नहीं जाएंगे परदेस, बच्चों को गांव में पढ़ाएंगे और करेंगे स्वरोजगार
दरभंगा। कोरोना संक्रमण के कारण लोग एक बार फिर परदेस की नौकरी छोड़कर या छुट्टी लेकर अपने घर वापस लौटने लगे हैं।

दरभंगा। कोरोना संक्रमण के कारण लोग एक बार फिर परदेस की नौकरी छोड़कर या छुट्टी लेकर अपने घर वापस लौटने लगे हैं। घर वापसी के कारण गांवों की रौनक धीरे-धीरे बढ़ रही, लेकिन उनके सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी होने लगी है। घर का खर्च कैसे चलेगा, बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी, बीमार स्वजन का इलाज कैसे होगा, इन सब बातों को लेकर चिंता बढ़ गई है। ऐसे में गांव में ही रहकर स्वरोजगार की योजना बनाने लगे हैं। यहीं पर बच्चों को पढ़ाएंगे और रोजगार कर घर का खर्च चलाएंगे।
परदेस से गांव लौटे लोग कोरोना संक्रमण की स्थिति सामान्य होने पर भी अब शहर नहीं लौटने की बात कर रहे हैं। कई युवा गांव में ही रहकर ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर समय गुजारने की बात कह रहे हैं। कई मजदूर गांव में ही मजदूरी या प्राइवेट फार्म में नौकरी कर परिवार का भरण पोषण की बात कह रहे हैं।
पहले लाकडाउन से पहले छुट्टी लेकर दिल्ली से आए राकेश साह ने बताया कि वे दिल्ली में अमृत होटल में किचन कूक का काम करते थे। कोरोना संक्रमण को बढ़ते देख वे होटल से छुट्टी लेकर दिल्ली से अपने चचेरे भाई जितेन्द्र साह के साथ अवध असम ट्रेन पकड़कर गांव आ गए हैं। अशोक का कहना था कि उन्हें अंदेशा था कि कहीं लाकडाउन लग गया तो घर जाने में काफी परेशानी होगी, इसलिए वे जनता कर्फ्यू के दौरान ही छुट्टी लेकर दिल्ली से गांव चले आए। उन्होंने बताया कि गांव में सुख-शांति हैं। समाज के लोगों के साथ बैठकर आपसी सुख-दुख को साझा करेंगे। कहाकि कोरोनाजैसी महामारी ने एक दूसरो के बीच दूरी बनाकर रखने के लिए विवश कर दिया हैं। बताया कि लाकडाउन ने परिवार क्या होता है, इसका पाठ अवश्य पढ़ा दिया। अब पुन: दिल्ली नहीं जाने की विचार करते हुए हाजीपुर चौक पर पिछले दो वर्षों से नास्ते की दुकान खोल ली है। इसी दुकान से अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा हूं। माता-पिता व स्वजनों के साथ रहकर काफी खुशहाल जिदगी व्यतीत कर रहा हूं।
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Edited By Jagran