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कलाकारों को जाति-धर्म से ऊपर देशहित रखना चाहिए

मोतिहारी। चंपारण सांस्कृतिक महोत्सव के तत्वावधान में रविवार को आयोजित संगीतोत्सव में भाग लेने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के कलाकारों का आगमन हुआ।

By JagranEdited By: Published: Sun, 08 Dec 2019 10:42 PM (IST)Updated: Sun, 08 Dec 2019 10:42 PM (IST)
कलाकारों को जाति-धर्म से ऊपर देशहित रखना चाहिए

मोतिहारी। चंपारण सांस्कृतिक महोत्सव के तत्वावधान में रविवार को आयोजित संगीतोत्सव में भाग लेने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के कलाकारों का आगमन हुआ। जागरण टीम ने यहां पहुंचे कलाकारों से अलग-अलग से बातचीत की। इस दौरान कलाकारों ने तमाम मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखी। पेश है बातचीत के कुछ प्रमुख अंश:

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डॉ राधिका चोपड़ा, ़ग•ाल गायिका : मूलरूप से जम्मू निवासी डॉ चोपड़ा की बेहतरीन नज्मों के दीवाने देश ही नही विदेशों तक फैले हैं। डॉ चोपड़ा बताती हैं कि 10 साल की उम्र से संगीत सीखना शुरू किया था। दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए व एमफिल की पढ़ाई पूरी हुई। उनके सहपाठियों में बॉलीवुड में अपनी गायिकी से धूम मचाने वाले विशाल भारद्वाज, जसपिदर नुराला सरीखे लोग शामिल थे। संगीत के प्रति लगाव के कारण दिल्ली यूनिवर्सिटी की नौकरी छोड़ दी। एक सवाल के जवाब में डॉ चोपड़ा ने कहा कि पाकिस्तान के शहर कराची के ऑडियंस बेहतरीन हैं। हालांकि कलाकार को जाति धर्म या सरहद से परे होना चाहिए। देशहित सबसे ऊपर है। लोगो के सेंटीमेंट को देखते हुए फिलहाल पाकिस्तान में कोई कार्यक्रम नही कर रही हैं। अपनी गाई ़गजलों में उन्हें' तुम अपना रंजो गम अपनी परेशानी मुझे दे दो', अल्लामा इकबाल की कलम से निकली'तेरे इश्क की इंतहा चाहता हूं' और सागर निजामी द्वारा कलमबद्ध किया गया।

'यूँ न रह रह कर हमें तरसाइए

आइए आ जाइए आ जाइए'काफी पसंद हैं।

डॉ रजनीश तिवारी, तबला वादक : बनारस घराना से ताल्लुक रखने वाले डॉ रजनीश आज किसी पहचान के मोहताज नही हैं। बनारस घराने के पंडित छोटेलाल मिश्रा के सान्निध्य में उन्होंने तबला वादन की शिक्षा ली। वे बताते हैं कि घराना की शुरुआत पंडित राम सहाय जी ने की थी। मुजफ्फरपुर निवासी डॉ रजनीश फिलहाल बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। 4 साल की उम्र से तबला वादन शुरू कर दिया था। एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि युवाओं के लिए यह क्षेत्र रोजगार का एक बेहतर विकल्प हो सकता है, बशर्ते कि वो इसमे अपना सौ फीसद समर्पण दे सके। इसमें सफलता के लिए कोई शॉर्टकट नहीं। बताते चले कि डॉ रजनीश आकाशवाणी के ए ग्रेड के कलाकार रहे हैं। इसके अलावा बीएचयू से गोल्ड मेडल, आईसीसीआर भारत सरकार के इम्पैनल्ड आर्टिस्ट हैं। नेपाल सरकार के बुलावे पर एंबेसी में प्रोग्राम किए थे। वे संकटमोचन जैसे नामचीन मंचो पर भी अपना फन दिखा चुके हैं। अनुरंजन व सोलो दोनों फन में आप उस्ताद हैं।

डॉ. रंजन कुमार, वायलिन वादक : चम्पारण निवासी डॉ रंजन फिलहाल दिल्ली में रहते हैं। चंपारण में आयोजित अपने कार्यक्रम पर गौरवान्वित होकर बताते हैं कि घर मे सम्मान मिलता है तो, ज्यादा खुशी होती है। चेन्नई निवासी डॉ एमएस गोपालाकृष्ण इनके गुरु रहे। आपने वायलिन की प्रारंभिक शिक्षा टीएम पटनायक से ली थी। यहां बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इनके फन के मुरीद हैं। पिछले दिनों दिल्ली के हैदराबाद हाउस में एक प्रोग्राम के दौरान इनके वायलिन वादन से मोहित हो, पीएम मोदी प्रोटोकॉल तोड़कर मंच पर आ गए व इनकी हौसलाआ़फजाई की। ये जाम्बिया गणराज्य के राष्ट्रपति लूंगु द्वारा भी सम्मानित किये गए हैं। डॉ रंजन कहते हैं कि संगीत में आना नही है, बल्कि इसको अपनाना जरूरी है। संगीत पेशा नही सेवा है। जो जिदगी देना जानते हैं वही इसे अपना सकते हैं। आप में धैर्य हो व बेहतर गुरु का सान्निध्य मिल जाये तो सफलता अवश्य मिलेगी।

डॉ. रीता दास, सरोद वादक : पटना की रहने वाली डॉ दास के पिता सीएल दास इंग्लिश के प्रोफेसर थे, लेकिन सरोद वादन का शौक था। अपने पिता को देखकर ही इन्हें सरोद वादन की ललक जगी। बाद में इन्होंने बहादुर खान मैहर सेनिया घराना से सरोद वादन की विधिवत दीक्षा ली। बता दे कि डॉ दास भारत की पहली महिला सरोद वादक हैं। ये उनका अपने कला के प्रति समर्पण ही था कि उन्होंने अपनी शादी नही की। वो बताती हैं कि शुरू में सोचा नही था कि म्यूजिक में करियर बनाएंगी। लेकिन इंदिरा कला विश्वविद्यालय में सरोद में नामांकन हो गया। बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय में नामांकन वहां से एमफिल पीएचडी सरोद वादन में करने के बाद वो इसमे ही रम गई। उन्होंने कहा कि आजकल के बच्चों में धैर्य नही है। सरकार भी कला व संगीत को लेकर उदासीन है। बिहार में म्यूजिक यूनिवर्सिटी खोलने की काफी जरूरत है। डॉ दास को भारत ज्योति अवार्ड, नाद श्री, स्वामी हरिदास स्वर विलास अवार्ड सहित कई अवार्डों से नवाजा गया है।


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