थी। यहां की मूर्तियां पूर्व मध्‍यकालीन मानी जाती हैं। नवरात्र के दिनों में यहां दूर-दूर के श्रद्धालु पहुंचते रहते हैं।

By Vyas ChandraEdited By: Published: Tue, 13 Apr 2021 11:00 AM (IST)Updated: Tue, 13 Apr 2021 11:00 AM (IST)
Chaitra Navratra 2021: यहां देवराज इंद्र ने की थी यक्षिणी की आराधना, जानिए रोहतास के इस सिद्ध स्‍थल के बारे में
मंदिर में स्‍थापित यक्षिणी भवानी की प्रतिमा। जागरण

दिनारा (रोहतास), संवाद सूत्र।  वासंतिक नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है। घरों से लेकर मंदिरों तक में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। हालांकि मंदिरों को बंद रखा गया है। बावजूद श्रद्धालु बाहर से ही मंदिर के सामने पूजा-अर्चना कर लौट रहे हैं। ऐसे में आपको हम बताते हैं रोहतास जिले में स्थित एक ऐसे सिद्ध स्‍थल से जहां स्‍वयं देवराज इंद्र ने देवी की आराधना की थी। दिनारा प्रखंड मुख्यालय से सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित यक्षिणी भवानी धाम प्रसिद्ध शक्तिपीठ हैं। मंदिर में देवी की प्रतिमा के अलावा भगवान शंकर व कुबेर की प्राचीन प्रतिमा भी स्थापित है। ये प्रतिमा पूर्व मध्यकालीन मानी जाती है। देवी की प्रतिमा सहित मंदिर में स्थापित अन्य प्रतिमाएं पूर्वमध्यकालीन हैं। मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। मान्यता है कि यहां देवराज इंद्र ने मां यक्षिणी की पूजा की थी।

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पुराणों में भी है इस स्‍थल का वर्णन

श्रीमद देवी भागवत, मार्कण्डेय पुराण के अलावा वाल्मिकी रामायण में भी यक्षिणी भवानी का वर्णन मिलता है। मान्यता के अनुसार देवासुर संग्राम के बाद अहंकार से भरे इंद्र को यक्षिणी देवी ने यहीं सत्य का पाठ पढ़ाया था। इंद्र ने देवी दर्शन के बाद उनकी स्थापना की थी। कहा गया है कि ‘हंस पृष्ठे सुरज्जेष्ठा सर्पराज्ञाहिवाहना, इन्द्रस्यच तपो भूमिरू शक्तिपीठ कंचन तीरे। यक्षिणी नाम विख्याता त्रिशक्तिश्च समन्विता।’ यह स्थली महर्षि वशिष्ठ व विश्वामित्र की अराधना व तपोस्थली के रूप में जाना जाता है। यक्षिणी भवानी महात्म्य कथा के अनुसार राम-लक्ष्मण भी मंदिर परिसर में एक रात्रि विश्राम किए थे।

ताड़का नामक राक्षसी करती थी पूजा

लोकोक्ति है कि देवी की स्थापना ताड़का नामक राक्षसी ने की थी, जो प्रतिदिन पूजा अर्चना करने बक्सर से यहां आती थी।प्रधान पुजारी मदन मोहन पंडित कहते हैं कि भलुनी धाम के विकास का कार्य भोजपुरी साहित्य समिति की ओर से किया जाता है। इस वर्ष की नवरात्रि में कोरोना महामारी के कारण दर्शन पूजन पर रोक लगा दी गई है। इस मंदिर परिसर की देख भाल भलुनी, खरिका व बडीहां के पंडा करते हैं। ऑनलाइन पूजा की व्यवस्था फिलहाल नहीं हो पाई है।


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