Health News: मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल के शिशु रोग विभाग में दस रेडियेंट वार्मर दो महीने से खराब, इलाज में होती परेशानी
गया स्थित मगध मेडिकल अस्पताल के शिशु वार्ड में लगे 10 रेडियेंट वार्मर दो महीने से खराब हैं। फिलहाल 12 वार्मर से काम चलाया जा रहा है। बच्चों की संख्या बढ़ने पर एक ही वार्मर में दो-दो बच्चों को रखना पड़ता है।
जेएनएन, गया। मगध मेडिकल अस्पताल के शिशु वार्ड का 10 रेडियेंट वार्मर दो माह से खराब है। इस वजह से शिशुओं के इलाज में परेशानी हो रही है। स्थिति ऐसी होती है कि संख्या ज्यादा होने पर एक वार्मर में दो-दो बच्चों को रखना पड़ता है। लेकिन यह शिशुओं की सेहत के लिए ठीक नहीं होता। ठंड के इस मौसम में वार्मर के खराब रहने से डॉक्टर भी चिंता में हैं। बावजूद अस्पताल प्रबंधन और विभाग बेपरवाह बना हुआ है।
नीकू में लगे हैं 22 वार्मर बेड लेकिन 12 ही उपयोग में- शिशु वार्ड के निकू (नियोनेटल इंटेसिव केयर यूनिट) में प्री-मैच्योर बच्चे को शुरू के कुछ दिनों तक निर्धारित तापमान वाले रेडियेंट वार्मर में रखा जाता है। ताकि बच्चे का शरीर थोड़ा गर्म रह सके। शिशु वार्ड के नीकू में 22 रेडियेंट वार्मर हैं। लेकिन इनमें से 10 दो माह से खराब पड़े हुए हैं। इसके चलते शिशु वार्ड में काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को काफी दिक्कत होती है। विभागाध्यक्ष डॉ. सुशील भूषण ने कहा कि दो माह से ये रेडियेंट वार्मर खराब हैं। इसे ठीक कराने के लिए कई बार लिखा गया। हाल ही में 10 नया वार्मर उपलब्ध कराने के लिए अधीक्षक को लिखा गया है। सोमवार को शिशु वार्ड में 20 बच्चे भर्ती थे। एक ही वार्मर में देा-दो बच्चों को रखना पड़ा।
बाजार में महंगा है इलाज- निजी चिकित्सालयों में रेडियेंट वार्मर में रखकर इलाज कराना काफी महंगा है। जानकारी के मुताबिक एक दिन में 2 से 3 हजार रुपये तक खर्च आता है। जबकि बीमारी के अनुसार एक बच्चे को कई बार 2-4 दिन तक रखना पड़ता है। इसके लिए चिकित्सक शिशु की सेहत के अनुसार सलाह देते हैं। कहते हैं अधीक्षक: मगध मेडिकल कॉलेज के अधीक्षक डॉ: हरिश्चंद्र हरि ने कहा कि शिशु वार्ड में रेडियेंट वार्मर खराब रहने की सूचना है। उसे ठीक कराने को लेकर कार्रवाई की जा रही है। नए वार्मर खरीद की प्रक्रिया भी की जा रही है।