पेट की आग ठंडी करने के लिए जान जोखिम में डालने की मजबूरी
पेट की भूख जान बचाने की चाहत व कई दिनों से भूखे बाढ़ पीड़ित भोजन लाने के लिए अपनी जान को जोखिम में डाल कर बाढ़ के पानी को पार करने को विवश हैं। बड़े लोगों के साथ छोटे-छोटे बचे भी अपने हाथ में थाली व कटोरा लिए जा रहे हैं।
मोतिहारी । पेट की भूख, जान बचाने की चाहत व कई दिनों से भूखे बाढ़ पीड़ित भोजन लाने के लिए अपनी जान को जोखिम में डाल कर बाढ़ के पानी को पार करने को विवश हैं। बड़े लोगों के साथ छोटे-छोटे बच्चे भी अपने हाथ में थाली व कटोरा लिए जा रहे हैं। भोजन लेने वाले इन बाढ़ पीड़ितों की लंबी लाइन बाढ़ के पानी मे लगी हुई है। यह ²श्य नप के वार्ड एक नयका टोला सुगौली में गुरुवार को देखने को मिला। बाढ़ ने इंसानों को बेवश कर दिया है। बड़ी मुश्किल से ये अपनी जान को बचा पा रहे हैं। घर के अंदर व बाहर चारों तरफ पानी ही पानी है। लेकिन शुद्ध पेयजल के एक बूंद के लिए तरस रहे हैं। ग्रामीण जावेद आलम, शमशेर, सरफराज, मरियम खातुन, मु तंजुरिया,अनवर, शाहिल सहित कई लोगों ने बताया कि घर से लेकर गांव के चारो तरफ बाढ़ के पानी से घिरे हुए हैं। घर में कोई सामान नहीं बचा है। खाना बनाने के लिए न कोई सामग्री है और न सूखा जगह। सब पानी-पानी हो गया है। ऐसी स्थिति में किसी तरह अपनी जान को बचाने में जुटे हुए हैं। बड़ी परेशानी व कठिनाई हो रही है। मवेशियों की हालत तो और पतली हो गई है। उनके लिए चारे की व्यवस्था भी नहीं हो पा रही है। इस विपदा में तो बस ऊपर वाले का ही भरोसा है। अब वे हम लोगों की जान ले । वार्ड पार्षद पति विकास शर्मा नाव से और ट्रैक्टर से बाढ़ पीड़ितों को भोजन देने के लिए पहुंचे हुए थे। बाढ़ पीड़ितों ने जैसे ही भोजन की खेप देखी वैसे ही अपने हाथों में बर्तन लेकर दौड़ पड़े। हाथ मे बर्तन लिए एक छोटा बच्चा हमीद ने बताया कि बड़ा परिवार है। खाने के लिए कुछ नहीं है। अब्बा घर पर ही हैं। वे कमाने भी नहीं जा रहे हैं। हम लोग दो दिन से भूखे हैं। बिस्कुट खाकर जी रहे थे। जैसे ही भोजन मिलने की बात मैंने सुनी वैसे ही बर्तन लेकर दौड़ा दौड़ा चला आया। कम से कम भोजन तो नसीब हो जाएगा।