शक्ति रूपेण संस्थिता
बेलागंज का प्रसिद्ध काली मंदिर द्वापरकालीन है। इसका प्रार्दुभाव द्वापर युग के अंत और कलयुग के प्रारंभ से मिलता है।
गया। बेलागंज का प्रसिद्ध काली मंदिर द्वापरकालीन है। इसका प्रार्दुभाव द्वापर युग के अंत और कलयुग के प्रारंभ से मिलता है। जब असुर सम्राट शिवभक्त वानासुर की राजधानी सोनितपुर थी। जिसका उल्लेख श्रीमद्भागवत पुराण के दशम स्कंध में है। सोनितपुर का राजा वाणासुर की पुत्री उषा द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गई थी।
मंदिर का महत्व
द्वापरकालीन इस मंदिर में स्थित मा काली को लोग मा विभुक्षा काली के नाम से भी जानते हैं। जो भी श्रद्घालु मा के दरबार में आते है, वे खाली हाथ नहीं जाते हैं। जो भक्त सच्चे मन से मा की दरबार में अर्जी लगाते हैं, उनकी हर मनोकामना पूरी होती है।
मंदिर की संरचना
पूर्व काल में बेला वाली काली के मंदिर के नाम पर सिर्फ ढाचा मात्र था। 80 की दशक में बेलागंज में बीडीओ विजय कुमार सिंह थे। जो चर्म रोग से ग्रसित व नावल्द थे। जिन्होंने नित्य मा की दरबार में अपनी अर्जी लगाना शुरू किया। भक्ति का परिणाम स्वरूप कुछ दिन बाद ही उनका रोग दूर हो गया। पुत्र रत्न की प्राप्ति भी हुई। इसके बाद वे इस मंदिर के विकास में तन-मन-धन से लग गए। आज मंदिर प्रबंधकारिणी समिति गठित है। निरंतर मंदिर का विकास हो रहा है।
कैसे पहुंचे मंदिर
गया-पटना रेलखंड के बेला स्टेशन से पाच सौ मीटर पश्चिम और एनएच 83 से दो सौ मीटर पूरब पर मा विभुक्षा काली का मंदिर स्थापित है। जहा रेल व सड़क मार्ग से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
मंदिर के पुजारी
बृजभूषण पांडेय ने बताया कि मां की कृपा से श्रद्धालुओं में आस्था दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। साल के दोनों चैत्र व शारदीय नवरात्र में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ होती है। श्रद्धालुओं की सुविधा एवं व्यवस्था को लकर उन्हें व सामाजिक कार्यकर्ताओं को शामिल करते हुए एक कमिटी बनाई गई है। जो मंदिर में आने वाले श्रद्घालुओं के सेवा में सदैव लगे रहते हैं।