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आर्थिक-राजनीतिक तत्वों को हमेशा प्रभावित करता रहा दार्शनिक तत्व : श्रुतिधारी

ाजनीतिक विज्ञान के विशेषज्ञ और राज परिवार के सदस्य डॉ. श्रुतिधारी सिंह ने कहा कि मिथिला की संस्कृति में दार्शनिक तत्व हमेशा आर्थिक और राजनीतिक तत्वों को प्रभावित करते रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 20 Oct 2019 01:41 AM (IST)Updated: Sun, 20 Oct 2019 06:17 AM (IST)
आर्थिक-राजनीतिक तत्वों को हमेशा प्रभावित करता रहा दार्शनिक तत्व : श्रुतिधारी
आर्थिक-राजनीतिक तत्वों को हमेशा प्रभावित करता रहा दार्शनिक तत्व : श्रुतिधारी

दरभंगा। राजनीतिक विज्ञान के विशेषज्ञ और राज परिवार के सदस्य डॉ. श्रुतिधारी सिंह ने कहा कि मिथिला की संस्कृति में दार्शनिक तत्व हमेशा आर्थिक और राजनीतिक तत्वों को प्रभावित करते रहे हैं। यह स्थिति प्राचीन काल से मध्य काल तक अक्षुण्ण बनी रही, लेकिन अंग्रजों के आने के बाद जो संकट पैदा हुआ वो अद्यतन जारी है। शनिवार को स्थानीय गांधी सदन में इसमाद फाउंडेशन की ओर से आयोजित आचार्य रमानाथ झा हेरिटेज सीरीज के तहत पद्मश्री जगदंबा देवी स्मृति व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा कि प्राचीन मिथिला की संस्कृति को इसके तीन आयाम पर समझा जा सकता है - आर्थिक, राजनीतिक और दार्शनिक। मुस्लिम आक्रमणों के बाद मिथिला की संस्कृति में एक संकट की स्थिति उत्पन्न हुई, लेकिन इसकी संस्कृति का उद्दात भाव इस संकट को अपने में समाहित कर लिया और इस्लामिक और मैथिल संस्कृति सह अस्तित्व के स्तर पर विकसित होने लगी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि लनामिविवि के कुलपति प्रो. एसके सिंह ने कहा कि जब एक टीम एक साथ मिलकर कार्य करती है तो एक अछ्वुत परिणाम का प्रतिफल देखने को मिलता है। ऐसे कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए आयोजकों, खास करके संतोष कुमार को धन्यवाद देते हुए कहा कि अगर ऐसे युवा अपने क्षेत्र के लिए कार्य कर रहे हैं तो उस क्षेत्र की विरासत कभी मिट नहीं सकती है। अध्यक्षता कर रहे अवकाश प्राप्त आईएएस गजानंद मिश्र ने कहा कि पौराणिक मिथिला के इतिहास को शैक्षणिक ²ष्टिकोण से अथवा पारंपरिक ²ष्टिकोण से तो कभी भुलाया ही नहीं जा सकता है। कार्यक्रम का संचालन इसमाद फाउंडेशन के न्यासी संतोष कुमार ने और धन्यवाद ज्ञापन रमण दत्त झा ने किया। इससे पूर्व मुख्य अतिथि को अभय अमन सिंह ने पौधा देकर स्वांगत किया। कुलपति ने मुख्य वक्ता डॉ. श्रुतिधारी सिंह को मिथिला का विजय स्तंभ देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम में राज परिवार के बाबू गोपाल नंदन सिंह, राज पुस्तकालय के निदेशक डॉ. भवेश्वर सिंह, विश्वविद्यालय के कुलसचिव कर्नल निशीथ कुमार राय, डीएसडब्ल्यू डॉ. रतन कुमार चौधरी, डॉ. विश्ववनाथ झा, अवनींद्र कुमार झा, प्रो. राम लखन प्रसाद सिंह, डॉ. मित्रनाथ झा, पांडुलिपि संरक्षण के संतोष कुमार झा, पुरातत्वविद मुरारी कुमार झा, चंद्र प्रकाश, अविनव सिंहा आदि मौजूद रहे।

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संरक्षण के लिए सौंपा गया पांडुलिपि :

ईसमाद फाउंडेशन की पहल पर पहली बार विश्वविद्यालय के पांडुलिपि संरक्षण लैब के लिए कुलपति को निजी पांडुलिपि संरक्षण के लिए सौंपा गया। रमन झा ने डेढ़ सौ साल पुरानी बाबू घरभरन झा की बेशकीमती पांडुलिपि कुलपति को संरंक्षण के लिए सौंपा। विश्वविद्यालय के पांडुलिपि संरक्षण लैब द्वारा संरक्षित कर पांडूलिपि को पुन: दाता को लौटा दिया जाएगा। रमन दत्त झा द्वारा पांडुलिपि सौंपे जाने पर कुलपति ने ईसमाद फाउंडेशन की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए कहा कि यह महज विश्वविद्यालय के लिए ही नहीं, इस क्षेत्र के लिए भी गौरवान्वित करने वाला महत्वपूर्ण अध्याय है, जो इस संस्था के द्वारा पांडुलिपि संरक्षण लैब को पांडुलिपि हस्तगत करायी गई है।

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