बटाने नहर परियोजना 46 वर्षों से पड़ी अधूरी, जानें कब बंजर भूमि पर लहलहाएगी खरीफ और रबी की फसल
दक्षिणी नक्सली इलाके की महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजना बटाने नहर 46 वर्षों से अधूरा पड़ा है। नहर के अधूरा रहने से देव प्रखंड के दुलारे बरंडारामपुर एरौरा केताकी बेढ़नी बेढ़ना पंचायतों के किसानों के खेतों को सिंचाई की सुविधा आजतक नहीं मिली है।
जागरण संवाददाता, औरंगाबाद। जिले के दक्षिणी नक्सली इलाके की महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजना बटाने नहर 46 वर्षों से अधूरा पड़ा है। नहर के अधूरा रहने से देव प्रखंड के दुलारे, बरंडारामपुर, एरौरा, केताकी, बेढ़नी, बेढ़ना पंचायतों के किसानों के खेतों को सिंचाई की सुविधा आजतक नहीं मिली है। इन पंचायतों की बंजर भूमि पर हरियाली नहीं आ सकी है। इलाके के किसान नहर के पानी के लिए तरस रहे हैं।
किसान बारिश पर निर्भर हैं। बारिश होती है तो किसानों के खेतों में धान की फसल होती है अन्यथा खेत बंजर रह जाती है। इलाके के किसान हर वर्ष सुखाड़ का दंश झेलते हैं। इलाके की अधिकांश जमीन आज भी सिंचाई के बिना बंजर पड़ी रहती है। बंजर जमीन पर हरियाली लाने के लिए वर्ष 1975 में बटाने नहर परियोजना की नींव रखी गई थी। तब इलाके के किसानों एवं मजदूरों में आस जगी थी की अब उनके खातों में हरियाली आएगी। खेतों को नहर का पानी मिलेगा और खुशहाली आएगी।
इस परियोजना से करीब 9000 हेक्टेयर जमीन को सिंचित करने का लक्ष्य था पर वर्तमान में करीब 5000 हेक्टेयर ही हो पाती है। नहर के अधूरा रहने से न बंजर जमीन पर हरियाली आई न किसानों व मजदूरों के घरों में खुशहाली। जब नहर की नींव रखी गई थी। तब यह परियोजना करीब पांच करोड़ की थी पर अब यह परियोजना करीब 203 करोड़ की हो गई है।
दुलारे पैक्स अध्यक्ष बिजेंद्र कुमार यादव, बेढ़नी गांव निवासी किसान मनोज कुमार सिंह ने बताया कि बटाने नहर के अधूरा कार्य पूरा नहीं होने से किसानों को सिंचाई की सुविधा नहीं मिली है। करीब 46 वर्षों से अधूरी पड़ी इस परियोजना पर सरकार ने करीब 129 करोड़ राशि खर्च की है पर किसानों और मजदूरों के खेतों को पानी नहीं मिला है। जो राशि अबतक खर्च की गई है, वह अनुपयोगी है। परियोजना का डैम एवं मेन कैनाल का कार्य अधूरा पड़ा है।
कहते हैं कार्यपालक अभियंता
कार्यपालक अभियंता देवराज रजक ने बताया कि नहर का शिलान्यास तब किया गया था। जब बिहार झारखंड एक था। अब दोनों राज्य के बंटवारे के बाद परियोजना का डैम झारखंड में चला गया है। झारखंड के द्वारा डैम का पानी हर वर्ष बर्बाद किया जाता है, जिससे नहर का पानी देव व कुटुंबा के इलाके तक नहीं पहुंच पाती है।
झारखंड के क्षेत्र में करीब 11 एकड़ जमीन के मुआवजे का विवाद के कारण मेन कैनाल का कार्य अधूरा पड़ा है। डैम का फाटक सही करने और मेन कैनाल का निर्माण पूरा करने को लेकर कई बार दोनों राज्यों के बीच उच्चस्तरीय बैठक हुई है।