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गढ़ी माई मेले में 50 लाख से अधिक श्रद्धालु आएंगे

मोतिहारी। विश्व प्रसिद्ध गढ़ी माई मेला की तैयारी की समीक्षा संस्कृति पर्यटन और उड्यन मंत्री योगेश भट्टराई ने की। पत्रकारों को उन्होंने बताया कि भारत-नेपाल का बेटी-रोटी के अलावा ऐतिहासिक संबंध हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 19 Nov 2019 12:39 AM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 06:19 AM (IST)
गढ़ी माई मेले में 50 लाख से अधिक श्रद्धालु आएंगे
गढ़ी माई मेले में 50 लाख से अधिक श्रद्धालु आएंगे

मोतिहारी। विश्व प्रसिद्ध गढ़ी माई मेला की तैयारी की समीक्षा संस्कृति पर्यटन और उड्यन मंत्री योगेश भट्टराई ने की। पत्रकारों को उन्होंने बताया कि भारत-नेपाल का बेटी-रोटी के अलावा ऐतिहासिक संबंध हैं। दोनों देशों के बीच संबंधों का संगम है । आध्यात्मिक, धार्मिक व सामाजिक रूप से पौराणिक संबंध है। विश्व में सर्वाधिक बलि के लिए प्रसिद्ध बारा जिला के बरियापुर गांव स्थित सिद्धपीठ स्थल गढ़ी माई मेला है। पंचवर्षीय मेला में देश-विदेश से लोग आते है। मंदिर अति प्राचीन है। नेपाल के प्रमुख धर्मस्थलों में एक स्थान इसका भी है। सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित होने के कारण बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, दिल्ली आदि सहित कई राज्यों से लोग यहां पहुंचते हैं। एशिया महादेश का सबसे बड़ा मेला है। जो करीब दस किलोमीटर के क्षेत्रफल में लगता है। यह मेला आगामी तीन से 31 दिसंबर तक चलेगा। मेले में करीब 50 लाख से अधिक श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है। लाखों पशु-पक्षियों की बलि चढ़ाई जाती है। वहीं हजारों की संख्या में पशु-पक्षियों का कान काटकर छोड़ दिया जाता है। जिसकी तैयारी पूरी कर ली गई है। नेपाल सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि आस्था की पूजा में बलि पर रोक नहीं लगाया जा सकता है। इसके लिए जनजागरूकता अभियान चलाकर धीरे-धीरे रोका जा सकता है। इसके लिए नेपाल सरकार और मंदिर पूजा समिति स्थानीय निकाय के लोग प्रयास कर रहे है। श्रद्धालुओं की सुरक्षा व्यवस्था के लिए पांच किलोमीटर पर अस्थाई पुलिस चौकी गस्ती दल, स्काउट के छात्रों और स्वयंसेवी संगठनों को तैनात किया गया है। इसकी तैयारी दो साल पूर्व शुरू कर दिया जाता है। मेला में 24 घंटे विधुत आपूर्ति के लिए स्ट्रीट लाइट, मंदिर प्रांगण में 600 से अधिक शौचालय, पानी का पानी और ठहरने के लिए टेंट की व्यवस्था निशुल्क किया गया है। मेला में पहुंचने वाले लोगों की भीड़ को देखते हुए आसपास के ग्रामीणों का भी बहुत योगदान रहता है।

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