छठ पूजा में छतों पर बनेंगे घाट, सोशल डिस्टेंसिग का भी व्रती करेंगे पालन
मोतिहारी। पवित्रता व स्वच्छता का प्रतीक चार दिवसीय चैती छठ पूजा इस बार कुछ खास रहेगा।
मोतिहारी। पवित्रता व स्वच्छता का प्रतीक चार दिवसीय चैती छठ पूजा इस बार कुछ खास रहेगा। खास इस मायने में इस बार नदी, तालाब व पोखर पर नहीं बल्कि छतों पर कृतिम घाट लगाये जाएंगे। कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरों के कारण ऐसा किया जा रहा है। साथ ही पूजा के दौरान सोशल डिस्टेंसिग का भी व्रती पालन करेंगे। मूलत: छठ सूर्य की उपासना का यह पर्व है। इसमें पुरोहित की भी आवश्यकता नहीं होती है। एक तरह से इसे प्रकृति की पूजा भी कहते हैं। इस बार सरकार द्वारा लॉकडाउन की वजह से व्रतियों को पूजन सामग्री खरीदने व जुटाने में परेशानी हुई है। बावजूद इसके व्रतियों में पर्व की आस्था इस कदर अटूट है कि वे इसे हर हाल में सादगी के साथ मनाने की तैयारी में है। उनका कहना है कि व्रत में भगवान वस्तु नहीं भावना देखते हैं। व्रती इस दौरान सूर्य को अर्घ्य देते समय विश्व में फैली महामारी कोरोना वायरस से निजात के लिए उनसे प्रार्थना भी करेंगे।
कहते हैं आचार्य
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित सत्यदेव मिश्र ने कहा कि सूर्य ऐसे देवता हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है। सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उषा और प्रत्युषा हैं। छठ पर्व में सूर्य के साथ-साथ इन दोनों शक्तियों की संयुक्त अराधना की जाती है। शाम में सूर्य की अंतिम किरण प्रत्युषा एवं सुबह की पहली किरण उषा को अर्घ्य देकर दोनों शक्तियों को नमन किया जाता है। उन्होंने व्रतियों से यह भी अपील की है कि देश में चल रही महामारी को देखते हुए व्रती इस बार पर्व को अपने घरों में करें। वही पूजा को लेकर जो सामान उपलब्ध हो रहे उसी से काम चलावें, भागदौड़ से बचे। भगवान सामग्री नहीं भाव को देखते हैं। ऐसे में व्रती देश में फैली विपदा से निकलने का भी आह्वान कर सकती हैं। सूर्य षष्ठी व्रत का है महत्व
सूर्य षष्ठी व्रत आरोग्य की प्राप्ति, सौभाग्य व संतान के लिए किया जाता है। भगवान भास्कर की मानस बहन षष्ठी देवी हैं। प्रकृति के छठे अंश से षष्ठी माता उत्पन्न हुई हैं। उन्हें बालकों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया भी माना गया है। बच्चे के जन्म के छठे दिन षष्ठी मईया की पूजा की जाती है, ताकि बच्चे का ग्रह-गोचर शांत रहे। शरीर, मन, और आत्मा की शुद्धि का महापर्व छठ है। मान्यता है कि नहाय-खाय से लेकर सप्तमी तक उन भक्तों पर षष्ठी माता की कृपा बरसती है जो श्रद्धापूर्वक व्रत करती हैं। इस पर्व में बांस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्तन, गुड़, चावल, गेहूं से निर्मित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास है।
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नहाय-खाय आज, कद्दू की हुई खरीदारी जासं., मोतिहारी : चैती छठ और नवरात्र को लेकर हर तरफ श्रद्धा और भक्ति का वातावरण है। इस पर विश्व के साथ देश में फैल रही कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए सरकार द्वारा रोज नए-नए कदम भी उठाए जा रहे, ताकि देश की जनता को सुरक्षित किया जा सके। इस बीच सभी सार्वजनिक स्थलों पर मां भगवती की आराधना पर रोक लगा दी गई हैं। वहीं दूसरी तरफ चैती छठ की तैयारियां में व्रती व उनके परिजन जुट गए हैं। इस बार व्रत की शुरुआत 28 मार्च शनिवार को नहाय-खाय से हो रही है, जबकि 29 को खरना और 30 मार्च को अस्ताचलगामी सूर्य को प्रथम अर्घ्य अर्पित किया जाएगा। 31 अप्रैल को उदयाचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही व्रत का समापन हो जाएगा।
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नहाय-खाय की तैयारी पूरी
कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाए..सहित अन्य गीतों के बीच छठ व्रतियों ने छठ महापर्व की तैयारी शुरू कर दी है। चार दिवसीय चैती छठ महापर्व के पहले दिन शनिवार को नहाय-खाय है। इस दिन व्रती प्रात: स्नान-ध्यान कर भगवान सूर्य की अराधना करेंगी। इसके बाद घरों में चावल, दाल, कद्दू की सब्जी तैयार कर भगवान को अर्पित कर उन्हें प्रसाद के रूप में ग्रहण करेंगी। इसी दिन से व्रत का नियम-निष्ठा भी शुरू हो जाएगा। इसी दिन से व्रती गेहूं सुखाने के साथ चूल्हा बनाने के काम में जुट जाएंगी। नहाय-खाय को लेकर बाजारों में शुक्रवार को कद्दू की खरीदारी की गई।