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Gaya: नारद जी के कहने पर व्‍यास जी ने की थी श्रीमद्भागवत की रचना, आप भी जानिए इसकी कथा

गया के डेल्‍हा में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के पहले दिन रंगरामानुजाचार्य जी ने श्रीमद्भागवत की रचना का प्रसंग सुनाया। उन्‍होंने कहा कि नारद जी के कहने पर ही वेद व्‍यास जी ने इस महापुराण की रचना की।

By Vyas ChandraEdited By: Published: Sat, 03 Apr 2021 09:07 AM (IST)Updated: Sat, 03 Apr 2021 09:07 AM (IST)
Gaya: नारद जी के कहने पर व्‍यास जी ने की थी श्रीमद्भागवत की रचना, आप भी जानिए इसकी कथा
कथा सुनाते श्री रंगरामानुजाचार्य जी महाराज। जागरण

गया, जागरण संवाददाता। गया के डेल्हा मोहल्ला में श्री स्वामी रंगरामानुजाचार्य जी महाराज (हुलासगंज) ने  ज्ञान यज्ञ सप्‍ताह के पहले दिन प्रवचन करते हुए श्रीमद्भागवत की रचना की कथा सुनाई। जिस रोचक ढंग से उन्‍होंने कथा का वर्णन किया, श्रोता मंत्रमुग्‍ध हो जैसे अपने स्‍थान पर बंध से गए। बीच-बीच में भजनों की सरिता प्रवाहित होती रही।

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भगवान कृष्‍ण की महिमा का किया वर्णन

रंगरामानुजाचार्य जी ने कहा कि श्री वेद व्यास जी एक लाख श्‍लोक से परिपूर्ण महाभारत और श्रीमद्भागवत के अतिरिक्त अन्य 17 पुराणों की रचना कर चुके थे। लेकिन इसके बावजूद वे खुद को अपूर्ण मानते थे। इस कारण उनका मन खिन्‍न रहता था।एक बार की बात है उनके आश्रम पर  देवर्षि नारद जी पहुंचे। उन्हें देख कर महर्षि व्यास जी ने विधिवत पूजन किया। नारद जी ने व्यास जी से कहा कि आपने महाभारत की रचना की है ये बड़ी ही अद्भुत है। ये धर्म आदि पुरुषार्थो से परिपूर्ण है। आपने सनातन ब्रह्मनत्‍व का खूब विचार किया है। परंतु आप अकृतार्थ पुरुष से समान शोक क्यों कर रहे हैं। व्यास जी ने कहा कि आप ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं इसलिए आपसे इसका कारण पूछता हूं। नारद जी ने कहा की व्यास जी आप ने धर्म आदि पुरुषार्थो का जैसा निरूपण किया है वैसा भगवान श्री कृष्ण का महिमा का वर्णन नहीं किया है। आपकी दृष्टि अमोघ है। अतः आप समस्त जीवों को बंधन से मुक्त करने के लिए अचिंत्य शक्ति भगवान श्री कृष्ण की दिव्य लीलाओं का उल्लेख करे।

नारद जी के कहने पर व्‍यासजी ने की श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना

तब श्री व्यास जी ने श्रीमद्भागवत महापुराण का निर्माण किया। यह महापुराण 12 स्‍कंदों,  335 अध्‍याय एवं 18 हजार श्‍लोकों में निबद्ध है। कथा व्‍यास ने कहा कि विद्यावतां  भागवते परीक्षा, अर्थात़् विद्वानों की परीक्षा श्रीमद्भागवत में होती है। श्रीमद्भागवत आलौकिक ग्रंथ है जिसकी पारायण से लौकिक व पारलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती है। श्रीमद्भागवत कथा श्रवण करने से अनादिकाल के संचित पाप नष्‍ट हो जाते हैं। उससे निर्मल  भक्ति प्राप्तकर ब्रह्म का सानिध्य प्राप्त करता है।


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