औरंगाबाद में देव के 12 गांवों में होती है मगही पान की खेती, मुंबई, चेन्नई से लेकर वाराणसी तक डिमांड
देव के 12 गांवों में मगही पान की खेती होती है। मुंबई चेन्नई से लेकर वाराणसी तक डिमांड है। इसके स्वाद के मुरीद हर शहर के लोग हैं। बदलते समय में तकनीक और बाजार का साथ न मिलने से इसका स्वाद कसैला होते जा रहा है।
सनोज पांडेय, औरंगाबाद। औरंगाबाद के देव प्रखंड के 12 गांवों में मगही पान की खेती होती है। यहां के पान का अलग स्वाद है। मुंबई, चेन्नई से लेकर वाराणसी तक डिमांड है। इसके स्वाद के मुरीद हर शहर के लोग हैं। बदलते समय में तकनीक और बाजार का साथ न मिलने से इसका स्वाद कसैला होते जा रहा है। कभी देव प्रखंड के प्रत्येक गांव में 30 से 40 किसान इसकी खेती करते थे। अब सिमटकर 10 से 20 रह गए हैं। तकनीक व बाजार की कमी से पिछले 10 वर्षों में केताकी, खडीहा, कीर्तिपूरम एवं डुमरी गांव के ग्रामीणों ने पानी की खेती करना छोड़ दिए हैं। रोजगार की आस में दूसरे राज्य में पलायन कर गए हैं।
जब सड़क नहीं थी तो पान की थी पहचान
देव प्रखंड के गांवों में पान को लेकर बाजार सजती थी। बाहर से व्यवसायी यहां पान का पत्ता खरीदने आते थे। तब यहां आने-जाने के लिए सड़क नहीं थी। अब सड़क के साथ बिजली भी है परंतु पान बाजार विकसित होने की जगह कम होने लगा है। देव प्रखंड के एरकी टोले गिधौल, भत्तुबिगहा, खेमचंद बिगहा, तेजुबिगहा, केताकी, खडीहा, योधपुर समेत अन्य गांवों में बड़े पैमाने पर मगही पान की खेती होती थी। तब कृषकों ने कमेटी बनाकर यहां पान बेचने के लिए बाजार लगाना शुरू किया था। ताजा मगही पान खरीदने औरंगाबाद शहर के अलावा वाराणसी, कोलकाता, रांची, पटना, गया जैसे शहरों से व्यापारी आते थे। अब जब सुविधाएं हैं तो बाहर से व्यवसायी पान का पत्ता खरीदने यहां नहीं पहुंच रहे हैं। पान की खेती करने वाले किसान रंजन चौरसिया, उमेश, राजेश एवं धर्मेंद्र चौरसिया ने बताया कि अब यहां मंगलवार एवं शनिवार को बाजार लगती है।
चेन्नई से लेकर मुंबई व दिल्ली तक जाती है पान
खेमचंद बिगहा में पान की खेती कर रहे किसान उमेश प्रसाद चौरसिया, राजेश प्रसाद चौरसिया, प्रेम चौरसिया एवं सिबोध चौरसिया ने बताया कि यहां का पान दिल्ली, चेन्नई एवं मुंबई तक जाती है। हमारे यहां से पान खरीदकर व्यवसायी वाराणसी ले जाकर बेचते हैं। वहां के व्यवसायी दिल्ली, चेन्नई और मुंबई जैसे बड़े शहरों में पहुंचाते हैं। यहां के पान की लाली बड़े शहर के लोगों के मुंह तक रहती है। संसाधन के अभाव के कारण खेती सिमटती जा रही है।
देव के नौ गांवों में हो रही खेती
किसान उमेश ने बताया कि पहले 12 गांवों में पान की खेती होती थी परंतु चार गांव के किसानों ने बंद कर दिया है। वर्तमान में खेमचंद बिगहा, तेजु बिगहा, भतु बिगहा, बरई बिगहा, जोधपुर, पचोखर एवं देव में करीब 113 किसान 25 बिगहा में पान की खेती किए हैं। करीब पांच क_े में पान लगाए हुए हैं। खर्च अधिक एवं आमदनी कम होने के कारण किसान खेती छोड़ते जा रहे हैं। दो वर्षों से कोरोना महामारी के कारण किसानी बर्बाद हो गई। पान की बिक्री नहीं हुई। सारा पता खेत में ही सड़ गया। किसानों की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई है।
क्या कहते हैं अधिकारी
औरंगाबाद उद्यान पदाधिकारी जितेंद्र कुमार ने बताया कि पानी की खेती को सरकार बढ़ावा देगी। 100 यूनिट पान लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। एक यूनिट पर सरकार 35,260 रुपये अनुदान देगी। पान के पत्तों की बिक्री के लिए फर्मा प्रोडक्शन कंपनी बनाकर बाजार विकसित किया जाएगा। किसानों की एकजुटता से ही बाजार विकसित होगा।