चार वर्षों से अटका पड़ा है चालान घोटाले का मामला, रोहतास के बिक्रमगंज में हुआ था लाखों का खेल
बिक्रमगंज निबंधन कार्यालय में लाखों रुपये का चालान घोटाला हुआ था। यह मामला चार वर्षों से अधिक समय के बाद भी ठंढे बस्ते में पड़ा है। अधिकारी खामोश हैं । इस मामले में तीन प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
संवाद सहयोगी, बिक्रमगंज (रोहतास)। बिक्रमगंज निबंधन कार्यालय में हुए लाखों रुपये के चालान घोटाला का मामला चार वर्ष से अधिक समय के बाद भी ठंढे बस्ते में है। इतने बड़े घोटाला के बावजूद अधिकारी खामोश हैं । इस मामले में तीन प्राथमिकी दर्ज की गई। जमीन खरीदने वाले 58 लोगों को अभियुक्त बनाया गया। जमीन खरीदने वालों ने भी कोर्ट में मुकदमा किया। लेकिन अभी तक कार्रवाई के नाम पर सिर्फ दो कर्मियों को कुछ दिनों के लिए निलंबित किया गया और कुछ दस्तावेज लेखक और मुद्रांक विक्रेता के कार्यों पर रोक लगा दी गई। हालांकि विभागीय सूत्रों की मानें तो इसकी जांचऔर अधिक ठीक से की जाती तो काफी संख्या में और कई चालान की गड़बड़ी सामने आती लेकिन इसे लटका दिया गया। जांच ठीक से हो तो इस घोटाले की गाज कई अधिकारियों और कर्मियों पर गिरती । सरकार को लाखों के राजस्व का चूना लगाने के चार वर्ष से अधिक समय बीतने के बावजूद अब तक कोई कार्रवाई नहीं होने से विभाग के बड़े अधिकारियों और प्रशासन की कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठने लगा है।
यह है मामला
निबंधन कार्यालय में जमीन निबंधन कराने के लिए बैंक चालान के माध्यम से जमा किये गए निबंधन शुल्क में बैंक में कम रुपये जमा कर चालान में हेराफेरी कर निबंधन कार्यालय में जमा कर भूमि निबंधन कराया गया। जांच होती तो और भी दस्तावेजों के चालान में गड़बड़ी के मामले उजागर होने की संभावना थी , लेकिन उसके बाद कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई।
अब तक क्या हुई कार्रवाई
दैनिक जागरण ने यह खबर सबसे पहले 10 सितम्बर 2016 को प्रकाशित की थी। इसके बाद जांच शुरू हुई और एक के बाद एक कुल तीन प्राथमिकी दर्ज हुई और 58 लोगों को अभियुक्त बनाते हुए कुल 33 लाख रुपये के राजस्व क्षति की बात प्राथमिकी में कही गई। इसके लिए तत्कालीन जिला पदाधिकारी अनिमेष परासर ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई। इस जांच कमिटी में एसडीएम बिक्रमगंज , कोषागार पदाधिकारी , जिला अवर निबंधक थे। इस कमेटी ने तीन–चार बार जांच भी की लेकिन अब तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका। निबंधन विभाग के मुख्यालय से उप महानिरीक्षक ने भी जांच की और 2006 से अद्यतन जांच करने का निर्देश दिया । प्राथमिकी के बाद पुलिस ने भी अपने स्तर से जांच शुरू की। लेकिन नतीजा अबतक सिफर रहा | सूत्रों की मानें तो करीब दो सौ दस्तावेज में करोड़ रुपये से अधिक का घोटाला है , लेकिन इसका खुलासा न तो विभाग करना चाहता है न प्रशासन के अधिकारी । जांच के दौरान यह पाया था कि लेखा बही में भी फर्जी चालान के आधार पर छेड़छाड़ किया गया है ।
कैसे होता रहा पूरा खेल
हैरत की बात तो यह है कि वर्षों से यह काम बिना रोक टोक के चलते रहा और विभागीय अधिकारियों को इसकी भनक भी नहीं लगी। जबकि विभागीय अंकेक्षण होता है । वित्तीय सत्र के अंत में प्राप्त राजस्व का मिलान किया जाता है । जब निबंधन कार्यालय के लेखा बही और और बैंक चालान में अंतर था फिर भी यह चुप्पी समझ से परे है, जबकि इस कार्यालय का निरिक्षण जिला अवर निबंधक , निबंधन निरीक्षक के आलावा अन्य वरीय पदाधिकारी भी करते हैं । इस संबंध में अवर निबंधक विशाल कुमार ने बताया कि क्षति पहुंचाई गई राजस्व की वसूली के लिए फ़ाइल जिला पदाधिकारी सह जिला निबंधक के पास है । वहीं से दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई होगी।