बिहार: कैमूर में अंध विश्वास के चक्कर में लोग गंवा रहे जान, सांप काटने पर पीड़ित कराते झाड़-फूंक
डॉक्टरों का कहना है कि इलाज के लिए सर्पदंश पीड़ित जो भी मरीज सदर अस्पताल आते हैं उसमें से 99 फीसदी लोग स्वस्थ होकर घर लौटते हैं। मगर अक्सर लोग सांप के काटने पर पहले झाड़-फूंक के चक्कर में पड़ जाते हैं जिससे अस्पताल आते उनकी मौत हो जाती।
भभुआ, जागरण संवाददाता। अशिक्षा व जागरूकता के अभाव अंधविश्वास के चक्कर में फंसकर झांड़फूक कराने में ही सर्पदंश से पीड़ितों की मौत होने के मामले सामने आ रहे हैं। जबकि चिकित्सकों की माने तो सर्पदंश की दवा इलाज के लिए काफी कारगर है। विभाग से मिली जानकारी के अनुसार सदर अस्पताल के आपात चिकित्सा स्टोर व जिला अस्पताल के मुख्य स्टोर में 1500 से अधिक इंजेक्शन उपलब्ध है। सर्पदंश से होने वाली मौत आपदा की श्रेणी में नही आने के कारण अंचल व प्रखंड कार्यालय में मृतकों की संख्या दर्ज करने का कोई प्रावधान नही है।
सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ विनोद कुमार की माने तो इलाज के लिए सर्पदंश पीड़ित जो भी मरीज सदर अस्पताल आते हैं उसमें से 99 फीसदी लोग स्वस्थ होकर घर लौटते हैं। एक प्रतिशत में वैसे मरीज शामिल होते हैं जो अंधविश्वास के चलते सर्पदंश के बाद झांड़फूक के चक्कर में फंसकर अंतिम समय में इलाज के सदर अस्पताल पहुंचते है। ऐसे रोगियों की संख्या महीने में एक दो की ही होती है जो या तो अस्पताल आने के साथ कालकवलित हो जाते हैं या अस्पताल में इलाज शुरू होने के साथ दम तोड़ देते है। ऐसे मृतक के आश्रित को कोई सरकारी अनुदान नहीं मिलने के कारण कोई सदर अस्पताल शव का पोस्टमार्टम कराने भी नही आता है। गांव के मुखिया मृतक परिजनों को कभी कबीर अंत्येष्ठि की राशि या विशेष परिस्थिति में बीडीओ कभी- कभी पारिवारिक लाभ की राशि मृतक के परिजनों को उपलब्ध करा देते है।
क्या कहते है चिकित्सक
सर्पदंश से पीड़ितों के इलाज के संबंध में सदर अस्पताल के चिकित्सक विनय तिवारी का कहना है कि सर्पदंश असाध्य रोग नहीं है। आवश्यकता है बस सर्पदंश की जानकारी होते ही पीड़ित को तत्काल अस्पताल में पहुंचाने की है। बारिश के दिनों में सर्पदंश की घटनाएं अधिक होती है। उन्होंने सर्पदंश से पीड़ित रोगी के परिजनों से रोगी को झांड़फूक कराने की जगह तत्काल अस्पताल पहुंचाने की अपील की है। जिससें पीड़ित के जीवन बचाया जा सके।