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मनुष्य की चेतना को प्रेरित करता मानववाद की बुनियाद पर लिखा संत साहित्य

मोतिहारी । हिदी साहित्य के इतिहास में संत साहित्य अपनी महती भूमिका के साथ आज भी प्रासंगिक ह

By JagranEdited By: Published: Mon, 13 Jul 2020 11:18 PM (IST)Updated: Mon, 13 Jul 2020 11:18 PM (IST)
मनुष्य की चेतना को प्रेरित करता मानववाद की बुनियाद पर लिखा संत साहित्य
मनुष्य की चेतना को प्रेरित करता मानववाद की बुनियाद पर लिखा संत साहित्य

मोतिहारी । हिदी साहित्य के इतिहास में संत साहित्य अपनी महती भूमिका के साथ आज भी प्रासंगिक है। मानवतावाद की बुनियाद पर लिखा गया यह साहित्य अनवरत मनुष्य की चेतना को प्रेरित करता है। संत साहित्य के सामाजिक एवं सांस्कृतिक संदर्भों को लेकर चितन, मनन की संकल्पना के साथ महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में सोमवार को एक दिवसीय ई-संगोष्ठी का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय के शोध एवं विकास प्रकोष्ठ के तत्वावधान में 'संत साहित्य : सामाजिक एवं सांस्कृतिक संदर्भ' विषयक ई-संगोष्ठी की परिकल्पना ने विश्वविद्यालय के कुलपति संजीव कुमार शर्मा के दिशा-निर्देशन में आकार लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. शर्मा ने की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सर कार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल संगोष्ठी के मुख्य अतिथि थे। मंगलाचरण से कार्यक्रम का आगाज हुआ। संस्कृत विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. विश्वेश ने मंलाचरण प्रस्तुत किया। वक्तव्य को नवीन ²ष्टि प्रदान करते हुए मुख्य अतिथि डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि संत साहित्य आध्यात्मिक लोगों का साहित्य है। भारत की सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात आध्यात्म है। यही हमारी 'आत्मा' है। समाज के व्यापक आयामों से जोड़ते हुए उन्होंने सामाजिक विघटन की ओर भी संकेत किया। कहा- भक्ति आंदोलन और समता आंदोलन इसी विघटन के विरुद्ध समवेत आवाज है। अध्यक्षीय वक्तव्य में कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने सर्वप्रथम सभी वक्ता-अतिथियों का स्वागत किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि संत-परंपरा 'एकात्म' की परंपरा है। कालिदास, तिरुवल्लुवर एवं आगे की परंपरा से सभी को जोड़ते हुए गंभीर एवं तार्किक बातें रखीं। बीज वक्तव्य देते उत्तर प्रदेश हिदी सांस्थान लखनऊ के अध्यक्ष प्रो. सदानंद गुप्त ने अपने विस्तृत एवं गम्भीर व्याख्यान में कहा कि संत साहित्य के कवियों में सुंदर आत्माभिमान है। यह आत्माभिमान ही शब्दबोध है, जिसकी बात आगे चलकर भारतेंदु हरिश्चंद्र करते हैं। भक्ति साधकों ने समस्त भेदों को मिटाकर मुनष्य को सदैव उपर रखा है। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री ने व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि संत साहित्य की साधना सांस्कृतिक-साधना है। संतों ने निराशा के अंधकार को चुनौती दी है। आम भाषा में कविता कहके सभी के अंतस को छुआ है। साहित्य एवं विचारधारा के व्यापक पहलुओं पर गहरी पकड़ रखने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. चंदन चौबे ने कहा कि संत काव्य मानवीय गरिमा का काव्य है। भारतीय संस्कृति को वहन करती संत-कविता जागरण के ठोस धरातल पर खड़ी है। यह काव्य सत्य का आग्रह करता है। इसके मूल में साहित्य का प्रस्थान विदु है। राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी में शामिल विद्वानों का स्वागत करते हुए हिदी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. अंजनी श्रीवास्तव ने कहा कि संत साहित्य धर्मांतरण को रोकने एवं मिट्टी की ओर लौटने का साहित्य है। वहीं, ई-संगोष्ठी का संचालन करते हुए कार्यक्रम के संयोजक एवं हिदी विभाग के सहायक प्राध्यापक श्यामनंदन ने कहा कि संतों ने समाज जागरण का महत्वपूर्ण कार्य किया है। जिसका अवलोकन भारतीयता की ²ष्टि से करने की आवश्यकता है। कार्यक्रम के आयोजन में हिदी विभाग के डॉ. गोविद प्रसाद वर्मा, पुस्तकालय विज्ञान विभाग के डॉ. भवनाथ पांडेय, वाणिज्य विभाग के डॉ. शिवेंद्र एवं हिदी विभाग की सहायक आचार्य डॉ. गरिमा तिवारी ने भी सक्रिय भूमिका निभाई। धन्यवाद ज्ञापन भाषा एवं मानविकी विभाग के संकाय प्रमुख प्रो. राजेन्द्र सिंह ने किया।

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