Our Heritage: कैमूर के इस गांव में था शबर जनजाति का शासन, जानिए इस स्थान की क्या थी महत्ता
भभुआ जिला के नुआंव प्रखंड स्थित दरौली गांव ऐतिहासिकता को समेटे हुए है। लेकिन पर्याप्त संरक्षण न मिलने के कारण कई ऐतिहासिक साक्ष्य नष्ट होने के कगार पर पहुंच गए हैं। इससे लोगों में निराशा पसर गई है।
जेएनएन, भभुआ। नुआंव प्रखंड का दरौली गांव अपने आप में कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को समेटे हुए है। लेकिन आज यह उपेक्षित है। यहां मिले ऐतिहासिक साक्ष्यों की कोई देखभाल नहीं की जा रही। दुर्लभ मूर्तियां खुले में पड़ी हैं। यहां बना तालाब अतिक्रमण के कारण सिकुड़ता जा रहा है।
शबर जनजातियों की थी राजधानी, कराया था कई मंदिरों व तालाबों का निर्माण
यहां से मिले ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि यह गांव एक समय विंध्य क्षेत्र के शबर जनजातियों की राजधानी हुआ करता था। शबर राजाओं ने यहां पर कई मंदिरों और तालाबों का निर्माण कराया था। तब यह गांव राजनैतिक के साथ साथ कला और संस्कृति का महत्वपूर्ण केंद्र था। अब भी यह गांव शैव, वैष्णव, और शाक्त संप्रदायों के धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित है । ऐतिहासिक तथ्यों की जांच में उक्त तथ्य उजागर किए जा चुके हैं।
कोलकाता संग्रहालय में रखे शिलालेख पर यहां की चर्चा
कोलकाता के राष्ट्रीय संग्रहालय में संरक्षित एक शिलालेख जो 1545 ई. का बताया जाता है इसके अनुसार यहां शबर राजाओं ने दो मंदिर और एक कोट का निर्माण कराया था।शिलालेख से पता चलता है कि विक्रम संवत् 1599 में मंदिर के पास ही 105 एकड़ में विशाल तालाब का निर्माण इस क्षेत्र के राजा हिरामन या हिमाद्र सेन ने कराया था। तालाब का निर्माण जल संग्रह का एक अनूठा प्रयास था। इस तालाब से लोगों की दैनिक जल की आवश्यकता की पूर्ति तो होती ही थी साथ ही सूखे के समय फसलों की सिंचाई भी होती थी । इतिहासकारों के अनुसार यहां तालाब के साथ एक पार्क का निर्माण शेरशाह के समय चैनपुर परगना के मुंसिफ युसुफ ने हिजरी संवत् 948से952 के बीच कराया था ।अंग्रेज़ सर्वेयर बुकानन 1813 और गैरिक 1881-82 में यहां दौरा कर चुके है । इन्होंने अपने रिपोर्ट में इस स्थान की महत्ता का वर्णन विस्तार से किया है।
आज प्रशासनिक उपेक्षा के कारण कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के साक्ष्य नष्ट होने के कगार पर है। 105 एकड़ का तालाब कुछ एकड़ में सिमट कर रह गया है । तालाब के पिंड पर लोगों ने कब्जा कर लिया है। तालाब से निकली दुर्लभ मूर्तियों को बाहर चबूतरे पर रखी गई है उनके उचित रखरखाव का घोर अभाव है। यदि सरकार और आर्कियोलॉजी विभाग ध्यान नहीं दिया तो यह ऐतिहासिक महत्व का स्थान शीघ्र ही समाप्त हो सकता है ।