दुल्हनों को दलदल से निकालने वाले शफीक को अमेरिका करेगा सम्मानित
- गया के युवक को मिलेगा एक लाख अमेरिकी डॉलर वाला ग्रिनले अवार्ड आधी राशि उन्हें और आधी संस्था को अपनी राशि संस्था को कर देंगे दान - महिलाओं की मुक्ति के लिए इंपावर पीपुल नामक संस्था बनाकर कर रहे काम दस राज्यों में सैकड़ों महिलाओं को करा चुके हैं उद्धार ...............
अनवर हुसैन सोनी, आमस (गया): गरीब तो नहीं कहेंगे, लेकिन शफीकुर रहमान कोई रईस घराने की औलाद भी नहीं। आम ग्रामीण की तरह परवरिश हुई और आज भी रहन-सहन वैसा ही है। एक जुनून है, जिसको आज अमेरिका भी सलाम कर रहा है। दुल्हनों को दलदल से निकालने और मानव तस्करी पर अंकुश का जुनून। इसके लिए अमेरिका ने ग्रिनले अवार्ड देने की घोषणा की है। एक लाख अमेरिकी डॉलर का अवार्ड। भारतीय मुद्रा में लगभग 70 लाख रुपये। गया जिला में नक्सल प्रभावित आमस प्रखंड के हमजापुर गाव के रहने वाले शफीक भाइयों में सबसे छोटे हैं। अपनी शादी नहीं हुई, लेकिन शादी के झांसे में आकर तस्करों के चंगुल में फंस रही युवतियों-महिलाओं के उद्धार के लिए हर हमेशा बेचैन रहते हैं। कमजोर महिलाओं के अधिकार की रक्षा के लिए बजाप्ता इंपावर पीपुल नामक संगठन बनाकर वे मुहिम छेड़े हुए हैं। अमेरिका को उनकी यह मुहिम काफी रास आ रही है। ग्रिनले अवार्ड का आधार यही है, जो उन्हें अक्टूबर के पहले सप्ताह में मिलेगा। यह अवार्ड पाने वाले शफीक पहले भारतीय होंगे। शफीक के पिता मुजीबुर रहमान साधारण किसान हैं। मां सोगरा खातून घरेलू महिला। बेटे की इस कामयाबी से दोनों फूले नहीं समा रहे। कह रहे कि बेटा हो तो ऐसा! शफीक ने तो गांव-जवार क्या, दुनिया में देश का नाम रोशन कर दिया। शफीक चार भाई और तीन बहन हैं। एक बहन शिक्षिका व एक भाई प्रोफेसर हैं। घर पर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। उसी घर पर, जो सुविधा-संपन्न नहीं। शफीक के लिए यह प्राथमिकता भी नहीं। वे कहते हैं कि पुरस्कार स्वरूप मिलने वाली अपने हिस्से की राशि भी वे संस्थान को सौंप देंगे, ताकि उसकी गतिविधि अनवरत चलती रहे। शफीक इंपावर पीपुल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) हैं। पुरस्कार की आधी राशि उन्हें और आधी संस्थान को मिलनी है। यानी दोनों को 35-35 लाख रुपये के करीब। शफीक चाहते तो इस राशि से जिंदगी के ऐश-ओ-आराम का बंदोबस्त करते, लेकिन नहीं। पढ़ाई के साथ सामाजिक सरोकार: गांव के स्कूल से आठवीं और शेरघाटी के रंगलाल हाई स्कूल से शफीक ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। गया कॉलेज से इंटरमीडिएट करने के बाद दिल्ली का रुख किए। वहां इंदिरा गांधी खुला विश्वविद्यालय से सामाजिक कार्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त किए। दिल्ली में ही बंधुआ मुक्ति मोर्चा से जुड़ गए और उसके बाद दुल्हनों को बचाने के उपक्रम में जुट गए। जानलेवा हमलों से नहीं हुए विचलित: वर्ष 2006 में उन्होंने इंपावर पीपुल नामक संस्था की स्थापना की। अपने साथियों के साथ मिलकर वे अब तक पांच हजार से ज्यादा महिलाओं का उद्धार कर चुके हैं। दस राज्यों में उनका संगठन काम कर रहा। महिलाओं की मुक्ति के अभियान में कई बार जानलेवा हमले भी हुए, लेकिन शफीक कभी विचलित नहीं हुए। अमेरिकी पाठ्यक्रम में होगा एक अध्याय: अमेरिकी विश्वविद्यालय द्वारा शफीक के सहयोग से एक सप्ताह तक जगह-जगह कार्यशाला भी आयोजित की जाएगी। वहां के पाठ्यक्रम में इंपावर पीपुल और शफीक पर एक अध्याय शामिल करने की तैयारी चल रही है। इसका उद्देश्य नई पीढ़ी को सामाजिक सरोकारों के लिए प्रेरणा देना है। पहले भी मिल चुके हैं कई पुरस्कार: शफीक को वर्ष 2013 में दिल्ली में अमेजिंग अमेजिंग इंडिया का पुरस्कार मिल चुका है। पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी उन्हें टाइम्स ग्रुप द्वारा दिए जाने वाले सम्मान से नवाज चुके हैं। वर्ष 2014 में मुंबई में सोनी टीवी द्वारा आयोजित सीआइडी ब्रेवली अवार्ड के तहत एक लाख का पुरस्कार मिल चुका है।