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बिहार के इस गांव में नहीं घुस सकता कोरोना, ग्रामीणों ने की ऐसी व्‍यवस्‍था कि वायरस की हो गई नो एंट्री

No Entry of Corona Virus विकास के मामले में भले ही कैमूर पहाड़ी पर बसा नौहट्टा प्रखंड का जोंहा गांव पिछड़ा हो साक्षरों की संख्या कम हो लेकिन वनवासियों की सोच व दूरदर्शिता ने इस गांव में कोरोना को घुसने नहीं दिया।

By Prashant KumarEdited By: Published: Mon, 17 May 2021 08:11 AM (IST)Updated: Mon, 17 May 2021 08:11 AM (IST)
बिहार के इस गांव में नहीं घुस सकता कोरोना, ग्रामीणों ने की ऐसी व्‍यवस्‍था कि वायरस की हो गई नो एंट्री
मिट्टी के मकानों वाला कैमूर पहाड़ी पर बसा जोहा गांव। जागरण।

प्रेम पाठक, डेहरी आन सोन (सासाराम)। विकास के मामले में भले ही कैमूर पहाड़ी पर बसा नौहट्टा प्रखंड का जोंहा गांव पिछड़ा हो, साक्षरों की संख्या कम हो लेकिन वनवासियों की सोच व दूरदर्शिता ने इस गांव में कोरोना को घुसने नहीं दिया। यहां के लोग गांव से न तो बाहर जा रहे हैं न ही गांव में दूसरे को प्रवेश करने दे रहे हैं। रिश्तेदारों को पहले ही मोबाइल से सूचित कर दिए हैं कि  यहां उनकी अभी नो इंट्री रहेगी। कोई विशेष जरूरत पड़ी तो आने के दिन का कोरोना निगेटिव का प्रमाण लाना होगा। इस नियम को ग्रामीण खुद भी पालन कर रहे हैं। जिसका नतीजा है कि गांव का कोई भी व्यक्ति कोरोना से संक्रमित नहीं हुआ।

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शहर की आबोहवा और भीड़भाड़ से दूर कैमूर पहाड़ी पर बसा इस गांव में रिश्तेदारों से ले अन्य को भी पाबंदी है। अगर कोई गैर सरकारी संगठन या सरकारी कर्मी आने की बात कहते हैं तो उन्हें कोरोना निगेटिव होने का प्रमाणपत्र लाना आवश्यक है। विकास से मीलों दूर समतल भूमि से डेढ़ हजार फीट की ऊंचाई पर होने के बाद भी यहां दरवाजे पर पानी, साबुन और सैनेटाइजर की व्यवस्था ग्रामीण किए हैं। वे स्वयं साबुन से घर में हाथ-पैर धोकर ही प्रवेश करते हैं। आज भी इस गांव में पक्का मकान मात्र पांच है। शेष फूस की झोपड़ी, मिट्टी से बने मकान ही है।

ग्रामीण रामलाल उरांव, उप मुखिया रामप्रीत उरांव, दिनेश उरांव (शिक्षक) पूर्व मुखिया चंद्रदीप उरांव, सिबु उरांव समेत अन्य बताते हैं कि शहर, बाजार व अन्य गांवों में कोरोना को लेकर कई तरह की बातें सुनते हैं। हम लोगों के बीच भी अंदर से इसे लेकर भय व्याप्त हो गया। लेकिन, इस महामारी से लड़ने के लिए ग्रामीणों ने किसी के प्रवेश गांव में नहीं होने देने पर सहमति बनाई। उसके बाद इसे कड़ाई से पालन कराया गया। बाहर रहने वाले सभी परिजनों व रिश्तेदारों को बता दिया गया कि वे कोरोना काल तक गांव में नहीं आएं। बाहर रहने वाले ग्रामीणों को कोविड जांच रिपोर्ट निगेटिव आने पर ही प्रवेश करने की अनुमति दी गई। इसका सार्थक परिणाम सामने आया।

'दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी' स्लोगन को व्यवहार में लाया गया। बताते हैं कि हम तो शुरू से खेतों में उपज मोटा अनाज, शुद्ध दूध, जंगलों में होने वाला बिना खाद का फल-सब्जी खाते हैं। गांव जंगल के बीच है तो सैकड़ों पेड़ उन्हें ऑक्सीजन देते हैं।  

कहते हैं चिकित्सक

रेफरल अस्पताल नौहटा के चिकित्सा पदाधिकारी डॉ मुकेश कुमार कहते हैं कि खान-पान व रहन-सहन से हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता तैयार होता है। खानपान में संतुलित आहार के कारण शरीर कई बीमारियों से स्वयं लड़ता है। कैमूर पहाड़ी पर बसे जोंहा गांव में कोरोना का कोई मामला हमारे संज्ञान में नहीं है और यह एक शुभ संकेत है।


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