बिहार : जान हीं नहीं जहान को भी उजाड़ रहा कोरोना वायरस, औरंगाबाद में औषधीय खेती पर भी पड़ा असर
कोरोनावायरस से न केवल लोगों की मौत हो रही है बल्कि इसका असर खेती-किसानी पर भी पड़ रहा है। बिहार के औरंगाबाद में औषधीय खेती करने वाले कसान कोरोनावायरस संक्रमण के असर की मार झेल रहे हैं। क्या है मामला जानिए।
औरंगाबाद, ओमप्रकाश शर्मा। मनुष्य की जिंदगी लील रहा विश्वव्यापी कोरोनावायरस प्रकृति के हर रंग को बदरंग करता जा रहा है। कोरोना का असर हर तरफ देखा जा रहा है। लगातार दो वर्ष से अपना रंग बदल रहे कोरोनावायरस ने मनुष्य जीवन को नीरस बना दिया है। मनुष्य इसके आगे बेबस नजर आ रहा है। राजनीति, अध्यात्म, सामाजिकता और जीवन की डोर टूटने पर गले लगानेवाले फूल भी कोरोना के असर के कारण खेतों में हीं मुरझा रहे हैं। एक तो कोरोना से बचने के लिए घर में बंद रहना किसान की बाध्यता है तो दूसरी ओर बाजार में फूल के खरीददार नहीं हैं। ऐसे में हजारों रुपये कर्ज लेकर खेती करने वाले किसान बेमौत मारे जा रहे हैं।
फूलों की खेती पर पड़ी कोरोना की मार
पिछले एक दशक से फूलों की खेती कर दधपा गांव के संतोष मालाकार, किशोरी मालाकार, दिलीप मालाकार एवं सुनील मालाकार ने परिवार को खराब माली हालत से बाहर निकालकर व्यवसाय में अपनी प्रतिष्ठा बना ली है। चिल्हकी गांव में उक्त युवा किसान ने 15 हजार रुपये बीघा लीज पर खेत ले रखा है, जिसमें पिछले 10 वर्षों से फूल लगाकर प्रखंड को फूल की खेती के मामले में समृद्ध किया है। लेकिन इस खेती पर कोरोना की मार पड़ गई है।
पुश्तैनी धंधा करने का कुछ अलग हीं मजा
किसान किशोरी मालाकार ने कहा कि पुश्तैनी धंधे का एक अलग हीं महत्व है। इसे करने में जानकारी और अभ्यास की जरूरत नहीं पड़ती है। फूल का माला बनाना, सजावट करना तथा इसे उगाने का धंधा हीं माली परिवार का पुश्तैनी धंधा रहा है। संतोष मालाकार ने कहा कि यह बात ठीक है कि व्यावसायिक खेती में पूंजी अधिक लगती है पर यह भी सत्य है कि मेहनत से की गयी खेती से लाभ भी कुछ कम नहीं मिला करता था।
कोरोना ने छीना व्यापार, परिवार बेहाल
किसान संतोष ने कहा कि लगातार दो वर्ष से कोरोना ने उसके अरमानों पर पानी फेर दिया है। खुशबू युक्त लरजते गेंदा का फूल खेत में हीं मुरझा रहे हैं। कोरोना वायरस के डर से न तो व्यापारी आ रहे हैं न हीं बाजार लग रहा है। उत्सव, कार्यक्रम चुनाव सब बंद हो गया है। यहां तक कि आध्यात्मिक आयोजन से लेकर मंदिर मस्जिद भी बंद है। फूल के खरीदार नहीं मिल रहे। जिस अरमान के साथ खेती की थी वह मिट्टी में मिल गया।
चहुंओर फैलती थी अंबा के फूलों की खुशबू
अंबा की फूलों की खुशबू बिहार व झारखंड के कई बाजारों में बिखर रही थी। किशोरी बताते हैं कि गेंदा गुलाब का फूल गया, नवीनगर, औरंगाबाद, रांची व झारखंड के कई बाजारों में कई वर्षों से भेजी जा रही थी। उन्होंने बताया कि 10 कट्ठे की फूल की खेती से लगभग पचास हजार की आमदनी हो जाती थी।
प्रशासन ने दिया सहायता का आश्वासन
बीएओ अरुण कुमार ने पूछने पर बताया कि फूल की खेती किसान को समृद्ध बनाने के लिए एक बेहतर जरिया है। इस खेती में किसान को फसल और व्यवसाय दोनों मिल जाता है। उन्होंने कहा कि दधपा के किसानों की खेती को देखकर उन्हें आवश्यक संसाधन दिलाने के प्रयास किए जाएंगे। उद्यान विभाग से इस खेती के लिए सहायता दी जाती है। कोरोना के इस दौर में सरकार की गाइडलाइन की प्रतीक्षा है। औषधीय खेती के लिए उद्यान विभाग से किसान को सहायता मिलनी चाहिए, ताकि संकट के इस दौर में भी किसान का हौसला बना रहे।