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अस्ताचलगामी सूर्य को अ‌र्घ्य आज, पूजा को तैयार छठ घाट

मोतिहारी। चार दिवसीय लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अ‌र्घ्य देने की प्रथा है। इसके लिए सभी छठ घाटों की तैयारी पूरी कर ली गई है। पर्व के दौरान सिर्फ अस्ताचलगामी व उदीयमान सूर्य की पूजा की जाती है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 01 Nov 2019 10:14 PM (IST)Updated: Sun, 03 Nov 2019 06:39 AM (IST)
अस्ताचलगामी सूर्य को अ‌र्घ्य आज, पूजा को तैयार छठ घाट
अस्ताचलगामी सूर्य को अ‌र्घ्य आज, पूजा को तैयार छठ घाट

मोतिहारी। चार दिवसीय लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अ‌र्घ्य देने की प्रथा है। इसके लिए सभी छठ घाटों की तैयारी पूरी कर ली गई है। पर्व के दौरान सिर्फ अस्ताचलगामी व उदीयमान सूर्य की पूजा की जाती है। जिन घरों में छठ पूजा है। वहां साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। बच्चों को पूजा के महत्व से अवगत कराया जा रहा है। दूसरी ओर विभिन्न मोहल्लों के समाजसेवी व अन्य छठ घाटों को बेहतर लुक देने में लगे हैं। शहर के कई घाटों पर भगवान भास्कर की प्रतिमा के साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा लगाई गई है। अटल उद्यान पार्क, मनरेगा पार्क, शहीद प्रकाश उद्यान, कदम घाट, वृक्षेस्थान घाट, मलंग घाट, रधुनाथपुर छठ घाट व मुंशी सिंह महाविद्यालय के मैदान में बने छठ घाट पर प्रतिस्पर्धा का माहौल दिख रहा है। वहीं घाटों पर पंडाल निर्माण, बिजली व सफाई का काम पूरा कर लिया गया है। इन छठ घाटों को पूजा समिति के सदस्यों द्वारा प्राकृतिक व आर्टिफिशियल सामान से सजाने का काम अंतिम चरण में है।

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कोशी के लिए सजी ईंख की दुकान

जासं, मोतिहारी : छठ पूजा में कोशी का बड़ा महत्व है। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि छठ करने वाले सभी लोग कोशी भरे। ऐसी मान्यता है कि शुभ कार्य या मनोकामना पूर्ण होने पर लोग कोशी भरते हैं। कई लोग जोड़ा कोशी भी भरते हैं। यह पूजा अस्ताचलगामी सूर्य को अ‌र्घ्य देने के बाद व्रती अपने घर पर करते हैं। इस दौरान ईंख को आपस में जोड़कर उसे खड़ा किया जाता है और बीच में हाथी व ईखों के बीच में ढक्कना सजाते हैं। इसमें पूजा में प्रयोग होनेवाली सभी सामग्री भी रखी जाती है और उसके ऊपर दीप जलाकर पूजा की जाती है। इस दौरान व्रती के साथ घर व आसपास की महिलाएं छठ पूजा के पारंपरिक गीत गाती हैं। गीतों में परिवार के सभी सदस्यों के नाम लिए जाते हैं। इसके उपरांत उदयमान सूर्य को अ‌र्घ्य के पूर्व भी छठ घाट पर कोशी भरी जाती है।

भगवान भास्कर को परोसी गई गुड़ की खीर

जासं, मोतिहारी : चार दिवसीय छठ पूजा के दूसरे दिन खरना पूजा का अलग महत्व है। इस दिन व्रती पूरा दिन निर्जला उपवास रहती है। संध्या में भगवान भास्कर को अर्पित करने के लिए प्रसाद बनाती है। प्रसाद में गुड़ का खीर अनिवार्य रूप से सभी व्रत करने वाली व्रतियों द्वारा बनाई जाती है। गुड़ से बनने वाली खीर में साठी का चावल का भी महत्व है। ऐसी अवधारणा है कि धान की पहली फसल भगवान को अर्पित करना। इस पूजा के माध्यम से मां अनपूर्णा की भी अराधना की जाती है। व्रती केला के पत्तल पर रोटी, गुड़ की खीर, केला और अन्य फलों के साथ भगवान को भोग लगाती है और पूजा अर्चना करती है। इसके बाद बारी-बारी से घर के सभी सदस्य पूजा में शामिल होते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं। जिन लोगों के घरों में छठ पूजा नहीं होती हैं उन्हें विशेष रूप से प्रसाद ग्रहण के लिए आमंत्रित किया जाता है, ताकि इस पर्व में उनकी भी सहभागिता हो सके।

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आंगन व छत पर बने तालाब में भगवान भास्कर को दिया जाएगा अ‌र्घ्य जासं, मोतिहारी : ऐसा कहा गया है कि स्वच्छ जगहों पर भगवान का वास होता है। छठ पर्व में आस्था के साथ स्वच्छता का भी ख्याल रखा जाता है। वहीं नदियों व तालाबों में फैली गंदगी के बीच भगवान की पूजा करने से व्रती कतराते हैं। इसको लेकर व्रती अपने दरवाजे या छत पर पोखरा बना कर उसी में अ‌र्घ्य देती है। नदियों व तालाबों में फैली गंदगी को देखते हुए शहर के चांदमारी मोहल्ला की चार महिला आशा सिंह, रानी श्रीवास्तव, चंद्रलता देवी, आभा पांडेय ने दुर्गा मंदिर परिसर में ही पोखरनुमा घाट का निर्माण करा दिया। यहां हर बार छठ करने वाले व्रतियों की संख्या बढ़ती जा रही है। कई व्रती तो अपने घर के छतों पर भी पूजा-अर्चना करते हैं। वहीं बेलबनवा में अपने दरवाजे पर बने पोखर के पास बच्चे पूजा के लिए सिरसोपता बनाते दिखे। वे पूजा की तैयारी को अंतिम रूप देने में लगे थे।

मन की मुराद पूरी होने का प्रतीक कोशी

जासं, मोतिहारी : छठ पूजा शुद्ध रूप से प्रकृति पूजा का पर्व है। यह जलाशयों के महत्व को समझने-समझाने का त्योहार है। यह व्रत कार्तिक मास की चतुर्थी से लेकर सप्तमी तक लगातार चार दिनों तक चलता है। छठ पूजा के दौरान कोशी भरने की भी प्रचलन है। ऐसा जरूरी नहीं है कि व्रत करने वाले सभी लोग कोशी भरे। ऐसी मान्यता है कि किसी का शुभ कार्य या मन की मुराद पुरी होती है तो छठ पूजा के दौरान उनके द्वारा कोशी भरने का काम किया जाता है। कई जगहों पर जोड़ा कोशी भी भरा जाता है। इसका आयोजन संध्या अ‌र्घ्य के पश्चात किया जाता है। इसमें 5, 7, 11, 24 ईखों को आपस में जोड़कर खड़ा किया जाता है, जिसके बीच में हाथी उसके उपर कलशा रखा जाता है। वहीं ईखों के बीच में ढ़क्कना में छठ में प्रयोग होने वाली सामग्री रख उस पर दीप जलाई जाती है। साथ ही ईखों को जोड़ने के लिए चननी(सुती गमछा या ब्लाउज पीस) का प्रयोग किया जाता है। दीप जलाने के बाद व्रत करने वाली महिलाओं के साथ आस-पास की महिलाएं भी जुटती है। इस मौके पर क्षेत्रीय गीत व छठ के पारंपरिक गीत भी महिलाएं गाती हैं।


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