सिक्के खनकते तो खूब हैं, बाजार में कद्र नहीं
- सिक्के लेने से गुरेज कर रहे शहर के व्यवसायी और दुकानदार ग्राहकों से हो रही बकझक व्यवस्था मूकदर्शक - एक के सिक्कों को बता रहे बाजार से बाहर दो के सिक्कों पर सिकोड़ रहे नाक-भौंह पांच-दस के लग रहे भारी - बैंक सिक्के जमा करने का दावा तो करते हैं लेकिन व्यवस्था का रोना रोते हुए ग्राहकों को कर देते हैं वापस जागरण संवाददाता गया
गया । घटतौली के लिए कुख्यात पेट्रोल पंप तक सिक्के लेने में आनाकानी कर रहे। यह बेकद्री दस और पांच के सिक्कों के साथ है। सब्जी दुकानदारों की ढिठाई ऐसी कि एक रुपया मूल्य के सिक्कों को खोटा करार दे रहे। प्रशासन मूकदर्शक है और बैंक के अधिकारी बातूनी। वे नियम-कानून का खूब हवाला देंगे, लेकिन बैंकों में सिक्कों को जमा लेने से सीधे हाथ खड़े कर देते हैं। मनमर्जी के मालिक व्यवसायियों के साथ यह भी एक समस्या है। गजब यह कि ग्राहकों को सिक्का देने में वही व्यवसायी-दुकानदार दिलदार बन जाते हैं। उनकी कोशिश होती है कि एक-दो रुपये की कीमत वाले सिक्के ज्यादा से ज्यादा वापस कर दिए जाएं। एक रुपये की वापसी हो तो दुकानदारों के लिए रेजगारी नहीं होने का सहज बहाना है और ग्राहक भी कोई जिद नहीं करते। ऐसे एक-एक रुपये जोड़कर सैकड़ों हो जाते हैं। देहाती बोलचाल में इसे 99 का चक्कर कहते हैं। रेलवे जंक्शन के करीब अवस्थित पेट्रोल पंप पर आए दिन सिक्के लेने से मना कर दिया जाता है। गुरुवार को राजेश सिन्हा ने बताया कि वे 60 रुपये मूल्य के दस और पांच रुपये के सिक्के देना चाह रहे थे। वहां बदतमीजी से पेश आने वाले कर्मचारी ने पेट्रोल देने से ही मना कर दिया। बुधवार को उसी पेट्रोल पंप पर डीजल लेने गए सोनू से बकझक हुई थी। किरानी घाट की ओर अवस्थित पेट्रोल पंप पर संतोष शर्मा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। ताज्जुब यह कि उन्हीं पेट्रोल पंपों पर भुगतान के वक्त कभी दिल खोलकर तो कभी दांत निपोरकर ग्राहकों को सिक्के वापस किए जाते हैं। सिक्कों के लेनदेन की झल्लाहट में रमेश प्रसाद पेट्रोल पंपों पर सुरक्षा और दूसरे मानकों पर सवाल खड़ा कर रहे। कहते हैं कि पेट्रोलियम कंपनियों और प्रशासन की मिलीभगत से ग्राहक ठगे जाते हैं। उन्हें कोई सुविधा नहीं मिलती। अधिसंख्य पेट्रोप पंप पर शौचालय आदि की समुचित व्यवस्था नहीं। हवा-पानी का इंतजाम नहीं। सब कुछ जानने-समझने के बाद भी प्राधिकार कोई कार्रवाई नहीं करता। छोटे दुकानदारों तक को गुरेज: एक कहावत है कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। सिक्कों से बाबस्ता गया शहर के दुकानदारों की यही रवायत है। बड़े व्यवसायियों को यह इत्मीनान है कि व्यवस्था उनकी जेब में है और छोटे दुकानदारों की हिमाकत यह कि कम हैसियत वाले ग्राहक कहां जाएंगे! ऐसी दुकानों पर एक रुपये के सिक्के बमुश्किल चल पा रहे। अब तो दो रुपये वाले सिक्के भी कई दफा उलट-पलट कर देखे जाते हैं, जैसे कि उन पर सरकार की मुहर ही नहीं हो। सब्जी विक्रेता किसी से कम नहीं: लोग पहले सब्जी आदि की खरीदारी के लिए रेजगारी सहेज कर रखते थे। वह एक दौर था, जब सौ-पचास रुपये में झोला भर सब्जियां घर आ जाती थीं। महंगाई ऐसी कि अब झोला भर रुपये देने पर ही झोला भर सब्जियां मिलेंगी। ऐसे में सिक्के की कद्र सब्जी विक्रेताओं के पास भी नहीं। वागेश्वरी गुमटी की यह आंखों देखी हकीकत है। ग्राहक ने एक-एक के तीन सिक्के बढ़ाए। नेनुआ-सतपुतिया बेचने वाली तपाक से पूछ बैठी: कहीं और नहीं चले क्या! सिक्के वापस ग्राहक के हाथ में आ गए।
:::::::::::::::::::::::::::::::: सिक्के लेने में साफ मना कर दे रहे बैंक: गया जिला पेट्रोलियम डीलर एसोसिएशन के अध्यक्ष बैजू प्रसाद का कहना है कि सिक्के लेने से बैंक के अधिकारी-कर्मचारी साफ इन्कार कर देते हैं। इस कारण प्रत्येक पेट्रोल पंप संचालक के पास पिछले एक वर्ष से दस से 12 लाख रुपये के सिक्के पड़े हुए हैं। ग्राहकों से सिक्के नहीं लेने की यही मजबूरी है। पांच हजार तक के सिक्के जमा कर सकते हैं बैंक में: भारतीय स्टेट बैंक के क्षेत्रीय प्रबंधक मेवा आनंद का कहना है कि उपभोक्ता एक बार में दो से पांच हजार तक के सिक्के जमा कर सकते हैं। इसके लिए बैंकों पर विशेष व्यवस्था बनाई गई है। सभी सिक्के बंडल में हों, ताकि गिनती करने में आसानी हो। बिना बंडल के सिक्के बैंक में जमा नहीं होंगे। अगर कोई व्यवसायी सिक्के के लेनदेन में आनाकानी करता है तो सीधे भारतीय रिजर्व बैंक की वेबसाइट पर शिकायत कर सकते हैं। इसकी जानकारी पुलिस को भी दे सकते हैं। सिक्के के लेनदेन में किसी प्रकार की पाबंदी नहीं है।