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Bihar PitruPaksha 2021: देव परिधि में पिंडदानियों ने पितरों की मोक्ष कामना को लेकर किया कर्मकांड

पुरोहित द्वारा वैदिक मंत्रोच्चरण के साथ कर्मकांड कराने कार्य किया जा रहा था। पिंडदानी सूर्य उदय के साथ फल्गु नदी में स्नान एवं तर्पण कर हाथ में कर्मकांड के सामग्री लेकर विष्णुपद मंदिर परिसर में पिंडदानी आने लगे। देखते-देखते उक्त वेदियों पर पिंडदानियों से भर गये।

By Prashant KumarEdited By: Published: Mon, 27 Sep 2021 05:07 PM (IST)Updated: Mon, 27 Sep 2021 05:07 PM (IST)
Bihar PitruPaksha 2021: देव परिधि में पिंडदानियों ने पितरों की मोक्ष कामना को लेकर किया कर्मकांड
फल्‍गु नदी में तर्पण करते पिंडदानी। जागरण।

जागरण संवाददाता, गया। कर्मकांड के मुख्य स्थल के रूप में भगवान श्रीहरि विष्णु चरण है। देव परिधि का यह केंद्र बिंदु है। जहां अन्य वेदियों को विस्तार है। श्रीहरि विष्णु चरण परिसर में 16 वेदियां है। इसमें सोमवार यानी पितृपक्ष के आठवें दिन सूर्यपद, चंद्रपद, संध्याग्निपद, आवसंध्याग्निपद एवं दधीचिपद पिंडवेदी पर पिंडदानियों ने कर्मकांड किया। वहीं नवमी दिन यानी मंगलवार को कण्वपद, मांतगपद, क्रोंचपद, अगस्तयपद, इंद्रपद, कश्यपद एवं गजकर्णपद पिंडदान होगा।

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पुरोहित द्वारा वैदिक मंत्रोच्चरण के साथ कर्मकांड कराने कार्य किया जा रहा था। पिंडदानी सूर्य उदय के साथ फल्गु नदी में स्नान एवं तर्पण कर हाथ में कर्मकांड के सामग्री लेकर विष्णुपद मंदिर परिसर में पिंडदानी  आने लगे। देखते-देखते उक्त वेदियों पर पिंडदानियों से भर गये। विष्णुपद परिसर में ही उक्त वेदी के अतिरिक्त 16 वेदी है। सिक्कम से आए पिंडदानी चंकी अग्रवाल ने कहा कि कर्मकांड कर मन को काफी शांति मिल रही है। कर्मकांड भगवान श्रीहरि के समक्ष हो रहा है। छत्तीसगढ़ से आए अरुण गोयल ने कहा कि 17 दिनों को कर्मकांड करने लिए गया में आए है। भगवान विष्णु के समक्ष कर्मकांड कर बहुत अच्छा लग रहा है।

देव परिधि में कर्मकांड करने कुछ अलग ही महत्व है। पिंडवेदियों बिल्कुल हाथी का आकर है। जिसमें 16 पाया बना है। पिंडदानी पूर्वजों को मोक्ष को लेकर कर्मकांड करने के बाद पिंड के विष्णुचरण परं अर्पित कर रहे थे। मान्यता है कि हाथी के चरण चिन्ह में सुष्टि के सभी जीवों का चरण समा जाते है। उसी तरह भगवान विष्णु के चरण की गरिमा में सभी देवों एवं ऋषियों की गरिमा समाहित हो जाती है। मंदिर परिसर में प्रवेश के लिए पिंडदानियों को लंबी कतार से गुजरना पड़ रहा था। मंदिर के प्रवेश द्वारा गहन जांच के बाद पिंडदानियों को प्रवेश की अनुमति दिया जा रहा था। पूरा मंदिर परिसर वैदिक मंत्रोच्चारण से गूंज रहा है।


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