बच्चों की तस्करी से बदनाम है बिहार, सबसे बड़ा सवाल-क्यों बेबस है पूरा तंत्र
बच्चों की तस्करी के लिए बिहार पूरी दुनिया में बदनाम है। गरीब मां-बाप से कुछ पैसों में तस्कर बच्चों को खरीद लेते हैं फिर शुरू होता है -उनका शोषण। पूरा तंत्र इस मामले में बेबस है?
गया [अश्विनी]। सर्वाधिक 89 फीसद दर के साथ बिहार बच्चों की तस्करी के मामले में देश-दुनिया में बदनाम हो चला है। बिहार के नौनिहालों को भट्टियों, मंडियों, कारखानों में खपाया जा रहा है। गरीब मां-बाप को चंद रुपयों का लालच देकर तस्कर बच्चों को खरीद रहे हैं।
इधर, पुलिस, इंटेलिजेंस, बाल अधिकार संरक्षण आयोग, मानवाधिकार आयोग, बाल श्रम आयोग, महिला बाल विकास विभाग, समाज कल्याण विभाग.. न जाने कितनी व्यवस्थाएं हैं, जो बनावटी साबित हो चुकी हैं।
इनकी नाक के नीचे सारा गोरखधंधा धड़ल्ले से चल रहा है, कैसे? क्यों बेबस है पूरा तंत्र? तस्कर गिरोहों पर क्यों नकेल नहीं लगा पा रही है पुलिस? क्या कर रहे हैं संवैधानिक आयोग? क्या इन गरीब बच्चों की संरक्षा सिस्टम की प्राथमिकता सूची में ही नहीं है?
बिहार बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ. हरपाल कौर ने इन सवालों के जवाब में जो कहा, वह सिस्टम की बेबसी को ही नहीं, घोर उदासीनता को भी बयां करता है। उन्होंने कहा, सरकारी अधिकारी आयोग को बहुत हल्के में लेते हैं। मीटिंग बुलाने पर उसमें शामिल होना जरूरी नहीं समझते।
डॉ. कौर ने जो कुछ कहा, वह स्पष्ट करता है कि सिस्टम में होते हुए भी आयोग सिस्टम के आगे बेबस है। ये बच्चे सिस्टम और सरकार की प्राथमिकता सूची में नहीं हैं?
बताते चलें कि केंद्र व राज्य स्तर पर बाल अधिकार संरक्षण आयोग एक संवैधानिक संस्था है। बतौर सदस्य भारत ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुपालन में इसे संवैधानिक दर्जा दिया है। बच्चों के हितों के संरक्षण के लिए आयोग केंद्र व राज्य सरकारों को सुझाव व दिशा-निर्देश देता है।
पड़ताल में जब सामने आया कि बिहार के बच्चों को राजस्थान में खपाया जा रहा है तो दैनिक जागरण ने राजस्थान में भी पड़ताल की। यह सच साबित हुआ। राजस्थान सरकार ने कहा कि राजस्थान से मुक्त करा जब बच्चों को वापस बिहार भेजा जाता है तो कुछ दिनों बाद ही वे तस्करों के जरिये वापस राजस्थान के कारखानों तक पहुंच जाते हैं। ऐसे में बिहार सरकार की उदासीनता पर सवाल उठना लाजिमी है।
डॉ. कौर ने कहा कि दैनिक जागरण के अभियान को हर दिन देख रही हूं। इससे नई उम्मीद जगी है। बच्चों की तस्करी को लेकर वे सख्ती से हर जिला प्रशासन को पत्र भेज रही हैं। उनके संज्ञान में बहुत बातें आई हैं। बच्चों का संरक्षण बड़ा मुद्दा है, इस पर वे गंभीर हैं। अभी पटना में छापेमारी की गई।
पुलिस-प्रशासन से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य हर विभाग की जवाबदेही बनती है। बच्चों के पुनर्वास की लंबी प्रक्रिया से बाहर निकलने की जरूरत है।
जागरण ने यह सवाल भी उठाया था कि तस्करों की गिरफ्त से जब बच्चे छुड़ाए जाते हैं तो उनके पुनर्वास के लिए कोई व्यवस्था नहीं है, बालश्रम से मुक्त कराए जाने पर व्यवस्था है, वह भी दम तोड़ देती है। इन दोनों के बीच एक पतली रेखा है। डॉ. कौर ने इस पर कहा कि सवाल सही है। बच्चों को दलालों की निगाहों से कैसे सुरक्षित रखा जाए, इस पर व्यापक कार्य करने की जरूरत है।
यही सवाल समाज कल्याण के निदेशक राजकुमार से भी। बच्चे छुड़ाए जा रहे हैं, पर उसके बाद? वे कहते हैं, इसके लिए योजना बनी हुई है। उन्होंने हाल ही में प्रभार लिया है। जो मुद्दे उठाए गए हैं, उसे वे गंभीरता से देखेंगे।