स्कूल के छोटे कैंपस में आकार नहीं ले पा रही शिक्षा व्यवस्था
मोतिहारी । स्तरीय नहीं होती है सरकारी विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था इस अवधारणा को समाप्त करने के लिए सरकार एवं शिक्षा विभाग की ओर से तमाम प्रयास किए जा रहे हैं।
मोतिहारी । स्तरीय नहीं होती है सरकारी विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था, इस अवधारणा को समाप्त करने के लिए सरकार एवं शिक्षा विभाग की ओर से तमाम प्रयास किए जा रहे हैं। विद्यालयों को सुविधा संपन्न बनाया जा रहा है। खासकर माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में स्मार्ट क्लास, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, व्यायामशाला जैसी सुविधाएं विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध कराई जा रही हैं। विद्यालयों में दक्ष शिक्षकों की भी कमी नहीं है। बावूजद इसके तस्वीर अपेक्षित स्तर की नहीं बन पा रही है। कारण क्या है, इस पर न सिर्फ विभागीय मंथन जारी है, बल्कि इस मिथक को तोड़ने का प्रयास भी किए जा रहे हैं। विद्यालयों में सबसे बड़ी समस्या विद्यार्थियों की अनुपस्थिति है। खासकर प्लस टू स्तर के विद्यालयों में केवल नामांकन एवं परीक्षा फॉर्म भरने के लिए ही छात्र-छात्राएं आना मुनासिब समझते हैं। इसके पीछे अभिभावकों की उदासीनता भी सामने आती है। बहरहाल, दैनिक जागरण की टीम ने गुरुवार को मोतिहारी के प्रभावती गुप्ता कन्या प्लस टू स्कूल का जायजा लिया। छोटे से कैंपस में सन्नाटा पसरा था। लगा जैसे स्कूल में छात्राएं ही नहीं है। जानकारी मिली कि विद्यालय में प्राचार्य जावेद अख्तर खान अन्य शिक्षकों के साथ किसी विषय पर बैठक कर रहे हैं। कक्षा संचालन भी हो रहा था। बातचीत के दौरान प्राचार्य ने बताया कि कक्षा संचालन को और बेहतर करने तथा सेंटअप कर चुके विद्यार्थियों को भी बुलाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। बैठक का विषय भी वही था। व्यवस्था के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि यहां सब कुछ है, बस कैंपस छोटा है। भवन की भी दरकार है। कैंपस में अर्द्धनिर्मित कुछ भवन भी दिखे। पेयजल एवं शौचालय की व्यवस्था भी संतोषजनक थी। चहारदीवारी एवं बिजली भी है। विद्यालय प्लस टू स्तर का है। मगर उसके अनुरूप कैंपस नहीं है। इसी क्रम में हमने प्रयोगशाला एवं पुस्तकालय की चर्चा की। जानकारी मिली कि दोनों की व्यवस्था एक ही कमरे में हैं। दरअसल कमरों की भी कमी है। हमने पूछा- क्या हम प्रयोगशाला को देख सकते हैं। प्राचार्य थोड़े परेशान व हिचकिचाते दिखे। कहा- हम तैयारी कर रहे हैं। आपको फिर कभी बुलाकर दिखाउंगा। स्वाभाविक है कि विद्यार्थियों के लिए अभी यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। प्राचार्य के साथ हमने परिसर का जायजा लिया। वर्ग कक्ष में कक्षा नौ की छात्राएं पढ़ रही थीं। सभी स्कूल यूनिफॉर्म में नजर आईं। अच्छी बात यह दिखी कि बगल के कमरे में कक्षा 11 की छात्राएं भी अध्ययनरत थीं। इतिहास के शिक्षक उन्हें पढ़ा रहे थे। अच्छी बात यह इसलिए है कि ज्यादातर विद्यालयों में इंटर की कक्षाओं में विद्यार्थी आते ही नहीं हैं। प्राचार्य ने बताया कि हम मैट्रिक के सेंटअप छात्राओं को भी विद्यालय बुलाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए उनके अभिभावकों से बात की जा रही है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर विद्यार्थी एवं उनके अभिभावक यह मान लेते हैं कि सेंटअप के बाद विद्यालय नहीं जाना है। कुल मिलाकर जो स्थिति दिखी उसमें स्कूल के इस छोटे कैंपस में कोशिश के बाद भी शिक्षा व्यवस्था अपेक्षित आकार नहीं ले पा रही है।