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शिलान्यास के 15 साल बाद भी ऊपरी सड़क पुल का सपना नहीं हुआ साकार

भारत-नेपाल का सीमावर्ती शहर रक्सौल। जिसे अंतरराष्ट्रीय शहर के नाम से भी जाना जाता है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 24 Apr 2019 06:35 AM (IST)Updated: Wed, 24 Apr 2019 06:35 AM (IST)
शिलान्यास के 15 साल बाद भी ऊपरी सड़क पुल का सपना नहीं हुआ साकार
शिलान्यास के 15 साल बाद भी ऊपरी सड़क पुल का सपना नहीं हुआ साकार

मोतिहारी। भारत-नेपाल का सीमावर्ती शहर रक्सौल। जिसे अंतरराष्ट्रीय शहर के नाम से भी जाना जाता है। शहर की महत्ता को देखते हुए तत्कालीन रेलमंत्री जगजीवन राम ने वर्ष 1982 में नेपाल के काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ मंदिर की तर्ज पर स्टेशन भवन का निर्माण कराया था। यहां देशी-विदेशी पर्यटकों का आना-जाना हमेशा लगा रहता है। शहर में यातायात व्यवस्था बेहतर हो इसके लिए 2004 में तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने दो ओवरब्रिज का शिलान्यास किया था। ऐसा लगा था कि पुल के निर्माण के बाद शहर के लोगों को राहत मिलेगी। लेकिन, अब तक पुल के निर्माण की दिशा में कोई कार्य नहीं हो सका है। लोगों के सपने टूटने लगे हैं। शहर के चौक-चौराहों व पान दुकानों पर इन दोनों पुलों की चर्चा होती है। सरकारी अधिकारियों के समक्ष मांगें भी रखी गई, लेकिन इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ। इससे यहां के लोगों को कई प्रकार की परेशानियां झेलनी पड़ती है। रक्सौल से नूतनचंद्र त्रिवेदी की रपट।

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जाम की समस्या से लोगों को मिल जाएगी मुक्ति शहर के लोग जाम की समस्या से सबसे अधिक परेशान रहते हैं। रेलवे गुमटी पर यह समस्या सबसे अधिक रहती है। शिलान्यास के 15 साल गुजर जाने के बाद पुल का निर्माण नहीं हुआ। जाहिर है लोगों में आक्रोश होगा। अब तो लोग यह भी कहते हैं कि शिलान्यास करने की परंपरा पर ही रोक लगाई जानी चाहिए। सामाजिक कार्यकर्ता रंजीत सिंह, गोपाल सर्राफ, भोला दास, शिवचंद्र झा सहित अन्य लोगों ने कहा कि सरकार जिसकी भी बने, शिलान्यास की जगह कार्य को कराने पर ध्यान देना चाहिए। भारत-नेपाल सीमा पर अवस्थित अंतरराष्ट्रीय महत्व के रक्सौल शहर में पंद्रह वर्षो के बाद भी दो सड़क ऊपरी पुलों का सपना को नहीं पूरा किया जाना आम लोगों की भावनाओं से साथ खिलवाड़ है। लोगों ने समपार संख्या 33 व 34 पर पुल का कार्य शुरू करने की मांग उठाई है। लोगों की माने तो पुल निर्माण के लिए मिट्टी की जांच भी की गई, लेकिन बात इसके आगे नहीं बढ़ सकी। रेल फाटक बंद होते ही रफ्तार पर लग जाती है ब्रेक जैसे ही दोनों गुमटियां बंद होती है शहर की रफ्तार पर ब्रेक लग जाती है। दोनों तरफ वाहनों की लंबी कतार लगने के साथ लोग घंटे जाम की समस्या से कराहते नजर आते हैं। छोटे-बड़े वाहनों को घंटों फंसने की मजबूरी होती है। दिन में यह क्रम कई बार चलता है। लोगों की मांग पर निर्माण का बार-बार आश्वासन मिलता है, पर कार्य प्रारंभ नहीं होने से असंतोष भी है। बता दें कि यह सड़क दिल्ली-काठमांडू को जोड़ने वाली मुख्य पथ है। खासकर नेपाल आने-जाने के लिए मुख्य मार्ग है। हाल के महीने में लाइट ओवरब्रिज का शिलान्यास भी कराया गया, लेकिन कार्य प्रारंभ नहीं हुआ है। लोगों का कहना है कि रेलवे गुमटी 24 घंटे में करीब चौदह घंटे बंद रहती है, जिससे लोग यहां घंटों फंसे रहते हैं। सबसे अधिक समस्या डंकन अस्पताल में मरीजों को पहुंचने में होता है। जाम के कारण मरीजों को एंबुलेंस में ही जिदगी और मौत से जूझना पड़ता है। वहीं स्कूली बच्चे भी जाम के झाम में फंसे रहते हैं। जाम का सबसे बड़ा कारण रेलवे गुमटी को माना जा रहा है। शहर में प्रतिदिन लोगों की भीड़ बढ़ रही है। बाहर से आने वाले लोगों की संख्या भी कम नहीं होती। यहां आकर घंटों फंसे रहने के बाद वे यहां की व्यवस्था पर सवाल उठाते हैं। स्थानीय लोग इन पुलों के निर्माण की दिशा में गंभीर पहल की मांग की है।


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