Bihar News: जिउतिया पर औरंगाबाद में अनोखी प्रथा, लोक कलाकार लगाते ज्ञानचंद उस्ताद का जयकारा
दाउदनगर में जिउतिया लोक उत्सव के दौरान जो भी लोक कलाकार अपनी प्रस्तुति देते हैं वह इमली तल स्थित ज्ञानचंद उस्ताद के घर मत्था टेकने जरूर जाते हैं। सवाल यह है? कि ज्ञानचंद उस्ताद कौन थे और उनके घर मत्था टेकने लोक कलाकार क्यों जाते हैं।
संवाद सहयोगी, दाउदनगर (औरंगाबाद)। दाउदनगर में जिउतिया लोक उत्सव के दौरान जो भी लोक कलाकार अपनी प्रस्तुति देते हैं वह इमली तल स्थित ज्ञानचंद उस्ताद के घर मत्था टेकने जरूर जाते हैं। सवाल यह है? कि ज्ञानचंद उस्ताद कौन थे और उनके घर मत्था टेकने लोक कलाकार क्यों जाते हैं। यह जानकारी पहली बार दैनिक जागरण सामने ला रहा है। जानकारी के अनुसार दाऊदनगर में जो लोक कलाकार खतरनाक प्रस्तुतियां देते हैं, या झांकी प्रस्तुति करते हैं या किसी भी तरह की कला की प्रस्तुति करते हैं, वह विभिन्न नारों के साथ ज्ञानचंद उस्ताद की जय जरूर बोलते हैं। ये ज्ञानचंद उस्ताद कौन थे, कहां के थे और इनका जिउतिया से क्या संबंध है? यह दिलचस्प जानकारी है। वास्तव में ज्ञानचंद उस्ताद को लेकर यह माना जाता है। उनके नेतृत्व में इमली तल जीमूत वाहन भगवान का चौक स्थापित किया गया होगा या उन्होंने ही पहली बार कलाओं की प्रस्तुति का नेतृत्व किया होगा जिस कारण लोग उन का जयकारा श्रद्धा से लगाना प्रारंभ किए होंगे। यह परंपरा बनती चली गई। यहां ज्ञानचंद उस्ताद के अलावा भी कई उस्तादों का जयकारा लगता है।
(ज्ञानचंद उस्ताद के घर पर लगी नेमप्लेट। जागरण।)
ज्ञानचंद उस्ताद इमली तल के निवासी थे। उनके घर में देवी मंदिर बना हुआ है। जहां सात देवियों और एक भैरव बाबा के कुल आठ पिंड स्थापित हैं। कलाकार इस मंदिर में जाते हैं और मत्था टेकते हैं और देवी मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। कलाकारों का मानना है? कि ऐसा करने से उन पर आने वाला खतरा टल जाता है। उनकी प्रस्तुति यहां सरलता से सफल होती है। महत्वपूर्ण है? कि इमली ताल डाकिनी और ब्रह्म की दो खतरनाक प्रस्तुतियां होती है। यहां बिना ज्ञान चंद उस्ताद का जयकारा लगाए कोई कार्य संपन्न नहीं होता है। अन्य स्थानों के कलाकार भी उनका जयकारा लगाते ही लगाते हैं।
ना मुझे ना आने वाली पीढ़ी को होगी तकलीफ: लक्ष्मण प्रसाद
(ज्ञानचंद उस्ताद के वंशज लक्ष्मण प्रसाद। जागरण।)
ज्ञानचंद उस्ताद के घर में रहते हैं लक्ष्मण प्रसाद। उन्होंने बताया कि उनके पिताजी के नाना थे ज्ञानचंद उस्ताद। उनका जन्म कब हुआ था, कब मृत्यु हुई थी, यह अज्ञात है। बताया कि लोगों के आने जाने से उनके घर में उन्हें कोई परेशानी कभी नहीं होती है और न उनकी पीढिय़ों को कोई परेशानी होगी। बताया कि वे स्वयं और उनका पूरा परिवार जिउतिया लोकोत्सव में सहभागी होता है। बताया कि सभी समुदाय जाति और धर्म के कलाकार यहां स्वेच्छा से आते हैं और पूजा अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
क्या है उस्ताद के नाम के जयकारा की परंपरा
यहां के लोक कलाकार उनको उस्ताद मानते हैं जिनके नेतृत्व या निर्देशन में वह कोई प्रस्तुति तैयार करते हैं। ज्ञानचंद उस्ताद का सर्वाधिक नाम लिया जाता है। इससे यह माना जा सकता है कि यहां विविध कला प्रस्तुतियों का नेतृत्व व निर्देशन उन्होंने किया होगा। उसके बाद वासु खलीफा, सीताराम उस्ताद, शकुन उस्ताद, भोला उस्ताद, भूलन उस्ताद, रामप्रीत उस्ताद, गनौरी उस्ताद, दमड़ी उस्ताद, जुगल उस्ताद, नंदकिशोर उस्ताद, राम बाबू उस्ताद का जयकारा यहां के लोक कलाकार लगाते हैं। लोक कलाकार प्रदुमन कसेरा, धीरज कसेरा ने बताया कि ज्यादातर जयकारा मृत उस्तादों के नाम का लगाया जाता है। हालांकि अब जीवित उस्तादों के भी नाम का जयकारा कलाकार उनके प्रति अपना समर्पण भाव व्यक्त करने के लिए लगाते हैं।